VMOU Paper with answer ; VMOU MAHD-05 Paper MA Final Year , vmou Hindi important question

VMOU MAHD-05 Paper MA Final Year ; vmou exam paper

vmou exam paper

VMOU MA Final Year के लिए हिंदी साहित्य ( MAHD-05, नाटक और कथेतर गद्य विधाएं ) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1.नाटक के किन्हीं दो प्रकारों का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर:- सामाजिक नाटक और ऐतिहासिक नाटक, जो समाजिक समस्याओं और ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते हैं।

(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)

प्रश्न-2.प्रसाद युग के किन्हीं चार नाटकों के नाम लिखिए।

उत्तर:- चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, अजतशत्रु, ध्रुवस्वामिनी — ये चार प्रमुख नाटक प्रसाद युग के हैं।

प्रश्न-3.नाटक की परिभाषा कीजिए।

उत्तर:- नाटक एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसमें संवादों और घटनाओं के माध्यम से जीवन के किसी पक्ष का मंच पर अभिनय हेतु प्रस्तुतीकरण किया जाता है।

प्रश्न-4. ‘अंधा युग’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर:- ‘अंधा युग’ धर्मवीर भारती द्वारा रचित नाटक है, जो महाभारत के पश्चात का अंधकारमय काल और नैतिक पतन को दर्शाता है।

प्रश्न-5. अंधायुग’ का पहला मंचन कब और कहाँ हुआ था ?

उत्तर:- अंधायुग’ का पहला मंचन 1955 में मुम्बई के भाभा ऑडिटोरियम में हुआ था

प्रश्न-6. भारतेन्दु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित दो नाटकों का नाम बताइए।

उत्तर:- अंधेर नगरी और भारत दुर्दशा

प्रश्न-7. चन्द्रगुप्त’ नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त की कोई दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:- चन्द्रगुप्त एक साहसी, राष्ट्रप्रेमी, कुशल रणनीतिकार और जनकल्याणकारी शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

प्रश्न-8. हजारी प्रसाद द्विवेदी के दो निबंध संग्रहों का नामोल्लेख कीजिए

उत्तर:- ‘अशोक के फूल’ और ‘कुटज’

प्रश्न-9. ‘नदी प्यासी थी’ एकांकी के रचनाकार का नाम बताइए।

उत्तर:- रचनाकार अश्क (उपेन्द्रनाथ अश्क)

प्रश्न-10. प्रसाद युग के नाटकों की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- प्रसाद युग के नाटकों में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तथा काव्यात्मक भाषा की प्रमुखता होती है, साथ ही साथ आदर्शवाद की भावना भी होती है।

प्रश्न-’11. मेरे राम का मुकुट भोग रहा है’ निबन्ध की मूल संवेदना बताइए।

उत्तर:-यह निबंध आदर्श रामराज्य की कल्पना और वर्तमान सामाजिक राजनीतिक विकृतियों पर करुणा एवं क्षोभ की संवेदना प्रकट करता है।

प्रश्न-12. प्रसाद के दो प्रमुख गीतिनाट्यों के नाम बताइए।

उत्तर:- अजातशत्रु’ और ‘कामायनी’।

प्रश्न-13. स्वातंत्र्योत्तर दो नाटककारों के नाम लिखिए।

उत्तर:- मोहन राकेश और धर्मवीर भारती स्वातंत्र्योत्तर भारत के प्रमुख नाटककार हैं

प्रश्न-14. मोहन राकेश के किन्हीं तीन नाटकों के नाम लिखिए।

उत्तर:- तीन प्रसिद्ध नाटकों के नाम हैं– आषाढ़ का एक दिन, आधे-अधूरे तथा लहरों के राजहंस।

प्रश्न-15. अंधायुग’ नाटक के प्रमुख पात्रों का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर:- अंधायुग’ नाटक के प्रमुख पात्र हैं — अश्वत्थामा, युधिष्ठिर, गांधारी, विदुर, कृष्ण और भीम आदि।

प्रश्न-16. ‘अंधा युग’ नाटक की कथा का स्रोत क्या है?

उत्तर:- अंधा युग’ नाटक की कथा का स्रोत महाभारत का उत्तर पर्व है, विशेषकर युद्ध की समाप्ति का समय।

प्रश्न-17. नीली झील’ एकांकी के रचनाकार का नाम बताइए।

उत्तर:- धर्मवीर भारती

प्रश्न-18. नाटक में ‘कथोपकथन’ के दो महत्त्व बताइए।

उत्तर:- कथोपकथन से पात्रों का चरित्र उजागर होता है और कथा की गति बढ़ती है, जिससे दर्शकों को दृश्य और भावनात्मक गहराई मिलती है।

प्रश्न-19. आधे-अधूरे’ नाटक के नायक का नाम लिखिए।

उत्तर:-‘आधे-अधूरे’ नाटक के नायक का नाम महेन्द्रनाथ है।

प्रश्न-20.आधे-अधूरे’ नाटक का प्रकाशन वर्ष बताइए।

उत्तर:-मोहन राकेश द्वारा रचित आधे-अधूरे नाटक का प्रकाशन वर्ष 1969 है।

प्रश्न-21. ‘भाभी’ रेखाचित्र के लेखक का नाम बताइए।

उत्तर:-महादेवी वर्मा

प्रश्न-22. ‘कविता क्या है’ निबंध किस निबंधकार द्वारा लिखित है ?

उत्तर:- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

प्रश्न-23. हिन्दी के दो जीवनीकारों का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर:- हिन्दी के प्रमुख जीवनीकारों में महावीर प्रसाद द्विवेदी और रामविलास शर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न-24. हरिशंकर परसाई को साहित्य अकादमी सम्मान उनकी किस कृति पर प्राप्त हुआ?

उत्तर:- हरिशंकर परसाई को साहित्य अकादमी सम्मान उनकी व्यंग्य कृति ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए प्राप्त हुआ था।

प्रश्न-25. ललित निबन्धों की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- ललित निबंध भावात्मक होते हैं, जिनमें भाषा सौंदर्य, साहित्यिक शैली और लेखक की व्यक्तिगत अनुभूति की झलक मिलती है।

प्रश्न-26. महावीर प्रसाद द्विवेदी के दो निबंध संग्रहों के नाम लिखिए।

उत्तर:- ‘साहित्य चर्चा’ और ‘प्रबन्ध पंक्तियाँ’

प्रश्न-27. ‘तितुरता हुआ गणतंत्र’ निबंध के लेखक का नाम बताइए।

उत्तर:- तितुरता हुआ गणतंत्र’ निबंध के लेखक हरिशंकर परसाई हैं।

प्रश्न-28. दो प्रसिद्ध ‘जीवनियों’ के नाम लिखिए।

उत्तर:- आवारा मसीहा” (विशेषज्ञ – हज़ारी प्रसाद द्विवेदी) और “युगपुरुष गांधी” दो प्रसिद्ध जीवनियाँ हैं जो महापुरुषों के जीवन को उद्घाटित करती हैं।

प्रश्न-29. ‘अंधायुग’ के कथानक की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- ‘अंधायुग’ की दो विशेषताएँ हैं— महाभारत के उत्तरकथा पर आधारित होना तथा युद्ध के बाद की नैतिक-राजनीतिक विडंबनाओं का चित्रण।

प्रश्न-30. चीड़ों पर चाँदनी’ किस विचारधारा को रचना है?/किसकी रचना है?

उत्तर:- चीड़ों पर चाँदनी रचना छायावादी विचारधारा से संबंधित है, जिसमें प्रकृति, सौंदर्य और भावनात्मकता का गहन चित्रण होता चीड़ों पर चाँदनी’ प्रसिद्ध साहित्यकार शिवानी का यात्रा-वृत्तांत है,

प्रश्न-31. मैं वास्तव में कौन हूँ?… यह कथन किसका है?” (‘आधे-अधूरे’ नाटक)

उत्तर:- यह आत्मसंघर्ष और पहचान की उलझन दर्शाने वाला कथन नाटक के पात्र महेन्द्रनाथ का है।

प्रश्न-32. डायरी विधा की परिभाषा कीजिए।

उत्तर:- डायरी एक आत्मकथात्मक गद्य विधा है जिसमें लेखक दैनिक जीवन के अनुभव, भावनाएँ व विचार लिपिबद्ध करता है

प्रश्न-33. नाखून क्यों बढ़ते हैं’ किसका निबंध संग्रह है ?

उत्तर:- ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ हरिशंकर परसाई का प्रसिद्ध व्यंग्य निबंध संग्रह है जो सामाजिक विडंबनाओं पर आधारित है।

प्रश्न-34. ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ किस विधा की रचना है?

उत्तर:- ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ अज्ञेय द्वारा लिखित आत्मकथात्मक रचना है, जो आत्मकथा विधा की महत्त्वपूर्ण कृति मानी जाती है।

प्रश्न-35. रेखाचित्र की परिभाषा कीजिए।

उत्तर:- रेखाचित्र गद्य की एक विधा है जिसमें किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान का जीवन्त, सजीव और प्रभावपूर्ण चित्रण किया जाता है

प्रश्न-36. काव्य में लोकमंगल की साधना’ निबंध किसका है और इसकी मूल संवेदना क्या है?

उत्तर:- यह निबंध आचार्य रामचंद्र शुक्ल का है, और इसकी मूल संवेदना काव्य के सामाजिक कल्याणकारी उद्देश्य पर आधारित है।

प्रश्न-37 डॉ. विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित ललित निबंध का नाम बताइए।

उत्तर:- काठ की घोड़ी’।

प्रश्न-38. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के दो ललित निबंध संग्रहों के नाम बताइये।

उत्तर:- आलोचना” और “प्रत्यक्षा”

प्रश्न-39. किन्हीं चार ललित निबंधकारों के नाम लिखिए।

उत्तर:- चार प्रमुख ललित निबंधकार हैं— हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामचंद्र शुक्ल, महावीर प्रसाद द्विवेदी और विद्यानिवास मिश्र।

प्रश्न-40. अतीत के चलचित्र’ और ‘पथ के साथी’ कृतियों के रचयिता का नाम बताइये।

उत्तर:-चयिता डॉ. राधाकृष्णन

प्रश्न-41. ‘आवारा मसीहा’ जीवनी में किस महापुरुष का जीवन-चरित्र चित्रित किया गया है?

उत्तर:- ‘आवारा मसीहा’ जीवनी में शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का जीवन-चरित्र चित्रित किया गया है, जिसे विष्णु प्रभाकर ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से लिखा है।

प्रश्न-42. ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक का रचनाकाल बताइए।

उत्तर:- सन् 1958

प्रश्न-43. ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक के लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर:- जयशंकर प्रसाद हैं।

प्रश्न-44. नाटक के तत्वों का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तर:- नाटक के प्रमुख तत्व हैं— कथानक, पात्र, संवाद, उद्देश्य, मंचन, और दृश्य विन्यास।

Section-B

प्रश्न-1.हिन्दी नाटक के विकास पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- हिन्दी नाटक का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र से माना जाता है, जिन्होंने ‘अंधेर नगरी’, ‘भारत दुर्दशा’ जैसे सामाजिक-राजनीतिक नाटक लिखे। इसके बाद द्विवेदी युग में नैतिक नाटक जैसे रचनाएँ हुईं। प्रसाद युग में जयशंकर प्रसाद ने नाटक को गंभीरता, इतिहास और मनोवैज्ञानिकता दी। उनके नाटक ‘चंद्रगुप्त’, ‘स्कंदगुप्त’ आदि प्रसिद्ध हैं। स्वतंत्रता संग्राम के समय नाटक क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित हुए। आज़ादी के बाद मोहन राकेश, धर्मवीर भारती जैसे लेखकों ने प्रयोगवादी और यथार्थवादी नाटक प्रस्तुत किए। ‘आधे-अधूरे’, ‘अंधायुग’ जैसे नाटकों ने आधुनिक समाज की समस्याओं को उठाया। वर्तमान समय में नाटक जनसंचार, रंगमंच, व रेडियो के माध्यम से भी लोकप्रिय हो रहा है।

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प्रश्न-2.मोहन राकेश के नाटक ‘आधे अधूरे’ में मध्यवर्गीय पारिवारिक जीवन की घुटन, अवसाद व टूटन की अभिव्यक्ति करते हुए आधुनिक जीवन की विसंगतियों पर प्रकाश डाला गया है। विवेचना कीजिए।

उत्तर:- मोहन राकेश का नाटक ‘आधे अधूरे’ आधुनिक हिन्दी नाटकों में विशेष स्थान रखता है। यह नाटक शहरी मध्यवर्गीय परिवार की मानसिक और भावनात्मक टूटन को दर्शाता है। नाटक की मुख्य पात्र सावित्री अपने जीवन से असंतुष्ट है – उसका पति बेरोजगार, बेटा उद्दंड, बेटियाँ अलगावग्रस्त और जीवन निराशाजनक है।
इस नाटक के माध्यम से लेखक ने यह दिखाया है कि आधुनिक जीवन में स्थायित्व, संबंधों में मधुरता और आत्मीयता समाप्त होती जा रही है। परिवार के हर सदस्य को किसी न किसी स्तर पर अधूरा और असंतुष्ट दिखाया गया है।
सावित्री एक सक्षम महिला है पर मानसिक शांति से कोसों दूर है। वह तीन पुरुषों के साथ संबंध बनाकर भी संतोष नहीं पा पाती।
यह नाटक आधुनिक समाज में स्त्री की स्थिति, पारिवारिक ढांचे की विफलता और मूल्यहीनता की ओर संकेत करता है। संवादों की तीव्रता, मंच संरचना और यथार्थ चित्रण इसे अत्यंत प्रभावी बनाते हैं।

प्रश्न-3.हिन्दी निबन्ध के विकास की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- हिन्दी निबंध का विकास 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रारंभ हुआ। भारतेंदु युग में गद्य लेखन की शुरुआत हुई और आधुनिक चिंतन के प्रसार के साथ निबंध विधा का उद्भव हुआ। पहले निबंधों में भावात्मकता अधिक थी, जैसे ललित निबंधों में सौंदर्य और कल्पना प्रधान थी।

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने निबंध को विचार और उद्देश्यपरक दिशा दी। उनके समय में विषयों की गंभीरता, सामाजिकता और विवेचनात्मक शैली आई। इसके बाद रामचंद्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त, पद्म सिंह शर्मा जैसे लेखकों ने इसे सशक्त किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय निबंधों में राष्ट्रीयता, समाज सुधार, शिक्षा आदि विषयों पर लेखन हुआ।

स्वातंत्र्योत्तर काल में निबंध विधा और अधिक व्यापक हुई। हरिशंकर परसाई, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, अज्ञेय आदि ने आधुनिक जीवन की समस्याओं, विसंगतियों और राजनीति पर भी व्यंग्यात्मक निबंध लिखे। इस प्रकार हिन्दी निबंध ने विविध शैलियों, विषयों और दृष्टिकोणों को समेटते हुए समृद्ध विकास किया है।

प्रश्न-4. ‘आत्मकथा’ की परिभाषित करते हुए प्रमुख आत्मकथाकारों का परिचय दीजिए।

उत्तर:- आत्मकथा वह गद्य विधा है जिसमें लेखक स्वयं अपने जीवन की घटनाओं, अनुभवों और विचारों को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक अपने जीवन का विश्लेषण करता है तथा समाज, संस्कृति और समय की झलक भी देता है। आत्मकथा केवल जीवन वृत्तांत नहीं, बल्कि एक आत्मबोध का दस्तावेज होती है। इसमें लेखक अपनी सफलताओं, विफलताओं, संघर्षों और भावनाओं को ईमानदारी से प्रस्तुत करता है।

हिंदी साहित्य में प्रमुख आत्मकथाकारों में महादेवी वर्मा की ‘पथ के साथी’, हरिवंश राय बच्चन की ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’ आदि उल्लेखनीय हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘मेरे साहित्यिक जीवन के संकल्प’ तथा ओमप्रकाश वाल्मीकि की ‘जूठन’ भी आत्मकथा विधा में विशिष्ट स्थान रखती हैं। आत्मकथाओं के माध्यम से न केवल लेखक का जीवन दृष्टिगत होता है बल्कि उस समय के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य की झलक भी मिलती है।

प्रश्न-5.’चंद्रगुप्त’ नाटक को ऐतिहासिकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर:- जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘चंद्रगुप्त’ एक ऐतिहासिक नाटक है जो मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर आधारित है। इस नाटक की ऐतिहासिकता इसकी कथावस्तु, पात्रों और घटनाओं के यथार्थपरक चित्रण में प्रकट होती है।

नाटक में चंद्रगुप्त का उत्थान, चाणक्य की रणनीति, मौर्य साम्राज्य की स्थापना तथा नंद वंश के अंत को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर दर्शाया गया है। यूनानी सेनापति सेल्यूकस तथा उसकी पुत्री हेलेन की उपस्थिति से भी नाटक को ऐतिहासिक प्रमाणिकता मिलती है।

हालाँकि, प्रसाद ने नाटकीयता और सौंदर्य बढ़ाने हेतु कुछ कल्पनात्मक तत्व जोड़े हैं, परंतु इससे नाटक की ऐतिहासिक गरिमा कम नहीं होती। चंद्रगुप्त का राष्ट्रप्रेम, चाणक्य की कूटनीति और भारतीय संस्कृति की गरिमा इस नाटक को एक उत्कृष्ट ऐतिहासिक रचना बनाते हैं।

इस प्रकार, ‘चंद्रगुप्त’ नाटक इतिहास और साहित्य का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करता है।

प्रश्न-6.एकांकी कथा के आधार पर ‘नीली झील’ एकांकी की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- नीली झील’ एक भावनात्मक एवं प्रतीकात्मक एकांकी है, जिसमें युद्ध की विभीषिका, मानवीय संबंध और शांति की आकांक्षा को दर्शाया गया है। कथा की पृष्ठभूमि युद्धभूमि है, जहाँ एक सैनिक घायल अवस्था में ‘नीली झील’ की कल्पना करता है – जो उसके लिए शांति, प्रेम और जीवन का प्रतीक है। यह झील वास्तविक नहीं बल्कि उसकी मानसिक अवस्था का चित्रण है। इस एकांकी में युद्ध के विरुद्ध गहरा संदेश छिपा है। कथा संरचना सरल परंतु प्रभावशाली है। संवाद कम लेकिन अर्थगर्भित हैं। पात्रों की मनोदशा के माध्यम से लेखक शांति, प्रेम और मानवीय करुणा को प्रतिष्ठित करता है।

प्रश्न-7.’अंधायुग’ गीतिनाट्य (डॉ. धर्मवीर भारती) नाट्यकला के तत्वों की दृष्टि से सफल नाटक है। संक्षेप में सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- डॉ. धर्मवीर भारती रचित ‘अंधायुग’ एक कालजयी गीतिनाट्य है जो महाभारत की पृष्ठभूमि पर आधारित होते हुए भी आधुनिक संदर्भों को स्पर्श करता है।
यह नाटक नाट्यकला के प्रमुख तत्वों – संवाद, दृश्य-रचना, प्रतीक, मंचीयता, नाटकीयता और संगीतात्मकता – से भरपूर है। इसमें युद्ध के पश्चात कुरुक्षेत्र की स्थिति और पात्रों के मानसिक द्वंद्व को दर्शाया गया है।
गांधारी का शाप, युधिष्ठिर का पश्चाताप, अश्वत्थामा का पागलपन आदि दृश्य गहन नाटकीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
नाटक में अंधकार का प्रतीक नैतिक पतन और आत्मविस्मृति है। संवाद गेय और काव्यात्मक हैं, जिससे भावनाओं की गहराई बढ़ती है।
इस नाटक के मंचन में प्रकाश, ध्वनि और संगीत का प्रभावी उपयोग होता है। इस प्रकार ‘अंधायुग’ एक सफल गीतिनाट्य है जो नाट्यकला के प्रत्येक पक्ष को सफलतापूर्वक प्रस्तुत करता है।

प्रश्न-8.हिन्दी रंगमंच के विकास में भारतेन्दु के महत्व को रेखांकित कीजिए।

उत्तर:- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को हिन्दी रंगमंच का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने न केवल हिन्दी नाटक लेखन की शुरुआत की, बल्कि रंगमंच को सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय जागरण का माध्यम भी बनाया।

उनके नाटकों में तत्कालीन समाज की समस्याएँ, राजनीतिक व्यंग्य और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की भावना दिखाई देती है। जैसे ‘अंधेर नगरी’, ‘भारत दुर्दशा’ और ‘नीलदेवी’ जैसे नाटकों में उन्होंने भ्रष्टाचार, अंग्रेजी शासन और सामाजिक कुरीतियों की तीव्र आलोचना की।

उन्होंने नाटक को मंचन योग्य बनाया—संवादों की सजीवता, पात्रों की जीवन्तता और कथानक की रोचकता से। भारतेन्दु मंडली के माध्यम से उन्होंने रंगमंच को जनमानस से जोड़ा। उनके प्रयासों ने हिन्दी नाटक और रंगमंच को एक सशक्त सामाजिक माध्यम बनाया।

इस प्रकार भारतेन्दु केवल हिन्दी नाट्य साहित्य के ही नहीं, वरन् आधुनिक हिन्दी रंगमंच के आधार स्तंभ हैं। उन्होंने रंगमंच को शुद्ध मनोरंजन से उठाकर राष्ट्रीय और सामाजिक दायित्व की दिशा दी।

प्रश्न-9. आधे-अधूरे’ नाटक में शिल्पगत नवीन आयामों का विवेचन कीजिए।

उत्तर:- मोहन राकेश द्वारा रचित ‘आधे-अधूरे’ नाटक आधुनिक हिंदी रंगमंच का एक महत्वपूर्ण नाटक है, जिसमें पारिवारिक विघटन, स्त्री-पुरुष संबंध और अस्तित्व की समस्या को प्रस्तुत किया गया है। इस नाटक में शिल्पगत नवीनता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।

प्रथम, संवाद शैली अत्यंत वास्तविक और समसामयिक है। पात्रों की भाषा उनके सामाजिक और मानसिक स्तर के अनुसार है। द्वितीय, मंच संयोजन में यथार्थ को प्रमुखता दी गई है, जैसे एक सीमित स्थान पर समस्त घटनाएं घटित होती हैं। तृतीय, प्रतीकों और दृश्य-बिंबों का प्रयोग जैसे दरवाजा, दर्पण आदि माध्यमों से गहरे अर्थ निर्मित होते हैं। इसके अतिरिक्त, पात्रों की मनोदशा को दर्शाने हेतु फ्लैशबैक और मौन दृश्य तकनीकें प्रयुक्त की गई हैं।

इस प्रकार ‘आधे-अधूरे’ नाटक ने पारंपरिक शिल्प से हटकर आधुनिक रंगमंच को एक नई दिशा दी, जो जीवन की विडंबनाओं और अंतर्विरोधों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है।

प्रश्न-10. चंद्रगुप्त’ नाटक की कथावस्तु पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

उत्तर:- जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘चंद्रगुप्त’ नाटक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसमें चंद्रगुप्त मौर्य के उत्थान की कथा प्रस्तुत की गई है। कथा की शुरुआत चंद्रगुप्त के साधारण युवक से होती है, जो चाणक्य की सहायता से मगध के अत्याचारी नंद वंश को हटाकर स्वयं सम्राट बनता है। नाटक में चाणक्य की राजनीति, चंद्रगुप्त का साहस और राष्ट्रप्रेम, तथा विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा की भावना स्पष्ट होती है। नंद, चाणक्य, चंद्रगुप्त, चेलना आदि पात्रों के माध्यम से संघर्ष, राजनीति और राष्ट्रहित को दर्शाया गया है। यह नाटक देशभक्ति और इतिहासबोध से ओतप्रोत है।

प्रश्न-11. हिन्दी निबन्ध के उद्भव एवं विकास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

उत्तर:- हिन्दी निबंध का प्रारंभ 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। प्रारंभ में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने व्यंग्यात्मक और व्यावहारिक निबंध लिखे, लेकिन निबंध को गंभीर साहित्यिक रूप आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के युग में मिला।
द्विवेदी जी ने निबंधों में तर्क, विचार और सामाजिक विषयों को महत्व दिया। इसके बाद आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंध को आलोचना और विचार-प्रधान दिशा दी।
प्रेमचंद ने सामाजिक समस्याओं पर विचारात्मक और सहज निबंध लिखे। इसके बाद महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, भगवतशरण उपाध्याय आदि ने आत्मकथात्मक और ललित निबंधों की परंपरा को आगे बढ़ाया।
आधुनिक युग में डॉ. रामविलास शर्मा, विद्यानिवास मिश्र, नामवर सिंह जैसे निबंधकारों ने गंभीर चिंतन और आधुनिक विषयों को प्रस्तुत किया।
वर्तमान समय में निबंध लेखन विविधता, स्वतंत्रता और शैलीगत विकास के साथ साहित्य का एक सशक्त माध्यम बना हुआ है।

प्रश्न-12. ‘अंधायुग’ की आधुनिकता पर चर्चा कीजिए।

उत्तर:- धर्मवीर भारती का नाटक ‘अंधायुग’ आधुनिक हिन्दी नाट्य साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति है। यह महाभारत के उत्तर प्रसंग पर आधारित है, परंतु इसका दृष्टिकोण समकालीन है।

‘अंधायुग’ की आधुनिकता इसके कथ्य, संरचना, शैली और भावबोध में दिखाई देती है। यह नाटक केवल पौराणिक कथा नहीं कहता, बल्कि युद्धोत्तर नैतिक पतन, हिंसा, सत्ता की लालसा और अस्तित्व के संकट को प्रस्तुत करता है। इसके पात्र जैसे अश्वत्थामा, विदुर, गांधारी—अंतर्द्वंद्व और नैतिक संघर्ष के प्रतीक हैं।

इस नाटक की संवाद शैली गूढ़, काव्यात्मक और विचारोत्तेजक है। मंच सज्जा, प्रतीकों और ध्वनियों के प्रयोग से इसका रंगमंचीय रूप अत्यंत प्रभावशाली है। आधुनिक मनुष्य के अंतःकरण में व्याप्त अंधकार, भय, असहायता और आशा की तलाश को यह नाटक दर्शाता है।

इस प्रकार ‘अंधायुग’ आधुनिक नाटक की उन सभी विशेषताओं को समेटे हुए है जो आज के समाज, राजनीति और मानव-चिंतन से गहरे जुड़े हैं।

प्रश्न-13. गीति नाट्य के रूप में ‘अंधायुग’ की समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’ एक उत्कृष्ट गीति नाट्य है, जिसकी पृष्ठभूमि महाभारत का उत्तरकाल है, जब कुरुक्षेत्र युद्ध समाप्त हो चुका है। यद्यपि यह नाटक संवादात्मक है, फिर भी इसकी भाषा, लय और बिंबात्मकता इसे गीति-नाट्य के स्वरूप में प्रतिष्ठित करती है।

नाटक में काव्यात्मक संवादों का प्रयोग हुआ है जो छंद और गीतात्मकता से युक्त हैं। पात्रों के मनोभावों को व्यक्त करने हेतु गीतों और गेय अंशों का प्रयोग हुआ है। विशेष रूप से अश्वत्थामा, गांधारी, युधिष्ठिर और विदुर जैसे पात्रों के संवादों में काव्यात्मक गहराई और भावनात्मक लय स्पष्ट देखी जा सकती है।

गीति नाट्य की विशेषता यह होती है कि उसमें काव्य और संगीत का समावेश होता है जो मंच पर भावनात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है। ‘अंधायुग’ इस दृष्टि से अत्यंत सफल है क्योंकि इसके गीतात्मक संवाद और गहरे प्रतीकात्मक दृश्य नाटक को काव्यात्मक ऊंचाई प्रदान करते हैं। इस प्रकार ‘अंधायुग’ आधुनिक हिंदी साहित्य में एक प्रभावशाली गीति नाट्य रूप में स्थापित होता है।

प्रश्न-14. ‘संस्मरण’ साहित्य के विकास में महादेवी वर्मा के योगदान की समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य की प्रमुख स्त्री साहित्यकार हैं। उनके संस्मरणों में संवेदना, करुणा, सौंदर्यबोध और सामाजिक दृष्टि का अद्भुत समन्वय है। ‘अतीत के चलचित्र’ और ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ उनके प्रसिद्ध संस्मरण संग्रह हैं। उन्होंने अपने संस्मरणों में जीवन के छोटे-छोटे अनुभवों, पशु-पक्षियों और स्त्री-वंचनाओं को अत्यंत मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी लेखनी आत्मीयता से भरी होती है, जो पाठक को भीतर तक छू जाती है। उनके संस्मरण साहित्य में व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से सामाजिक यथार्थ को उद्घाटित करते हैं। उन्होंने हिन्दी संस्मरण को साहित्यिक गरिमा प्रदान की।

प्रश्न-15. ‘अशोक के फूल’ निबन्ध की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- ‘अशोक के फूल’ महादेवी वर्मा का एक भावप्रधान और ललित निबंध है जो उनकी आत्मचेतना और सौंदर्यबोध का अद्भुत उदाहरण है।
इस निबंध की विशेषताएँ हैं:

आत्मपरकता – लेखिका अपने अनुभव और भावनाओं को निबंध के माध्यम से प्रकट करती हैं।

सौंदर्यबोध – अशोक के फूलों के माध्यम से जीवन की सुंदरता, पीड़ा और क्षणभंगुरता का चित्रण।

भाषा शैली – कोमल, सरस, काव्यात्मक और भावनात्मक भाषा।

प्रतीकात्मकता – अशोक के फूल दुःख-सुख की अनुभूति और स्मृति के प्रतीक हैं।

स्मृतिपरकता – लेखिका की बचपन की स्मृतियाँ इस निबंध में जीवंत हो उठती हैं।
यह निबंध पाठक को भीतर तक स्पर्श करता है और जीवन के सूक्ष्म भावों से परिचित कराता है।

प्रश्न-16. आत्मकथा को परिभाषित करते हुए आत्मकथा के विकास एवं प्रमुख आत्मकथाओं का परिचय दीजिए।

उत्तर:- आत्मकथा वह साहित्यिक विधा है जिसमें लेखक अपने जीवन के अनुभव, संघर्ष, भावनाएँ और विचार स्वयं प्रस्तुत करता है। इसमें आत्मावलोकन और आत्म-प्रकाशन दोनों समाहित होते हैं।

हिन्दी में आत्मकथा लेखन की शुरुआत 20वीं शताब्दी के मध्य में हुई। पहले आत्मकथाएँ साधु-संतों और नेताओं तक सीमित थीं, जैसे महात्मा गांधी की ‘सत्य के प्रयोग’, नेहरू की ‘मेरी कहानी’।

इसके बाद साहित्यकारों ने आत्मकथाएँ लिखीं जिनमें उनके निजी जीवन के साथ-साथ साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण भी व्यक्त हुए। अज्ञेय की ‘शेखर: एक जीवनी’, हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘मेरे जीवन की रेखाएँ’, हरिवंश राय बच्चन की ‘क्या भूलूँ क्या याद करूँ’ आदि प्रमुख आत्मकथाएँ हैं।

दलित साहित्य में ओमप्रकाश वाल्मीकि की ‘जूठन’, शरण कुमार लिंबाले की ‘अक्करमाशी’ ने आत्मकथा को एक नया आयाम दिया।

इस प्रकार आत्मकथा हिन्दी साहित्य की गंभीर, संवेदनशील और आत्मविश्लेषणात्मक विधा बन गई है।

प्रश्न-17. धर्मवीर भारती के नाटकों के आधार पर उनकी नाट्य दृष्टि की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- धर्मवीर भारती एक प्रमुख आधुनिक नाटककार हैं जिनकी नाट्य दृष्टि मानवता, आदर्शवाद और आत्मसंघर्ष पर केंद्रित है। उनके प्रसिद्ध नाटक अंधायुग में कुरुक्षेत्र युद्ध के पश्चात की नैतिक गिरावट का चित्रण है। उनकी नाट्य दृष्टि प्रतीकों और मिथकीय पात्रों के माध्यम से समकालीन समाज की व्याख्या करती है। वह नाटक को केवल मनोरंजन का साधन नहीं मानते, बल्कि उसे समाज और मनुष्य के अंतर्द्वंद्व को उजागर करने का माध्यम मानते हैं। उनके नाटकों में भाषा काव्यात्मक और प्रभावशाली होती है। वे समय और इतिहास के माध्यम से वर्तमान की समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं। उनकी नाट्य दृष्टि में आदर्श और यथार्थ के मध्य संतुलन दिखाई देता है। कनुप्रिया और सत्य हरिश्चंद्र जैसे नाटकों में भी यह दृष्टिकोण विद्यमान है। धर्मवीर भारती का नाटक केवल मंचन नहीं, आत्मचिंतन का माध्यम बनता है।

प्रश्न-18. ‘आत्मकथा’ लेखन में लेखक को किन सावधानियों का पालन करना चाहिए? विस्तार से बताइये।

उत्तर:-आत्मकथा लेखन में लेखक को अपनी जीवन यात्रा को ईमानदारी से प्रस्तुत करना होता है। यह केवल घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि लेखक की भावनात्मक, मानसिक और वैचारिक यात्रा का चित्रण होता है। आत्मकथा में लेखक को निम्न सावधानियों का पालन करना चाहिए:

  1. सत्यनिष्ठा: घटनाओं को सच्चाई से लिखना चाहिए, अतिशयोक्ति या कल्पना से बचना चाहिए।
  2. संवेदनशीलता: अन्य पात्रों के नाम और घटनाओं का उल्लेख करते समय उनकी निजता का ध्यान रखना चाहिए।
  3. स्वविवेचन: आत्मकथा आत्ममंथन का माध्यम है, इसमें लेखक को अपने दोषों और संघर्षों को भी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
  4. भाषा और शैली: आत्मकथा की भाषा सरल, आत्मीय और प्रभावशाली होनी चाहिए।
  5. संदर्भ और काल: घटनाओं को सही संदर्भ और कालक्रम में प्रस्तुत करना चाहिए।

उदाहरण के लिए महात्मा गांधी की सत्य के प्रयोग एक आदर्श आत्मकथा है जिसमें सत्य, आत्मविश्लेषण और नैतिकता का अनुपम संगम है।

प्रश्न-19. ललित निबंधों के विकास में विद्यानिवास मिश्र के योगदान की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- विद्यानिवास मिश्र हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध निबंधकार थे। उन्होंने ललित निबंध को भाषा की कोमलता, संस्कृतिनिष्ठता और दार्शनिक गहराई प्रदान की। उनके निबंधों में भारतीय संस्कृति, ग्रामीण जीवन, भाषा-चिंतन, और प्रकृति का गहन चित्रण मिलता है। उनकी भाषा शैली में शास्त्रीयता और आधुनिकता का समन्वय देखने को मिलता है। ‘आचार्य निबंधावली’, ‘गाँव के लोग’, ‘भारतीय दृष्टि और आधुनिकता’ जैसे संग्रह उनके प्रमुख योगदान हैं। उन्होंने हिन्दी निबंध को केवल विचार अभिव्यक्ति का साधन न मानकर उसे सौंदर्यबोध और आत्मीयता से जोड़ा। उनके निबंध चिन्तनप्रधान होने के साथ-साथ भावनात्मक भी हैं।

प्रश्न-20. ललित निबन्ध की विशेषताएँ बताते हुए डॉ. विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- ललित निबंध वह निबंध होता है जिसमें विचार के साथ-साथ भाव, भाषा और सौंदर्य का समन्वय होता है। इसकी विशेषताएँ हैं:

भावप्रधानता – लेखक भावनाओं के माध्यम से विषय को प्रस्तुत करता है।

आत्मपरकता – इसमें लेखक अपने अनुभवों और दृष्टिकोण को सम्मिलित करता है।

शैलीगत वैविध्य – भाषा साहित्यिक, काव्यात्मक और सरस होती है।
डॉ. विद्यानिवास मिश्र की निबंध शैली में भाव, विचार और भाषा का सुंदर समन्वय होता है। वे भाषा, संस्कृति, दर्शन और परंपरा पर आधारित विषयों को अत्यंत सहज और व्यावहारिक ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
उनकी शैली आत्मीय, वैचारिक और विद्वतापूर्ण होती है। उनके निबंधों में गहराई, सरलता और भारत की सांस्कृतिक चेतना का सजीव चित्रण मिलता है।
इस प्रकार डॉ. मिश्र ललित निबंध शैली के सशक्त हस्ताक्षर माने जाते हैं।

प्रश्न-21. रिपोर्ताज’ की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- ‘रिपोर्ताज’ साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसमें समाचार, विवरण, अनुभव और भावनाओं का जीवंत चित्रण होता है। यह पत्रकारिता और साहित्य के मध्य एक सेतु के रूप में कार्य करता है।

रिपोर्ताज की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  1. तथ्यात्मकता: इसमें वास्तविक घटनाओं का चित्रण किया जाता है, परंतु उसे साहित्यिक शैली में प्रस्तुत किया जाता है।
  2. जीवंतता: संवाद, दृश्य और भावों के माध्यम से घटना को पाठक के समक्ष जीवित कर दिया जाता है।
  3. साहित्यिक भाषा: भाषा रोचक, प्रभावशाली और चित्रात्मक होती है।
  4. आंखों देखा हाल: लेखक स्वयं घटनास्थल पर उपस्थित होता है या विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करता है।
  5. पात्र और वातावरण का वर्णन: घटनाओं के पात्र, स्थान और समय का सजीव वर्णन किया जाता है।
  6. मानवीय पक्ष: इसमें केवल घटना नहीं, उसके सामाजिक, राजनीतिक और भावनात्मक पक्षों को भी उभारा जाता है।

रिपोर्ताज साहित्य और पत्रकारिता का सुंदर संयोजन है जो पाठक को तथ्यात्मक जानकारी के साथ संवेदना भी प्रदान करता है।

प्रश्न-’22. डायरी एवं फीचर’ लेखन पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:-डायरी लेखन आत्माभिव्यक्ति की एक सशक्त विधा है जिसमें लेखक अपने दैनिक अनुभवों, भावनाओं और विचारों को निजी रूप में प्रस्तुत करता है। इसमें लेखक का आत्मसंवाद और मनोभावों का चित्रण होता है। यह शैलीपूर्ण, लेकिन आत्मीय होती है। डायरी लेखन में तात्कालिकता और यथार्थता प्रमुख होती है।

फीचर लेखन पत्रकारिता की साहित्यिक विधा है। यह किसी घटना, व्यक्ति, स्थल, या सामाजिक समस्या पर लेख होता है, जिसमें तथ्य के साथ भावात्मक प्रस्तुति होती है। फीचर लेखन सूचनात्मक होने के साथ-साथ रोचक और प्रभावशाली होता है।

दोनों विधाओं में शैली की स्वतंत्रता होती है, परन्तु डायरी जहाँ निजी होती है, वहीं फीचर जनहित से जुड़ा होता है। डायरी लेखन में आत्मवृत्तांत की छाया होती है जबकि फीचर में समाचार और साहित्य का समन्वय होता है। हरिशंकर परसाई की डायरी शैली और प्रभाष जोशी के फीचर लेखन इसके उदाहरण हैं। दोनों विधाएँ आज भी अत्यंत प्रभावशाली और लोकप्रिय हैं।

प्रश्न-23. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में जिन पूर्णतः विदेशी कथेतर विधाओं का आगमन हुआ है, उनका परिचय दीजिए।

उत्तर:- स्वातंत्र्योत्तर हिंदी साहित्य में अनेक विदेशी कथेतर विधाओं का प्रभाव पड़ा है, जिनमें प्रमुख हैं — रिपोर्ताज, डायरी, संस्मरण, जीवनी, आत्मकथा, यात्रा-वृत्तांत, व्यंग्य लेख आदि। इन विधाओं की जड़ें विदेशी साहित्य में हैं परंतु हिंदी में इन्हें नवीन रूप में अपनाया गया।

रिपोर्ताज पत्रकारिता से विकसित एक विधा है जो घटनाओं का यथार्थ चित्रण करती है। मन्नू भंडारी, कमलेश्वर जैसे लेखकों ने इसे अपनाया।
डायरी एक व्यक्ति के दैनिक अनुभवों की अभिव्यक्ति है, जैसे अज्ञेय की डायरी-आधारित रचनाएँ।
संस्मरण किसी व्यक्ति विशेष अथवा घटना की स्मृति पर आधारित होती है। हरिवंश राय बच्चन और हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इसमें योगदान दिया।
यात्रा-वृत्तांत में यात्रा के दौरान के अनुभव और स्थलों का वर्णन होता है। राहुल सांकृत्यायन इसके प्रमुख लेखक हैं।

इन सभी विधाओं ने हिंदी गद्य को न केवल समृद्ध किया बल्कि उसमें विविधता और नवीनता भी प्रदान की।

प्रश्न-24. ‘जीवनी’ और ‘आत्मकथा’ में क्या अंतर है? उदाहरण सहित बताइए।

उत्तर:- जीवनी’ किसी व्यक्ति के जीवन की कथा होती है, जो प्रायः किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है। यह व्यक्ति विशेष के जीवन, उपलब्धियों और घटनाओं पर आधारित होती है। उदाहरण: ‘महात्मा गांधी’ पर लिखी गई ‘गांधी: एक जीवनी’।
‘आत्मकथा’ वह रचना है, जिसमें लेखक स्वयं अपने जीवन का वर्णन करता है। इसमें लेखक की दृष्टि, अनुभव और भावनाएँ प्रमुख होती हैं। उदाहरण: महात्मा गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’।
अतः जीवनी में वस्तुनिष्ठता अधिक होती है जबकि आत्मकथा में आत्मपरकता और आत्मनिरीक्षण प्रमुख होता है।

प्रश्न-25. अशोक के फूल’ निबन्ध का भाषिक सौन्दर्य निरूपित कीजिए।

उत्तर:- ‘अशोक के फूल’ हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित एक गम्भीर, भावप्रवण निबंध है, जिसमें लेखक ने प्रकृति की एक छोटी सी घटना के माध्यम से जीवन के गहन दर्शन को प्रस्तुत किया है।

इस निबंध का भाषिक सौंदर्य इसकी सरल, सरस और भावपूर्ण भाषा में निहित है। लेखक की शैली आत्मवृत्तात्मक, विचारप्रधान और काव्यात्मक है। प्रकृति का वर्णन करते समय उन्होंने फूलों, रंगों और भावनाओं को बड़े कोमल और सौम्य रूप में प्रस्तुत किया है।

जैसे—“वे अशोक के फूल जैसे ही होते हैं—न बोलते हैं, न चिल्लाते हैं, बस चुपचाप खिलते हैं।” इस तरह के वाक्य पाठक के मन में सौंदर्य और शांति का संचार करते हैं।

निबंध में प्रयुक्त प्रतीकात्मकता—अशोक का फूल एक जीवन-दर्शन का प्रतीक बन जाता है। भाषा में लालित्य, भाव-गंभीरता और सादगी का अद्भुत समन्वय है।

इस प्रकार ‘अशोक के फूल’ निबंध भाषिक सौंदर्य और भावनात्मक गहराई का श्रेष्ठ उदाहरण है।

प्रश्न-26. हिन्दी निबंध के विकास की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- हिन्दी निबंध का विकास 19वीं शताब्दी में हुआ, जब गद्य की विभिन्न विधाएँ विकसित हो रही थीं। प्रारंभिक दौर में निबंध अधिकतर विषय आधारित, सूचनात्मक और नीतिपरक हुआ करते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने गद्य लेखन की आधारशिला रखी लेकिन निबंध विधा को साहित्यिक स्वरूप देने का कार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने किया। द्विवेदी युग में निबंध को सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक विषयों पर केंद्रित किया गया। उन्होंने विषय के साथ गंभीरता, भाषा की शुद्धता और तर्क की स्पष्टता को महत्व दिया। बाद में रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद, हजारी प्रसाद द्विवेदी, और हरिशंकर परसाई जैसे निबंधकारों ने भावात्मक, आलोचनात्मक और व्यंग्यात्मक निबंधों की रचना की। स्वतंत्रता के बाद निबंध लेखन में व्यक्तिगत अनुभव, आत्मचिंतन, व्यंग्य और साहित्यिक सौंदर्य की प्रधानता बढ़ी। हिन्दी निबंध अब केवल ज्ञान नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति और विचार की स्वतंत्र विधा बन गया है।

प्रश्न-27. नाटक के उद्भव और विकास पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- नाटक साहित्य की एक प्राचीन विधा है जिसका उद्देश्य दृश्य और संवाद के माध्यम से जीवन की घटनाओं का मंच पर प्रस्तुतिकरण करना है।

उद्भव: भारत में नाटक का उद्भव वैदिक काल में ‘नाट्य वेद’ से माना जाता है। भरतमुनि का ‘नाट्यशास्त्र’ नाटक की सबसे प्राचीन और व्यवस्थित रचना है। संस्कृत नाटकों में कालिदास, भास, भवभूति आदि प्रमुख नाटककार रहे।

विकास: मध्यकाल में हिंदी नाटक की गति मंद रही, किंतु लोकनाट्य परंपराएं जैसे- नौटंकी, स्वांग, रामलीला आदि जीवित रहीं। आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘अंधेर नगरी’ जैसे सामाजिक नाटक लिखे और हिंदी नाटक की नींव रखी।

प्रसाद ने ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक नाटकों से इसे नई ऊँचाई दी। मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, लक्ष्मीनारायण लाल, शंकर शेष आदि ने सामाजिक, यथार्थवादी और प्रयोगधर्मी नाटकों को नया आयाम दिया।

इस प्रकार, हिंदी नाटक अपने उद्भव से लेकर आधुनिक युग तक विविध रूपों में विकसित हुआ है।

प्रश्न-28. ‘रेखाचित्र’ को परिभाषित करते हुए इस विधा के प्रमुख रचनाकारों का परिचय दीजिए।

उत्तर:- रेखाचित्र गद्य साहित्य की एक विधा है जिसमें किसी व्यक्ति, स्थान, घटना या स्थिति का सजीव चित्रण किया जाता है। यह न तो जीवनी होता है और न ही आत्मकथा, लेकिन इनमें व्यक्ति के बाह्य रूप, आचार-व्यवहार, स्वभाव और मानसिकता का चित्रात्मक वर्णन होता है। रेखाचित्र संक्षिप्त होते हुए भी गहरे प्रभाव छोड़ते हैं। इनका उद्देश्य पाठक के मन में चित्र सा अंकित कर देना होता है। हिन्दी में रेखाचित्र लेखन की परंपरा रामवृक्ष बेनीपुरी, बालमुकुंद गुप्त, पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, और हरिशंकर परसाई जैसे लेखकों से सशक्त हुई। बेनीपुरी ने पतिता और अंबपाली जैसे रेखाचित्रों में संवेदनशीलता और यथार्थ का सामंजस्य प्रस्तुत किया। परसाई ने व्यंग्यात्मक रेखाचित्रों के माध्यम से समाज की विसंगतियों को उजागर किया। रेखाचित्र साहित्य का वह आईना है जो व्यक्ति की भीतरी और बाहरी छवि को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

प्रश्न-29. हरिशंकर परसाई की निबन्ध कला की समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- हरिशंकर परसाई हिन्दी निबंध साहित्य के शीर्षस्थ व्यंग्यकार हैं। उनकी निबंध कला का मुख्य आधार है – समाज की विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य, हास्य के माध्यम से कटाक्ष और गहराई से सोचने की प्रेरणा।

उनके निबंधों में विषयों की विविधता मिलती है—राजनीति, धर्म, समाज, शिक्षा, मानव-स्वभाव आदि। ‘तिरछी रेखाएँ’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘सदाचार का तात्पर्य’ जैसे संग्रहों में उन्होंने समय की समस्याओं को व्यंग्य के माध्यम से उजागर किया।

परसाई की भाषा सरल, मुहावरेदार और चुटीली होती है। उनके निबंधों में हास्य और गंभीरता का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है।

वे अपने पाठकों को न केवल हँसाते हैं, बल्कि सोचने के लिए विवश भी करते हैं। उनकी दृष्टि मानवीय मूल्यों की रक्षा करती है और अंधविश्वास, पाखंड, भ्रष्टाचार का विरोध करती है।

इस प्रकार हरिशंकर परसाई की निबंध कला हिन्दी साहित्य को जागरूकता, सामाजिक आलोचना और व्यंग्य की नई दिशा देने वाली सिद्ध हुई है।

प्रश्न-30. एकांकी कला के आधार पर ‘आवाज की नीलामी’ एकांकी की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- ‘आवाज की नीलामी’ एक प्रभावशाली सामाजिक-राजनीतिक एकांकी है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवीय संवेदना और सत्ता के दबाव को केंद्रीय विषय बनाया गया है। इसमें एक कलाकार की आवाज को सत्ता द्वारा दबाने और उसके प्रतिरोध की कहानी प्रस्तुत की गई है।

एकांकी में शिल्प की दृष्टि से नाटकीयता, प्रतीकात्मकता और संवादों की तीव्रता का उत्कृष्ट प्रयोग हुआ है। ‘आवाज’ यहां केवल ध्वनि नहीं, बल्कि विचार, पहचान और अस्मिता का प्रतीक बन जाती है। मंच संयोजन सीमित होते हुए भी अत्यंत प्रभावशाली बनता है क्योंकि दर्शक को मानसिक रूप से झकझोर देता है।

एकांकी कला की विशेषताएँ जैसे एक दृश्य, सीमित पात्र, तीव्रता, संवेदना और प्रतीकात्मक भाषा इसमें स्पष्ट दिखाई देती हैं। संवाद छोटे लेकिन मार्मिक हैं। इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने आवाज़ के दमन की प्रक्रिया और उसके विरोध को कलात्मक रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे यह एक सामाजिक चेतना का दस्तावेज बन जाता है।

प्रश्न-31. एकांकी कला के आधार पर ‘आवाज का नीलाम’ एकांकी की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- ‘आवाज का नीलाम’ एक प्रभावशाली एकांकी है जो एकांकी की सभी प्रमुख विशेषताओं को पूर्ण रूप से प्रस्तुत करता है। इसमें एक ही दृश्य, सीमित पात्र और तीव्र भावनात्मक तनाव के माध्यम से सामाजिक विडंबनाओं को उजागर किया गया है। इस एकांकी में ‘आवाज’ के नीलामी का प्रतीकात्मक प्रयोग कर मानव संवेदना, स्वतंत्रता, विचारधारा और नैतिकता की गिरावट को दर्शाया गया है। एकांकी की प्रमुख विशेषताएँ – संक्षिप्तता, एकता, तीव्रता और गहन प्रभाव – इसमें स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं। इसमें संवाद प्रभावशाली और कथानक सघन है। लेखक ने प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से यह दिखाया है कि समाज में किस तरह विचार, आत्मा और आवाजें खरीदी-बेची जा रही हैं। यह एकांकी दर्शकों को झकझोरती है और सामाजिक चेतना को जाग्रत करती है। ‘आवाज का नीलाम’ एक सफल प्रयोगात्मक एकांकी है जो आधुनिक नाटक की दिशा को दर्शाती है।

प्रश्न-32. हिन्दी नाटक के विकास में जयशंकर प्रसाद के योगदान का विवेचन कीजिए।

उत्तर:- जयशंकर प्रसाद हिंदी नाटक के पुनरुद्धारकर्ता माने जाते हैं। उन्होंने नाटक को केवल मंचीय कला न मानकर साहित्य की एक गंभीर और समृद्ध विधा के रूप में प्रतिष्ठित किया।

प्रसाद ने ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक नाटकों की रचना की, जिनमें राष्ट्रीय चेतना, नारी विमर्श, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गौरव की झलक मिलती है। उनके प्रमुख नाटक ‘स्कंदगुप्त’, ‘चंद्रगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, और ‘अजातशत्रु’ हैं।

प्रसाद के नाटकों की भाषा काव्यात्मक और शुद्ध हिंदी की विशेषता लिए होती है। उन्होंने चरित्रों के मनोभावों को गहराई से उकेरा और संवादों को प्रभावशाली बनाया।

उनके नाटक इतिहास को महज पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक मूल्यबोध के साथ आधुनिक पाठकों और दर्शकों से जोड़ते हैं।

इस प्रकार, प्रसाद का योगदान हिंदी नाटक को साहित्यिक गरिमा और गहनता प्रदान करने में अद्वितीय है।

प्रश्न-33. कथेतर गद्य के विकास में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के योगदान की समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का ‘आधुनिक युग प्रवर्तक’ कहा जाता है। उन्होंने न केवल काव्य में, बल्कि कथेतर गद्य विधाओं – निबंध, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्त, जीवनी और पत्रकारिता में भी उल्लेखनीय योगदान दिया।

उनकी लेखनी में सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों की स्पष्ट झलक मिलती है। उनके निबंधों में भाषा सरल, प्रवाहमयी और व्यंग्यपूर्ण होती है, जैसे – भारत दुर्दशा, विविध विषयानंद आदि। उन्होंने पत्रकारिता को साहित्य से जोड़ा और ‘कविवचन सुधा’ जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी गद्य का विकास किया।

भारतेन्दु ने रिपोर्ताज शैली में सामाजिक विषयों पर टिप्पणियाँ कीं और यात्रा-वृत्तांत में स्थानों के साथ संवेदना और दृष्टिकोण को भी शामिल किया। उनके गद्य में भाषा-सजगता, जनसरोकार और भावपूर्ण प्रस्तुति होती थी। इस प्रकार भारतेन्दु ने हिंदी के कथेतर गद्य को आधुनिक दिशा दी और उसे विविध विधाओं में समृद्ध किया। वे इस क्षेत्र के प्रणेता के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे।

प्रश्न-34. धर्मवीर भारती के लघु नाटकों और एकांकियों का परिचय दीजिए।

उत्तर:- धर्मवीर भारती हिंदी के प्रमुख साहित्यकारों में से एक हैं, जिन्होंने एकांकी और नाट्य साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति ‘अंधायुग’ है, जो एक प्रतीकात्मक नाटक है और महाभारत के उत्तरकाल की घटनाओं पर आधारित है। इसमें युद्ध के बाद के नैतिक, मानसिक और सामाजिक संकट का चित्रण किया गया है।

धर्मवीर भारती के अन्य लघु नाटक और एकांकियाँ भी युग-सत्य, नैतिक द्वंद्व और मानवीय संघर्षों को केंद्र में रखती हैं। उनकी एकांकी रचनाएँ जैसे ‘कन्यादान’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘गुनाह कौन करता है’ आदि ने हिंदी रंगमंच को समृद्ध किया है।

उनकी रचनाओं में विचारशीलता, संवेदनशीलता और भाषा की गहराई मिलती है। वे अपने नाटकों के माध्यम से समाज की जटिलताओं, आंतरिक विघटन और नैतिक मूल्यों के पतन को उजागर करते हैं।

धर्मवीर भारती ने हिंदी एकांकी को गंभीर और चिंतनशील रूप प्रदान किया।

प्रश्न-35. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

“उत्कर्ष की ओर उन्मुख समष्टि का चैतन्य अपने ही घर से कहर कर दिया गया…”

उत्तर:- यह गद्यांश धर्मवीर भारती के नाटक “अंधायुग” से संबंधित है जिसमें ‘राम’ और उनके आदर्श का प्रतीकात्मक उल्लेख है। ‘उत्कर्ष’ यहाँ समाज या मानवता के आध्यात्मिक उत्थान का संकेत है। लेखक कहता है कि जब भी मनुष्य उन्नति की ओर बढ़ता है, उसे मूल्य चुकाना पड़ता है – जैसे राम को वनवास। ‘राम भीगे तो भींगें’ – इसका अर्थ है कि व्यक्ति कष्ट सहे, परंतु उसके आदर्शों की छवि, उसकी चेतना, उसका उत्कर्ष सुरक्षित रहना चाहिए। यह गद्यांश आदर्शों की अमरता, मूल्य की अवधारणा और ‘नर में नारायण’ के भाव को प्रस्तुत करता है। लेखक यह संदेश देता है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी कठिन क्यों न हों, मनुष्य को अपने भीतर की ईश्वरता, चेतना और आत्मशक्ति को बनाए रखना चाहिए। यह आध्यात्मिक ऊँचाई और मानवीय चेतना की गहन व्याख्या है।

प्रश्न-36. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

“भूमा का सुता और उसकी महत्ता का जिसको आभास मात्र हो जाता है, उसको ये नश्वर चमकीले प्रदर्शन अभिभूत नाहीं कर सकते, दूत। वह किसी बलवान की इच्छा का कीड़ा कंदुक नहीं बन सकता- तुम्हारा राजा अभी झेलम भी पार नहीं कर सका, फिर भी जगत् विजेता की उपाधि लेकर जगत की वंचित करता है। मैं लोभ से सम्मान से या भय से किसी के पास नहीं जा सकता।”

उत्तर:- यह गद्यांश जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ‘चंद्रगुप्त’ से लिया गया है। यह संवाद अम्बिकाशास्त्री का है, जो यूनानी दूत को उत्तर दे रहा है। अम्बिकाशास्त्री ‘भूमा’ (अधिभौतिक आत्मिक तत्त्व) की बात करते हुए कहते हैं कि जिसे उसकी अनुभूति हो जाती है, वह भौतिक प्रदर्शन, लालच या भय से प्रभावित नहीं होता।
वह सिकंदर जैसे शक्तिशाली शासक का विरोध करता है जो झेलम पार किए बिना ही ‘जगत विजेता’ कहलाता है। लेखक ने भारतीय आत्मगौरव, नैतिक बल और आध्यात्मिक ऊँचाई को इस संवाद में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।
इस गद्यांश के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि सच्चा बल बाहरी सत्ता में नहीं बल्कि आत्मबल और सांस्कृतिक चेतना में होता है। यह संवाद भारतीय दृष्टिकोण से विदेशी दमन के प्रतिरोध का प्रतीक है।

प्रश्न-37. लोक में फैली दुख की प्रत्रया…” गद्यांश की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

उत्तर:- यह गद्यांश ‘निबंधकार’ द्वारा जीवन के सौंदर्य और विरोधी तत्वों के सामंजस्य को दर्शाने हेतु प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि संसार में व्याप्त दुखों को दूर करने में जब करुणा और आनंद कला शक्तिशाली रूप धारण करती है, तब उसमें एक अद्भुत सौंदर्य उत्पन्न होता है। यह सौंदर्य उसकी भीषणता में छिपी मनोहरता, कटुता में मधुरता, और प्रचंडता में गहराई के रूप में प्रकट होता है। जीवन में विरोधी गुणों – जैसे कोमलता-कठोरता, कटुता-मधुरता, प्रचंडता-मृदुता – का संतुलन ही कर्म क्षेत्र का सौंदर्य है। लेखक इस सामंजस्य को लोक धर्म की पहचान मानता है। यही जीवन की सच्ची कला है, जो दुखों को भी सौंदर्य में बदल सकती है।

प्रश्न-38. निम्नलिखित गद्यांश की प्रसंगसहित व्याख्या कीजिए:

“इस प्रतीक्षा में एकाएक उसका दर्द उस दलती रात में उभर आगा और सोचने लगा आने वाली पीढ़ी पिछली पौड़ी की ममता को पीड़ा नहीं समझ पाती और पिछली पीढ़ी अपनी सन्तान के सम्भावित संकट की कल्पना मात्र से उद्विग्न हो जाती है। मन में यह प्रतीति ही नहीं होती कि अब सन्तान समर्थ है, बड़ा से बड़ा संकट झेल लेगी।”

उत्तर:-यह गद्यांश उस भावनात्मक द्वंद्व को प्रकट करता है जिसमें एक व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करता है, जबकि पीढ़ियों के बीच समझ का अंतर स्पष्ट होता है।

व्याख्या:
यहाँ लेखक पीढ़ियों के बीच की मानसिकता और संवेदनाओं के टकराव को उजागर कर रहा है। पुरानी पीढ़ी हमेशा अपनी संतान की चिंता में घुलती रहती है, उन्हें कमजोर और असहाय समझती है, जबकि नई पीढ़ी स्वतंत्र होकर समस्याओं का सामना करने में सक्षम हो चुकी होती है। परंतु यह विश्वास पुराने जनों के मन में नहीं बन पाता। यही सोच उन्हें दुख देती है। इस गद्यांश में पीड़ा, चिंता, ममता और पीढ़ियों के मानसिक अंतर की गहरी अभिव्यक्ति की गई है। यह भावात्मक द्वंद्व जीवन का यथार्थ है, जो हर युग में प्रासंगिक बना रहता है।

Section-C

प्रश्न-1.’एक दुराशा’ निबंध के प्रतिपाद्य एवं शिल्प की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- ‘एक दुराशा’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित एक अत्यंत प्रभावशाली निबंध है, जिसमें लेखक ने भारतीय समाज की तत्कालीन दुर्दशा, सांस्कृतिक विघटन और अंग्रेजी शिक्षा के प्रभाव को उजागर किया है। यह निबंध सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक चिंतन से युक्त है। इसमें लेखक ने भारतीय संस्कृति की उपेक्षा और पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण की कटु आलोचना की है।

प्रतिपाद्य (विषयवस्तु) की दृष्टि से यह निबंध एक प्रकार की निराशा का भाव लिए हुए है, लेकिन उसमें भी आशा की किरण है। लेखक ने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि आधुनिक शिक्षित वर्ग अपने देश, संस्कृति और भाषा से कटता जा रहा है। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने भारतीय युवाओं को अपने मूल संस्कारों से दूर कर दिया है। लेखक यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या भारतवासी कभी अपने गौरवपूर्ण अतीत को पहचान सकेंगे? क्या भारतीय आत्मगौरव को पुनः प्राप्त कर पाएंगे?

शिल्प की दृष्टि से यह निबंध अत्यंत प्रभावी एवं कलात्मक है। जयशंकर प्रसाद की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है जो गंभीर और भावपूर्ण शैली में निबंध को सजीव बनाती है। इसमें भावात्मकता, तर्क और कल्पना का सुंदर समन्वय है। लेखक की शैली आत्ममंथनात्मक है, जो पाठकों को भी आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करती है। वाक्य विन्यास सुसंगत और लयपूर्ण है। प्रसाद की काव्यात्मक भाषा निबंध को भावनात्मक गहराई प्रदान करती है।

इस निबंध में लेखक ने भारतीयता की पुनर्स्थापना की आवश्यकता को रेखांकित किया है। उनका मानना है कि जब तक भारत अपनी सांस्कृतिक जड़ों से नहीं जुड़ता, तब तक उसकी प्रगति अधूरी रहेगी। इस निबंध की विशेषता यह है कि यह केवल आलोचना तक सीमित नहीं है, बल्कि समाधान भी प्रस्तुत करता है—भारतीय शिक्षा, संस्कृति और भाषा की पुनर्प्रतिष्ठा।

इस प्रकार ‘एक दुराशा’ निबंध भारतीय समाज के सांस्कृतिक संकट की एक गहन व्याख्या प्रस्तुत करता है और पाठक को सोचने के लिए मजबूर करता है। यह निबंध जयशंकर प्रसाद की निबंधात्मक प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण है।

(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)

प्रश्न-2.चन्द्रगुप्त नाटक में व्यक्त देश-प्रेम की भावना और राष्ट्रीय चेतना पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।

उत्तर:- विशाखदत्त द्वारा रचित “चन्द्रगुप्त” एक ऐतिहासिक नाटक है, जो मौर्य वंश के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन, संघर्ष और राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए किए गए प्रयत्नों को दर्शाता है। इस नाटक में देश-प्रेम और राष्ट्रीय चेतना की भावना अत्यंत गहराई से व्यक्त हुई है। यह नाटक विदेशी शासन के विरुद्ध भारतीय आत्मबल और स्वाभिमान का प्रतीक बनकर उभरता है।

नाटक की पृष्ठभूमि में तत्कालीन भारत की राजनीतिक अवस्था, जब यूनानी आक्रांताओं ने देश की स्वतंत्रता को खतरे में डाल दिया था, प्रस्तुत की गई है। इस सन्दर्भ में चाणक्य का चरित्र अत्यंत प्रेरणादायक बन जाता है, जो स्वदेश की रक्षा के लिए अपने प्राणों तक की आहुति देने को तत्पर रहता है। चाणक्य की यह पंक्ति – “मैं भारत की धरती को विदेशी आक्रांताओं के पाँवों तले कुचलते नहीं देख सकता” – देशभक्ति की भावना का स्पष्ट उदाहरण है।

चन्द्रगुप्त का चरित्र भी राष्ट्रभक्ति की भावना से ओतप्रोत है। वह महज सिंहासन या सत्ता के लिए संघर्ष नहीं करता, बल्कि राष्ट्र को पराधीनता से मुक्त कराने के उद्देश्य से विद्रोह करता है। नाटक में विभिन्न पात्रों के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता सर्वोपरि होती है और उसे बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

“चन्द्रगुप्त” नाटक में राष्ट्रीय एकता, जनजागरण और स्वदेश प्रेम का संदेश भी निहित है। विशेष रूप से चाणक्य और चन्द्रगुप्त की संवादात्मक प्रस्तुतियाँ जनता को जागरूक करने, संगठित करने और देश की रक्षा के लिए प्रेरित करने का कार्य करती हैं।

अंततः, “चन्द्रगुप्त” केवल एक ऐतिहासिक नाटक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का दीपस्तंभ है, जो वर्तमान समाज को भी प्रेरणा देता है कि जब देश संकट में हो, तो एकजुट होकर उसका सामना करना चाहिए। इसमें निहित देशभक्ति, त्याग, बलिदान और राष्ट्रनिष्ठा की भावना आज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय है।

प्रश्न-3. ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ निबंध के प्रतिपाद्य एवं शिल्प की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ निबंध सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक प्रभावशाली व्यंग्य-निबंध है। इस निबंध में लेखक ने सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक ढोंग, पाखंड और दोहरे मानदंडों पर करारा व्यंग्य किया है। यह निबंध मानवीय संवेदना, नैतिकता और मूल्यों की गिरावट को उजागर करता है।

प्रतिपाद्य (विषयवस्तु):
निबंध का मूल प्रतिपाद्य यह है कि किस प्रकार आज के समाज में धर्म, विशेषतः राम जैसे चरित्रों को राजनीतिक औजार बना दिया गया है। राम, जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जो न्याय और करुणा के प्रतीक हैं, उनके नाम का उपयोग हिंसा, द्वेष और संकीर्ण राजनीति के लिए किया जा रहा है। परसाई यह दिखाना चाहते हैं कि अब ‘राम का मुकुट’ — यानी राम की गरिमा और आदर्श — धूमिल हो रहा है। यह ‘भीग रहा है’ का प्रतीकात्मक प्रयोग है, जिससे तात्पर्य है कि नैतिकता, सदाचार और धर्म की वास्तविकता अब आंसुओं में बह रही है।

लेखक आम जनता की पीड़ा को भी दर्शाते हैं, जिनका शोषण धर्म और राजनीति के गठजोड़ से हो रहा है। समाज में फैली भ्रष्टाचार, अन्याय, और असमानता के प्रति लेखक की पीड़ा इस निबंध में बार-बार उभर कर आती है।

शिल्प (रचना-कौशल):
हरिशंकर परसाई का शिल्प उनकी विशेष पहचान है। इस निबंध में भी उन्होंने प्रतीकों, बिंबों और व्यंग्य की तीक्ष्णता से पाठक को झकझोरने का कार्य किया है। ‘राम का मुकुट’ एक प्रतीक बन जाता है — नैतिकता, आदर्श, और गरिमा का। ‘भीगना’ भावनात्मक क्षरण का प्रतीक है।

भाषा सहज, व्यावहारिक, किंतु प्रभावशाली है। वाक्य विन्यास छोटा-छोटा और धारदार है, जो व्यंग्य को प्रभावी बनाता है। परसाई का व्यंग्य सतही नहीं है, वह गंभीर सामाजिक विश्लेषण करता है और पाठकों को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करता है।


‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ केवल एक व्यंग्य नहीं, बल्कि एक गहन सामाजिक चेतावनी है। यह धर्म के नाम पर हो रहे पाखंड का पर्दाफाश करता है और आदर्शों की पुनर्स्थापना की माँग करता है। शिल्प और प्रतिपाद्य की दृष्टि से यह निबंध हिन्दी व्यंग्य साहित्य की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है।

प्रश्न-4. हिन्दी गद्य के विकास को समझाते हुए कथेतर गद्य के क्षेत्र में भारतेन्दु के योगदान को रेखांकित कीजिए।

उत्तर:- हिन्दी गद्य साहित्य का विकास उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ, जिसमें आधुनिक हिन्दी गद्य को स्वरूप और दिशा देने का कार्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया। उन्हें ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह’ और ‘भारतेन्दु युग के प्रवर्तक’ के रूप में जाना जाता है। उनका योगदान विशेषतः कथेतर गद्य की विभिन्न विधाओं जैसे निबंध, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्त, व्यंग्य, आलोचना आदि के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारतेन्दु का गद्य सरल, सुबोध, प्रभावशाली और जनसामान्य के लिए उपयुक्त था। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक समस्याओं, राष्ट्रप्रेम, भाषा चेतना, धार्मिक अंधविश्वास और विदेशी शासन की कूटनीतियों पर खुलकर लिखा।

निबंध विधा में उनका योगदान ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है’, ‘पुनर्जन्म पर विचार’, ‘नारी शिक्षा’ जैसे विषयों पर लेखन से स्पष्ट होता है। उन्होंने हिंदी गद्य को सामाजिक उद्देश्य के साथ जोड़ा।

रिपोर्ताज और यात्रा-वृत्त की शैली में लिखे उनके लेख यथार्थ चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं। ‘वाराणसी दर्शन’, ‘दिल्ली दरबार का वर्णन’ जैसे वृत्तांतों में उन्होंने यात्रा और घटनाओं का विस्तृत एवं सरस वर्णन किया।

व्यंग्य के क्षेत्र में भारतेन्दु ने समाज की रूढ़ियों, पाखंड और राजनीतिक विडंबनाओं पर तीखा प्रहार किया। उनका व्यंग्य मार्मिक होते हुए भी व्यावहारिक और उद्देश्यपूर्ण था।

भारतेन्दु ने हिन्दी गद्य को केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति नहीं बल्कि समाज-सुधार, जनजागरण और राष्ट्रप्रेम का माध्यम बनाया। उन्होंने खड़ी बोली को प्रतिष्ठा दिलाई और गद्य को जनभाषा में प्रस्तुत किया।

इस प्रकार, कथेतर गद्य की लगभग सभी विधाओं की नींव भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने डाली। हिन्दी गद्य के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय और आधारभूत है। वे हिन्दी गद्य के युग निर्माता साहित्यकार थे।

प्रश्न-5. निबंध के विकास में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान का उल्लेख कीजिए।

उत्तर:- हिंदी साहित्य के इतिहास में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने हिंदी गद्य विशेषकर निबंध साहित्य को एक सुसंस्कृत एवं विवेचित रूप प्रदान किया। वे द्विवेदी युग के प्रवर्तक थे और ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक के रूप में उन्होंने हिंदी को एक परिष्कृत साहित्यिक भाषा का रूप दिया।

निबंध विधा के विकास में उनका योगदान कई स्तरों पर देखा जा सकता है:

  1. गंभीर विषयों का समावेश – द्विवेदी जी ने हिंदी निबंध को केवल मनोविनोद या सौंदर्य-वर्णन की सीमा से निकाल कर समाज, शिक्षा, नीति, धर्म, राजनीति और संस्कृति जैसे गंभीर विषयों से जोड़ा। इससे हिंदी निबंध अधिक उद्देश्यपूर्ण और प्रासंगिक बना।
  2. तथ्यपरक और तर्कशील लेखन – उनके निबंधों में तर्क, विवेक और तथ्यात्मकता प्रमुख रूप से दिखाई देती है। उन्होंने निबंध को एक चिंतनशील गद्य विधा के रूप में स्थापित किया।
  3. भाषा और शैली में शुद्धता – उन्होंने हिंदी निबंध को संस्कृतनिष्ठ, परिष्कृत और गद्य के अनुकूल भाषा प्रदान की। उनकी भाषा स्पष्ट, सुसंगत एवं प्रभावपूर्ण थी।
  4. शिक्षात्मक दृष्टिकोण – द्विवेदी जी के निबंधों में समाज सुधार, नैतिक मूल्यों और राष्ट्रभक्ति की भावना झलकती है। उनके निबंध पाठकों को दिशा देने का कार्य करते हैं।
  5. प्रेरणास्रोत के रूप में – उनके निबंधों ने जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, रामचंद्र शुक्ल जैसे लेखकों को प्रेरित किया, जिससे हिंदी निबंध विधा को और अधिक विस्तार मिला।

आचार्य द्विवेदी के प्रसिद्ध निबंधों में ‘नारी शिक्षा’, ‘देश-प्रेम’, ‘भारतीय संस्कृति’ आदि उल्लेखनीय हैं। वे अपने निबंधों के माध्यम से सामाजिक जागरूकता उत्पन्न करने में सफल रहे।

इस प्रकार, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को हिंदी निबंध का जनक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने इस विधा को एक दिशा, गाम्भीर्य और प्रतिष्ठा प्रदान की, जो आज भी अनुकरणीय है।

प्रश्न-6. नाटक और रंगमंच के अन्तः सम्बन्ध को समझाते हुए स्पष्ट कीजिए कि रंगमंच के बिना नाटक अधूरा है।

उत्तर:- नाटक और रंगमंच एक-दूसरे के पूरक हैं। नाटक जहाँ एक साहित्यिक रचना है, वहीं रंगमंच उस रचना को जीवन प्रदान करने का माध्यम है। नाटक को रंगमंच पर प्रस्तुत करने से ही उसकी सम्पूर्णता प्राप्त होती है। यदि नाटक केवल पाठ के रूप में सीमित रहे, तो वह केवल विचारों और कल्पनाओं तक सिमट कर रह जाता है, परंतु रंगमंच उसे जीवंत रूप देकर दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।

रंगमंच नाटक को दृश्य, श्रव्य और भावनात्मक प्रभाव के माध्यम से जनमानस तक पहुँचाता है। मंच सज्जा, अभिनय, प्रकाश व्यवस्था, संगीत और संवादों की प्रस्तुति द्वारा नाटक का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। दर्शक पात्रों के भाव, पीड़ा, हर्ष, क्रोध आदि को प्रत्यक्ष अनुभव कर पाते हैं। यह अनुभव केवल पठन से संभव नहीं होता।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद जैसे नाटककारों ने भी अपने नाटकों को मंचीय दृष्टिकोण से लिखा, जिससे उनके नाटकों को रंगमंच पर सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया जा सका। “अंधायुग”, “आधे-अधूरे”, “साकेत”, “ध्रुवस्वामिनी” आदि नाटकों की सफलता में रंगमंच की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

रंगमंच न केवल नाटक के कथ्य को प्रस्तुत करता है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदेशों को प्रभावी रूप से समाज तक पहुँचाता है। इसके माध्यम से कलाकार दर्शकों से सीधा संवाद स्थापित करते हैं, जो नाटक की शक्ति को और बढ़ाता है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि नाटक और रंगमंच का संबंध आत्मा और शरीर के समान है। रंगमंच के बिना नाटक केवल शब्दों का संग्रह है, जबकि रंगमंच उसे संवेदनाओं, क्रियाओं और संवादों के माध्यम से सजीव बनाता है। इसलिए, रंगमंच के अभाव में नाटक अधूरा माना जाता है।

प्रश्न-7. “रिपोर्ताज साहित्यिक विधा नहीं होते हुए भी अपने गुणों के कारण साहित्य में उतनी ही प्रसिद्ध है जितनी आमजन में।” कथन की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- रिपोर्ताज मूलतः पत्रकारिता की एक विधा है, जिसमें किसी घटना, स्थिति या स्थान का सजीव, तथ्यात्मक और भावनात्मक वर्णन किया जाता है। यह कथन इस ओर इंगित करता है कि यद्यपि रिपोर्ताज को पारंपरिक रूप से साहित्यिक विधा नहीं माना गया है, फिर भी उसके गुण—यथार्थता, संवेदनशीलता, प्रभावशीलता और भाषिक सौंदर्य—उसे साहित्य के समकक्ष खड़ा कर देते हैं।

रिपोर्ताज की विशेषताएँ:
रिपोर्ताज की प्रमुख विशेषता यह है कि वह किसी घटना या स्थिति को इस प्रकार प्रस्तुत करता है जैसे पाठक स्वयं वहाँ उपस्थित हो। इसमें कल्पना की बजाय अनुभव और विवरण की प्रधानता होती है। घटनाओं का कालक्रमानुसार विश्लेषण, पात्रों का चित्रण, संवादों का समावेश, और स्थान का जीवंत वर्णन इसे साहित्यिक रूप प्रदान करता है।

साहित्यिकता का तत्व:
हालाँकि रिपोर्ताज का उद्देश्य जानकारी देना होता है, परंतु उसके प्रस्तुतीकरण में भाषा की कलात्मकता, संवेदना, शैली और दृष्टिकोण ऐसे होते हैं जो साहित्य के गुणों से मेल खाते हैं। जब किसी पत्रकार या लेखक का दृष्टिकोण मानवीय, संवेदनात्मक और रचनात्मक होता है, तब वह रिपोर्ट साहित्यिक बन जाती है।

उदाहरण:
हिन्दी में मनोहर श्याम जोशी, रघुवीर सहाय, कमलेश्वर आदि ने ऐसे रिपोर्ताज लिखे हैं जो आज साहित्य का हिस्सा माने जाते हैं। ‘दिल्ली के दंगे’, ‘भूख की रिपोर्ट’, ‘बाढ़ का मंजर’ जैसे लेखन साहित्य और यथार्थ के बीच की दूरी को मिटाते हैं।

आमजन में लोकप्रियता:
रिपोर्ताज आमजन में लोकप्रिय इसलिए होता है क्योंकि यह उनकी वास्तविक समस्याओं, घटनाओं और अनुभवों को भाषा देता है। यही कारण है कि वह जनता की जुबान बन जाता है।


इस कथन की सटीकता इस बात में है कि रिपोर्ताज अपनी संवेदनशीलता, प्रस्तुति और यथार्थ की गहराई के कारण साहित्य का एक जीवंत रूप बन चुका है। यद्यपि इसे पारंपरिक साहित्यिक विधा नहीं कहा जाता, परंतु इसकी लोकप्रियता और प्रभावशीलता साहित्य से किसी भी प्रकार कम नहीं है।

प्रश्न-8. एकांकी कला के आधार पर ‘आवाज़ का नीलाम’ एकांकी की समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- ‘आवाज़ का नीलाम’ एक प्रभावशाली सामाजिक एकांकी है जिसकी रचना धर्मवीर भारती ने की है। यह एकांकी न केवल अपनी विषयवस्तु के कारण बल्कि शिल्प, संवाद और मंचीय प्रभाव के कारण भी हिन्दी एकांकी साहित्य में विशिष्ट स्थान रखता है।

एकांकी की विषयवस्तु:
यह एकांकी उस भयावह स्थिति को प्रस्तुत करता है जहाँ एक गरीब व्यक्ति की ‘आवाज़’ को भी नीलाम कर दिया जाता है। यह पूँजीवादी व्यवस्था और बाज़ारीकरण के उस अमानवीय स्वरूप पर तीखा प्रहार करता है जिसमें मनुष्य की आत्मा, आवाज़, भावनाएँ सब बिकाऊ हो जाती हैं।

एकांकी की कलात्मक विशेषताएँ:

  1. संक्षिप्तता: एकांकी में केवल एक घटना, एक मुख्य भाव और सीमित पात्र होते हैं, जिनका उद्देश्य एक प्रभावशाली संदेश देना होता है। ‘आवाज़ का नीलाम’ इस मानदंड पर खरा उतरता है।
  2. संवेदना और प्रतीकात्मकता: ‘आवाज़’ यहाँ प्रतीक है मनुष्य की गरिमा, आत्मा और अस्तित्व का। जब यह भी बिकने के लिए प्रस्तुत हो जाए तो समाज की अमानवीयता उजागर हो जाती है।
  3. संवादों की प्रभावशीलता: एकांकी में संवाद छोटे, अर्थपूर्ण और तीव्र भाव से युक्त हैं। वे दर्शकों को झकझोरते हैं।
  4. मंचीय प्रभाव: यह एकांकी मंच पर प्रभावी रूप से प्रस्तुत की जा सकती है। दृश्य संरचना और पात्रों की सशक्त प्रस्तुति इसे नाटकीय रूप देती है।

आवाज़ का नीलाम’ एकांकी कला की सभी विशेषताओं को समाहित करते हुए समाज की यथार्थपरक आलोचना प्रस्तुत करता है। यह एकांकी दर्शकों में करुणा, आक्रोश और जागरूकता उत्पन्न करता है। इसके माध्यम से लेखक यह संदेश देता है कि यदि मनुष्य की ‘आवाज़’ भी बिकने लगे तो यह सभ्यता के पतन का संकेत है।

प्रश्न-9. स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी व्यंग्यकारों का परिचय देते हुए प्रमुख व्यंग्य निबंधों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- स्वतंत्रता के पश्चात् हिन्दी साहित्य में व्यंग्य विधा का विकास विशेष रूप से हुआ। व्यंग्य एक ऐसी शैली है जिसमें लेखक समाज की विषमताओं, राजनीतिक विडंबनाओं, नैतिक पतन और सामाजिक कुरीतियों को हास्य की चाशनी में लपेटकर प्रस्तुत करता है। स्वतंत्रता के बाद के हिन्दी व्यंग्यकारों ने बदलते सामाजिक मूल्यों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक प्रपंचों पर करारा प्रहार किया।

हरिशंकर परसाई इस युग के प्रमुख व्यंग्यकार माने जाते हैं। उन्होंने ‘तट पर मैं रोता हूँ’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकास के बदले’ जैसे निबंधों में भारतीय राजनीति, नौकरशाही, सामाजिक भ्रष्टाचार और सांस्कृतिक पतन को गहरी मारकता के साथ प्रस्तुत किया। उनकी शैली में सहजता, व्यंग्यात्मकता और प्रभावशीलता है।

शरद जोशी एक अन्य महत्वपूर्ण व्यंग्यकार हैं जिन्होंने टीवी के लिए भी व्यंग्यात्मक लेखन किया। उनके निबंधों में ‘राह चलती बात’, ‘जी नहीं, धन्यवाद’, ‘कागद की लेखी’ में आम आदमी की पीड़ा, शहरी जीवन की विडंबनाएँ और व्यवस्था की खामियाँ उजागर हुई हैं।

कृष्ण चंदर ने अपने व्यंग्यों में मानवीय करुणा और हास्य का समन्वय किया है। ‘एक गधे की आत्मकथा’ उनका प्रसिद्ध व्यंग्य उपन्यास है जिसमें समाज की अनेक विसंगतियों पर प्रहार किया गया है।

सुरेंद्र शर्मा, रवींद्रनाथ त्यागी, और काका हाथरसी भी इस युग के व्यंग्यकार हैं जिन्होंने हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया।

स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी व्यंग्य साहित्य समाज के यथार्थ को उजागर करने वाली वह विधा बन गई जिसने आम जन की पीड़ा और असंतोष को साहित्यिक मंच पर प्रमुखता से स्थान दिया। व्यंग्यकारों ने भाषा की सहजता और तीक्ष्णता के साथ व्यवस्था को आईना दिखाने का कार्य किया।

प्रश्न-10. अंधायुग’ के कथानक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:- धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘अंधायुग’ आधुनिक हिंदी नाटक का एक अत्यंत प्रभावशाली उदाहरण है। यह एक काव्य-नाट्य है, जिसका आधार महाभारत का उत्तरकांड है। नाटक का केंद्र बिंदु कुरुक्षेत्र युद्ध के पश्चात की स्थिति है—जब युधिष्ठिर को राज्य सौंपा जाता है, गांधारी कृष्ण को शाप देती हैं और संपूर्ण सभ्यता युद्ध की विभीषिका से जूझ रही होती है।

कथानक की प्रमुख विशेषताएँ:

  1. उत्तर महाभारत पर आधारित – इस नाटक का कथानक महाभारत की उस स्थिति पर केंद्रित है, जहाँ युद्ध समाप्त हो चुका है और समाज एक नैतिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। इससे नाटक को एक गहरी दार्शनिकता प्राप्त होती है।
  2. नैतिक द्वंद्व – नाटक में पात्रों के अंतर्द्वंद्व विशेष रूप से उभरकर आते हैं। अश्वत्थामा का पश्चाताप, गांधारी की पीड़ा, युधिष्ठिर की आत्मग्लानि, विदुर की नैतिकता और कृष्ण की विवेकपूर्ण नीतिगत भूमिका कथानक को समृद्ध बनाती है।
  3. आधुनिक सन्दर्भों की प्रस्तुति – यद्यपि कथा प्राचीन है, लेकिन नाटककार ने उसे आधुनिक राजनीतिक एवं नैतिक संकटों से जोड़ा है। अंधायुग प्रतीक बन जाता है उस काल का, जब नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है और पूरी सभ्यता अंधकार की ओर बढ़ती है।
  4. काव्यात्मक प्रस्तुति – नाटक में संवाद पद्य रूप में हैं, जो कथानक को गहराई और कलात्मकता प्रदान करते हैं। इस काव्यात्मकता से पात्रों की मानसिक दशा और भावनाएँ प्रभावशाली रूप से व्यक्त होती हैं।
  5. प्रतीकों और मिथकों का प्रयोग – ‘अंधायुग’ में अंधकार, युद्ध, शाप, नगर, दीप आदि प्रतीकों का अत्यंत प्रभावशाली प्रयोग किया गया है, जिससे कथानक की परतें गहराती हैं।
  6. विरोधाभास और यथार्थबोध – नाटक में आदर्श और यथार्थ, नीति और राजनीति, धर्म और अधर्म के विरोधाभासों को दिखाया गया है। यह आधुनिक युग की विसंगतियों को भी प्रतिबिंबित करता है।

इस प्रकार ‘अंधायुग’ का कथानक केवल एक ऐतिहासिक कथा नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है मानव समाज के लिए, जो अंधकार की ओर बढ़ता है। इसमें अतीत के माध्यम से वर्तमान की गूढ़ समस्याओं का चित्रण किया गया है।

प्रश्न-11. हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘तिरछा हुआ गणतंत्र’ को व्यंग्य चेतना की दृष्टि से समझाइए।

उत्तर:- हरिशंकर परसाई हिन्दी व्यंग्य साहित्य के शीर्षस्थ लेखक माने जाते हैं। उनका व्यंग्य केवल हास्य उत्पन्न करने का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों पर गहरा प्रहार है। ‘तिरछा हुआ गणतंत्र’ शीर्षक से ही स्पष्ट है कि यह रचना भारतीय गणतंत्र की वास्तविक स्थिति पर एक तीखा व्यंग्य है।

इस व्यंग्य में परसाई जी ने लोकतंत्र की तथाकथित “महानता” की पोल खोलते हुए यह दिखाया है कि कैसे हमारे देश में लोकतंत्र का स्वरूप “जनतंत्र” से हटकर “नेतातंत्र”, “पदतंत्र” और “भ्रष्टतंत्र” बन चुका है। उन्होंने व्यवस्था की त्रुटियों, नेता वर्ग की अवसरवादिता, और जनमानस की उदासीनता को बड़े ही प्रभावी और करारे ढंग से प्रस्तुत किया है।

रचना की भाषा सरल, सहज तथा व्यंग्यात्मक है। उदाहरण के तौर पर वे लिखते हैं कि “गणतंत्र सीधा चलता था, अब तिरछा चलने लगा है। अब वह जनता की नहीं, सत्ता की सुनता है।” यह व्यंग्य लोकतंत्र की वर्तमान दुर्दशा को दर्शाने वाला प्रतीकात्मक वाक्य है।

‘तिरछा हुआ गणतंत्र’ के माध्यम से लेखक ने यह भी दिखाया है कि आज के जनप्रतिनिधि आमजन की समस्याओं से कटे हुए हैं, और सत्ता में पहुँचने के बाद वे अपने ही हितों में लिप्त हो जाते हैं। सरकारी तंत्र, मीडिया, प्रशासन सभी में व्याप्त भ्रष्टाचार और मूल्यहीनता पर कटाक्ष करते हुए परसाई जी व्यंग्य को जागरण का माध्यम बनाते हैं।

परसाई का यह व्यंग्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। यह पाठकों को हँसाते हुए सोचने पर मजबूर करता है और उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सजग बनाता है।

प्रश्न-12. चंद्रगुप्त’ नाटक की कथावस्तु को ध्यान में रखते हुए सिद्ध कीजिए कि यह एक ऐतिहासिक नाटक है ?

उत्तर:- जयशंकर प्रसाद रचित ‘चंद्रगुप्त’ एक ऐतिहासिक नाटक है, जिसमें मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन को आधार बनाकर राष्ट्रप्रेम, राजनीति, कूटनीति और नारी-श्रद्धा की उच्च अभिव्यक्ति की गई है। यह नाटक न केवल एक ऐतिहासिक घटना को दर्शाता है, बल्कि उस काल की राजनीतिक परिस्थितियों, सामाजिक संरचना और नीतियों को भी उजागर करता है।

नाटक की कथावस्तु चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन और चाणक्य की योजना के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें चंद्रगुप्त के जन्म से लेकर उसके मगध पर अधिकार और यूनानी आक्रांताओं से संघर्ष को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर चित्रित किया गया है। नंद वंश के अत्याचारों और चाणक्य की राजनीति के माध्यम से चंद्रगुप्त का सम्राट बनना ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है।

नाटक में चाणक्य, सेल्युकस, हेलेन, मालविका, अमोघ, सरायनंद आदि पात्र ऐतिहासिक तथा कल्पना से निर्मित हैं जो कथावस्तु को रोचक और प्रासंगिक बनाते हैं। चाणक्य की कूटनीति, विदेशी आक्रमणकारियों से टकराव और राष्ट्रप्रेम की भावना नाटक को एक प्रामाणिक ऐतिहासिक रंग प्रदान करती है।

इतिहास के अनुसार चंद्रगुप्त ने यूनानी आक्रमण का मुकाबला किया और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, जिसे इस नाटक में कल्पना और नाटकीयता के सहारे प्रभावी रूप से दर्शाया गया है। इसमें राजनीतिक षड्यंत्र, युद्धनीति, प्रेम और बलिदान के दृश्य हैं जो दर्शकों को उस युग में ले जाते हैं।

इस प्रकार, ‘चंद्रगुप्त’ नाटक ऐतिहासिक पात्रों, घटनाओं और वातावरण पर आधारित होते हुए भी कला और कल्पना का समुचित समन्वय करता है। इसीलिए इसे एक प्रभावशाली ऐतिहासिक नाटक माना जाता है।

प्रश्न-13. निम्नलिखित में से किन्हीं दो पर टिप्पणियाँ लिखिए:

उत्तर:- (i) हिन्दी रंगमंच
हिंदी रंगमंच का विकास भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का अभिन्न अंग रहा है। प्रारंभिक काल में लोकनाट्य जैसे नौटंकी, रामलीला, भगवतमेला ने इसकी नींव रखी। आधुनिक हिंदी रंगमंच की शुरुआत भारतेंदु हरिश्चंद्र से होती है, जिन्होंने ‘अंधेर नगरी’ जैसे नाटकों द्वारा समाज की समस्याओं को उजागर किया। प्रसाद युग में नाटकों का काव्यात्मक और ऐतिहासिक स्वरूप सामने आया। आज का हिंदी रंगमंच सामाजिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक विषयों को मंच पर लाने का सशक्त माध्यम बन गया है। अभिनेता, निर्देशक, तकनीकी मंच सज्जा, प्रकाश और संगीत के समन्वय ने इसे एक समृद्ध विधा बनाया है। आधुनिक रंगकर्मियों जैसे हबीब तनवीर, विजय तेंदुलकर, मोहन राकेश ने इसे नई ऊँचाई दी।

(ii) रिपोर्ताज
रिपोर्ताज एक गद्य विधा है, जो समाचार और साहित्य के बीच की सीमा को मिटाते हुए घटनाओं का यथार्थ चित्रण करती है। इसमें रिपोर्टिंग की वस्तुनिष्ठता और साहित्य की संवेदनशीलता का सुंदर समावेश होता है। हिंदी में अमृतलाल नागर, प्रभाष जोशी जैसे लेखकों ने रिपोर्ताज को साहित्यिक गरिमा दी। यह विधा पाठक को घटना का सजीव अनुभव कराती है। इसमें शैली जीवंत, भाषा सरल और विवरण सूक्ष्म होता है। आज के मीडिया और पत्रकारिता में इसका उपयोग व्यापक हो गया है, जिससे पाठक सूचनाओं के साथ संवेदनात्मक दृष्टिकोण भी प्राप्त करता है।

प्रश्न-14. कालमुकुन्द गुप्त द्वारा लिखित ‘एक दुराशा’ निबंध की मूल भावना पर विस्तार से प्रकाश डालिए।

उत्तर:- ‘एक दुराशा’ कालमुकुन्द गुप्त द्वारा लिखा गया एक प्रसिद्ध निबंध है, जो स्वदेश प्रेम, सांस्कृतिक चेतना और आत्मगौरव की भावना से ओतप्रोत है। इस निबंध की मूल भावना उस “दुराशा” को दर्शाना है जो लेखक की आत्मा में पल रही है—कि भारत एक दिन फिर से अपनी खोई हुई गरिमा, शक्ति और सांस्कृतिक वैभव को प्राप्त करेगा।

लेखक ने निबंध में उस समय के भारतीय समाज की दयनीय दशा, ब्रिटिश शासन की अन्यायपूर्ण नीतियाँ, और भारतीयों की मानसिक परतंत्रता को दर्शाया है। परंतु इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच भी लेखक आशा की एक किरण देखता है। यही आशा उसकी “दुराशा” है, क्योंकि वह वर्तमान में असंभव प्रतीत होती है, फिर भी उसका विश्वास अटूट है।

निबंध में लेखक की भाषा ओजपूर्ण और प्रेरणादायक है। वह भारतीय संस्कृति, भाषा, धर्म और गौरवशाली इतिहास की चर्चा करते हुए यह आग्रह करता है कि भारतीयों को आत्मगौरव की भावना को पुनः जागृत करना चाहिए। वह चाहता है कि भारतवासी अपने अतीत के गौरव को पहचानें और एक सशक्त राष्ट्र के निर्माण में योगदान दें।

‘एक दुराशा’ न केवल एक व्यक्ति की भावना है, बल्कि उस समय के सभी देशभक्त भारतीयों की भावना का प्रतीक है। यह निबंध भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मानसिक पृष्ठभूमि तैयार करता है और आत्मसम्मान तथा जागरूकता का संदेश देता है।

अतः ‘एक दुराशा’ केवल एक कल्पना नहीं, बल्कि भविष्य की संभावना की ओर इंगित करने वाली दृष्टि है। यह निबंध हमें बताता है कि यदि कोई व्यक्ति अथवा राष्ट्र अपने गौरव को पुनः प्राप्त करने का संकल्प ले, तो कोई भी बाधा स्थायी नहीं होती। यही इसकी मूल भावना है—उत्साह, स्वाभिमान और पुनर्जागरण की प्रेरणा।

प्रश्न-15. प्रसाद के नाटक साहित्य का परिचयात्मक विवरण देते हुए ‘चन्द्रगुप्त’ का स्थान निर्धारित कीजिए।

उत्तर:- जयशंकर प्रसाद हिन्दी नाटक साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उन्होंने आधुनिक हिन्दी नाट्यधारा को एक नया आयाम दिया और इतिहास, दर्शन, मनोविज्ञान और काव्य को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया। उनके नाटक ‘लक्ष्मी’, ‘जनमेजय का नागयज्ञ’, ‘स्कन्दगुप्त’, ‘ध्रुवस्वामिनी’, और ‘चन्द्रगुप्त’ जैसे ऐतिहासिक विषयों पर आधारित हैं।

प्रसाद के नाटक साहित्य की विशेषताएँ:

  1. इतिहास और कल्पना का समन्वय: प्रसाद के नाटकों में ऐतिहासिक घटनाओं के साथ कल्पनाशीलता का सुंदर मेल होता है।
  2. चरित्र-चित्रण: उनके नाटकों में नायकों के चरित्र उन्नत, गंभीर और आदर्शवादी होते हैं। स्त्री पात्र विशेष रूप से सशक्त होते हैं।
  3. काव्यात्मक भाषा: प्रसाद की भाषा शुद्ध, संस्कृतनिष्ठ और काव्यात्मक होती है, जिससे उनके नाटक सौंदर्य से भरपूर हो जाते हैं।
  4. दर्शन और आदर्शवाद: उनके नाटकों में आदर्शवाद का दर्शन स्पष्ट रूप से झलकता है। राष्ट्रीय चेतना और आत्मगौरव की भावना उनमें विद्यमान रहती है।

‘चन्द्रगुप्त’ का स्थान:
‘चन्द्रगुप्त’ नाटक प्रसाद के ऐतिहासिक नाटकों में विशेष स्थान रखता है। यह नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य की जीवन-यात्रा और चाणक्य की रणनीति पर आधारित है। नाटक में राजनीति, राष्ट्रप्रेम, नायकत्व और ध्येयनिष्ठा की अद्भुत झलक मिलती है।

इस नाटक में चन्द्रगुप्त एक ऐसे युवा के रूप में प्रस्तुत है जो अन्याय, विदेशी शासन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करता है। चाणक्य का चरित्र बुद्धि, रणनीति और देशभक्ति का प्रतीक है। नंद वंश का पतन और मौर्य वंश की स्थापना भारतीय गौरव को उद्घाटित करता है।


‘चन्द्रगुप्त’ नाटक प्रसाद के नाट्य साहित्य में एक प्रमुख स्थान रखता है। इसमें इतिहास को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करते हुए राष्ट्रीयता, आदर्शवाद और चरित्र-निर्माण की प्रेरणा दी गई है। प्रसाद ने हिन्दी नाटक को न केवल ऐतिहासिक धरातल दिया बल्कि उसे सांस्कृतिक और नैतिक मूल्य भी प्रदान किए।

प्रश्न-16. “मोहन राकेश के नाटकों में आधुनिक जीवन में व्यापा अकेलेपन, अवसाद, घुटन और तनाव की गहरी अभिव्यक्ति हुई है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

उत्तर:- मोहन राकेश हिंदी रंगमंच के प्रमुख स्तंभों में गिने जाते हैं। उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से न केवल आधुनिक भारतीय समाज की जटिलताओं को अभिव्यक्त किया, बल्कि मनुष्य की आंतरिक संवेदनाओं, द्वंद्वों और संकटों को भी चित्रित किया। उनके नाटकों में अकेलापन, अवसाद, घुटन और मानसिक तनाव जैसे भाव गहराई से उभरकर सामने आते हैं।

मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘आधे-अधूरे’ और ‘लहरों के राजहंस’ में आधुनिक जीवन की समस्याएँ गहराई से चित्रित हुई हैं। ‘आधे-अधूरे’ विशेष रूप से एक विखंडित मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है जिसमें प्रत्येक पात्र मानसिक रूप से असंतुलित है। परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने ढंग से अकेलेपन और अवसाद से जूझते दिखाई देते हैं। यह नाटक ‘घर’ की संस्था पर ही प्रश्नचिह्न लगाता है और उसमें व्याप्त संवादहीनता और आत्मीयता की कमी को दर्शाता है।

‘आषाढ़ का एक दिन’ में नायक कालिदास की द्वंद्वात्मक स्थिति, उसकी प्रिय मल्लिका से दूरी और आंतरिक अकेलापन अत्यंत मार्मिक ढंग से उभरा है। कालिदास अपने कर्तव्यों और प्रेम के बीच झूलता है, जिससे उसे मानसिक संताप और अकेलापन झेलना पड़ता है।

मोहन राकेश का तीसरा चर्चित नाटक ‘लहरों के राजहंस’ बुद्ध के जीवन से प्रेरित है, जिसमें यशोधरा के भीतर का भावनात्मक उथल-पुथल, त्याग की पीड़ा और पति की साधना के साथ उसका अंतर्द्वंद्व उभरा है। यहाँ भी तनाव, घुटन और अकेलेपन की अनुभूतियाँ प्रकट होती हैं।

मोहन राकेश के नाटक आत्म-संघर्ष, मानसिक उलझनों और सामाजिक विडंबनाओं से युक्त हैं। उनके पात्र किसी बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन की बजाय अपने भीतर चल रहे संघर्षों से जूझते रहते हैं। यही कारण है कि उनके नाटकों को ‘आधुनिकता का दर्पण’ कहा जाता है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि मोहन राकेश के नाटकों में आधुनिक व्यक्ति की टूटती हुई आत्मा, संबंधों की जटिलता और समाज की विडंबनाएँ अत्यंत प्रभावशाली ढंग से व्यक्त हुई हैं। अतः उपर्युक्त कथन पूर्णतः यथार्थपूर्ण है।

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