VMOU Paper with answer ; VMOU MAHI-01 Paper MA HISTORY , vmou History important question

VMOU MAHI-01 Paper MA 1st Year ; vmou exam paper

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VMOU MA 1st Year के लिए History ( MAHI-01 , ) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1.क्रांति को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- क्रांति एक तीव्र और व्यापक सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया है, जो मौजूदा व्यवस्था को बदल देती है।

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प्रश्न-2.पूँजीवादी से आपका क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:- पूँजीवाद एक ऐसी आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है और लाभ कमाना मुख्य उद्देश्य होता है।

प्रश्न-3.सामंतवाद की परिभाषा कीजिए।

उत्तर:- सामंतवाद वह सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था थी जिसमें भूमि के बदले सेवा दी जाती थी और शक्ति सामंतों के पास होती थी।

प्रश्न-4. महाद्वीपीय व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:- महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन द्वारा ब्रिटेन की आर्थिक नाकेबंदी के लिए बनाई गई प्रणाली थी।

प्रश्न-5. यूरोप के दो विचारकों के नाम लिखिए।

उत्तर:- जॉन लॉक और रूसो यूरोप के प्रमुख विचारक थे।

प्रश्न-6. ‘दास कैपिटल’ के बारे में आप क्या जानते हैं?

उत्तर:- दास कैपिटल’ कार्ल मार्क्स द्वारा लिखी गई पुस्तक है जो पूँजीवाद की आलोचना करती है

प्रश्न-7. बोस्टन टी पार्टी क्या है?

उत्तर:- बोस्टन टी पार्टी 1773 की एक घटना थी जिसमें अमेरिकी उपनिवेशवादियों ने ब्रिटिश चाय कर के विरोध में चाय समुद्र में फेंकी।

प्रश्न-8. नेपोलियन कोड (विधान) की दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:- (1) सभी नागरिकों के लिए समान कानून, (2) जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों की समाप्ति।

प्रश्न-9. समाजवाद को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- समाजवाद एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व समाज या राज्य के पास होता है।

प्रश्न-10. उदारवाद’ की परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- उदारवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जो स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन पर बल देती है।

प्रश्न-11. फ्रांसीसी क्रांति के नारे क्या थे ?

उत्तर:- “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” (Liberty, Equality, Fraternity)

प्रश्न-12. कार्ल मार्क्स के समाजवाद को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- कार्ल मार्क्स का समाजवाद वर्गहीन समाज की स्थापना पर आधारित है जिसमें उत्पादन के साधनों पर समाज का सामूहिक नियंत्रण होता है।

प्रश्न-13. यूरोप के दो कारखानों के नाम लिखिए।

उत्तर:- मैनचेस्टर का वस्त्र उद्योग और बर्मिंघम का लोहे का कारखाना।

प्रश्न-14. फ्रांसीसी क्रांति की बौद्धिक पृष्ठभूमि बताइए।

उत्तर:- फ्रांसीसी क्रांति की बौद्धिक पृष्ठभूमि में रूसो, लॉक, वोल्टेयर जैसे दार्शनिकों के विचार शामिल थे, जिन्होंने स्वतंत्रता, समानता और मानवाधिकारों पर बल दिया।

प्रश्न-15. श्रमजीवी वर्ग के बारे में आप क्या जानते हैं?

उत्तर:- श्रमजीवी वर्ग वे लोग होते हैं जो मजदूरी या श्रम द्वारा अपनी जीविका चलाते हैं।

प्रश्न-16. पूर्वीय समस्या से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर:- यह समस्या उस राजनीतिक संघर्ष को दर्शाती है जो ऑटोमन साम्राज्य के पतन के बाद यूरोपीय शक्तियों के बीच उसके क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए हुआ।

प्रश्न-17. मैग्ना कार्टा’ के विषय में आप क्या जानते हैं?

उत्तर:- मैग्ना कार्टा 1215 ई. में इंग्लैंड के राजा से अधिकार प्राप्त करने हेतु बारन्स द्वारा थोपे गए अधिकारों का दस्तावेज़ था।

प्रश्न-18. बाल्टेयर कौन था?

उत्तर:- बाल्टेयर 18वीं सदी का एक प्रमुख फ्रांसीसी दार्शनिक और लेखक था जिसने धार्मिक कट्टरता और निरंकुशता का विरोध किया।

प्रश्न-19. फ्रांसीसी क्रांति के दो कारण बताइए।

उत्तर:-राजनीतिक अत्याचार और आर्थिक असमानता।

प्रश्न-20. कार्ल मार्क्स कौन था?

उत्तर:-कार्ल मार्क्स एक जर्मन दार्शनिक और समाजवादी विचारक था जिसने वर्ग संघर्ष और समाजवाद का सिद्धांत दिया।

प्रश्न-21. अमेरिकन संविधान की दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:-(1) संघीय व्यवस्था, (2) अधिकारों का विधिवत उल्लेख (बिल ऑफ राइट्स)।

प्रश्न-22. ‘मेनर व्यवस्था क्या है?

उत्तर:- मेनर व्यवस्था एक मध्यकालीन कृषि प्रणाली थी जिसमें एक ज़मींदार की जागीर पर किसान कार्य करते थे और बदले में सुरक्षा प्राप्त करते थे।

प्रश्न-23. सर्फ कौन थे ?

उत्तर:- सर्फ मध्यकालीन यूरोप में वे किसान थे जो सामंतों की भूमि पर काम करते थे और उनके अधीन होते

प्रश्न-24. क्रांति का पुत्र किसे कहा जाता है ?

उत्तर:- नेपोलियन बोनापार्ट

प्रश्न-25. फ्यूडल सोसाइटी’ किसने लिखी?

उत्तर:- मार्क ब्लॉक (Marc Bloch

प्रश्न-26. फिलाडेल्फिया सम्मेलन पर एक टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:-फिलाडेल्फिया सम्मेलन 1787 में अमेरिका में संविधान निर्माण हेतु आयोजित किया गया था जिसमें अमेरिकी संविधान का मसौदा तैयार हुआ।

प्रश्न-27. यूरोप के बीमार आदमी से आप क्या समझते हैं?

उत्तर:- ‘यूरोप का बीमार आदमी’ ओटोमन साम्राज्य को कहा जाता था, जो 19वीं सदी में कमजोर और विघटन की स्थिति में था।

प्रश्न-28. रिचर्ड आर्कराइट कौन था ?

उत्तर:- रिचर्ड आर्कराइट एक ब्रिटिश आविष्कारक था जिसने स्पिनिंग फ्रेम (स्पिनिंग जैनी) का विकास किया।

प्रश्न-29. सामंतवाद की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर:- SECTION-C QUESTION-9

प्रश्न-30. ‘वैकोबिन क्लब’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर:- वैकोबिन क्लब फ्रांसीसी क्रांति के दौरान एक कट्टरपंथी राजनीतिक संगठन था, जिसका नेतृत्व रोब्स्पीयर ने किया।

प्रश्न-31. ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ किसने लिखी थी?

उत्तर:- एडम स्मिथ ने 1776 में

प्रश्न-32. वाल्टेयर के विषय में आप क्या जानते हो ?

उत्तर:- वाल्टेयर फ्रांस का प्रसिद्ध दार्शनिक था जिसने धार्मिक अंधविश्वास और निरंकुशता के खिलाफ लिखा।

प्रश्न-33. फ्रांस की क्रान्ति ने किन सिद्धान्तों का प्रस्तुतीकरण किया ?

उत्तर:- स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (Liberty, Equality, Fraternity)

प्रश्न-34. ‘मेनर व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?

उत्तर:-मेनर व्यवस्था मध्यकालीन यूरोप की एक कृषक-आधारित सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था थी, जिसमें ज़मींदार के अधीन किसान कार्य करते थे।

प्रश्न-35. यूरोप में उदारवाद की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:- यूरोप में उदारवाद का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता, विधि द्वारा शासन और लोकतांत्रिक अधिकारों की स्थापना की मांग।

Section-B

प्रश्न-1.औद्योगिक क्रांति के बारे में आप क्या जानते हैं?

उत्तर:- औद्योगिक क्रांति एक ऐतिहासिक परिवर्तन था जो 18वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लैंड से शुरू हुआ और फिर पूरे यूरोप व अमेरिका में फैल गया। इस क्रांति ने पारंपरिक हस्तशिल्प आधारित उत्पादन की जगह मशीनों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादन को जन्म दिया।

यह क्रांति मुख्यतः कपड़ा उद्योग, लोहा, कोयला और परिवहन (रेलवे) क्षेत्रों में देखने को मिली। इसके पीछे मुख्य कारणों में वैज्ञानिक खोजें, नई तकनीकें (जैसे – भाप इंजन), पूंजी का संग्रह, और उपनिवेशों से प्राप्त कच्चा माल था।

इस क्रांति से उत्पादन की क्षमता बढ़ी, श्रमिक वर्ग का उदय हुआ और शहरीकरण को गति मिली। लेकिन इससे सामाजिक असमानता, श्रमिक शोषण, बाल श्रम और पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं।

औद्योगिक क्रांति ने आधुनिक पूंजीवाद, श्रमिक आंदोलनों, और शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन आदि क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन लाकर आधुनिक समाज की नींव रखी।

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प्रश्न-2.फ्रांसीसी क्रांति के प्रभावों का परीक्षण कीजिए

उत्तर:- फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने यूरोप और विश्व के इतिहास को गहराई से प्रभावित किया। इसके प्रभाव अनेक स्तरों पर देखे गए:

  1. राजनीतिक प्रभाव: इस क्रांति ने राजशाही को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना की। “स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व” के सिद्धांतों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को स्थापित किया।
  2. सामाजिक प्रभाव: समाज में वर्ग आधारित भेदभाव समाप्त हुआ। चर्च और अभिजात वर्ग की विशेषाधिकार समाप्त किए गए।
  3. आर्थिक प्रभाव: सामंतवाद के अवशेषों को हटाया गया। कर प्रणाली में सुधार किया गया और भूमि का पुनर्वितरण हुआ।
  4. वैचारिक प्रभाव: इस क्रांति ने उदारवाद, राष्ट्रवाद और मानवाधिकारों की अवधारणाओं को जन्म दिया, जिससे अन्य देशों में भी क्रांतियों की प्रेरणा मिली।
  5. वैश्विक प्रभाव: इसने लैटिन अमेरिका, इटली, जर्मनी जैसे देशों में भी स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया।

फ्रांसीसी क्रांति आधुनिक युग की आधारशिला बनी और आज भी इसके सिद्धांत मानवाधिकारों के मूल में मौजूद हैं।

प्रश्न-3. यूरोप में 18वीं शताब्दी के किसान विद्रोहों पर एक मंक्षिप्त लेख लिखिए।

उत्तर:-18वीं शताब्दी में यूरोप में अनेक किसान विद्रोह हुए, जिनका कारण सामंती शोषण, करों का अत्यधिक बोझ और अकाल जैसी समस्याएँ थीं। फ्रांस, जर्मनी, रूस और इंग्लैंड जैसे देशों में किसानों ने उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाई।

फ्रांस में किसान क्रांति का एक प्रमुख कारण बना, जहाँ वे सामंतों द्वारा वसूले जाने वाले टैक्सों और मेहनताना के खिलाफ हो गए। फ्रांसीसी क्रांति में भी किसानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रूस में ‘पुगाचेव विद्रोह’ (1773-75) सबसे प्रसिद्ध था, जहाँ किसानों ने ज़ार और सामंती व्यवस्था के खिलाफ बगावत की।

इन विद्रोहों में किसानों ने स्थानीय जमींदारों के खिलाफ हथियार उठाए, अन्नागारों को लूटा और कर व्यवस्था का विरोध किया।

हालाँकि इन विद्रोहों को कुचल दिया गया, लेकिन इन्होंने आगे चलकर क्रांतिकारी आंदोलनों की नींव रखी और यूरोप में सामंती व्यवस्था के अंत में योगदान दिया।

प्रश्न-.4. धर्म सुधार आन्दोलन के स्वरूप का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- धर्म सुधार आन्दोलन (Reformation Movement) 16वीं शताब्दी में यूरोप में आरंभ हुआ एक धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन का आंदोलन था। इसका नेतृत्व मार्टिन लूथर, जॉन कैल्विन और ज्विंगली जैसे धर्मगुरुओं ने किया। इसका मुख्य उद्देश्य कैथोलिक चर्च की बुराइयों, भ्रष्टाचार और पापमुक्ति पत्र (Indulgences) की बिक्री का विरोध करना था।

इस आन्दोलन ने ‘बाइबल’ को धार्मिक जीवन का एकमात्र आधार माना और चर्च की शक्ति को सीमित किया। इससे प्रोटेस्टेंट धर्म की स्थापना हुई जो रोमन कैथोलिक धर्म से भिन्न था। यह आन्दोलन धर्म के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने शिक्षा, राजनीति और समाज को भी प्रभावित किया। लोगों में व्यक्तिगत विवेक और धर्म की स्वतंत्र व्याख्या का विचार बढ़ा।

इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप यूरोप में धार्मिक विविधता बढ़ी और चर्च की सत्ता में कमी आई। धर्म सुधार आन्दोलन ने आधुनिक युग की नींव रखी तथा लोकतांत्रिक और उदारवादी मूल्यों को जन्म दिया।

प्रश्न-5.नेपोलियन पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।

उत्तर:- नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का एक महान सैन्य नेता और सम्राट था, जिसने फ्रांसीसी क्रांति के पश्चात यूरोप की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। वह 1769 में कोर्सिका द्वीप में जन्मा और एक सामान्य सैनिक के रूप में सेना में शामिल हुआ।

नेपोलियन ने अपनी सैन्य प्रतिभा के बल पर फ्रांसीसी सेना में उच्च पद प्राप्त किए और 1799 में तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली। 1804 में उसने स्वयं को फ्रांस का सम्राट घोषित किया। नेपोलियन ने यूरोप के अनेक देशों पर विजय प्राप्त की और ‘नेपोलियन संहिता’ (Napoleonic Code) लागू की, जो समानता, धर्मनिरपेक्षता और निजी संपत्ति के अधिकारों पर आधारित थी।

हालाँकि, उसका रूस अभियान असफल रहा और 1815 में वाटरलू के युद्ध में पराजित होकर उसे निर्वासित कर दिया गया। 1821 में उसकी मृत्यु हो गई।

नेपोलियन को यूरोपीय राजनीति में परिवर्तनकारी नेता माना जाता है जिसने आधुनिक यूरोप की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न-6.यूरोप में शहरीकरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- यूरोप में शहरीकरण का आरंभ औद्योगिक क्रांति (18वीं शताब्दी) के साथ हुआ। इससे पहले यूरोप मुख्यतः एक कृषिप्रधान समाज था, जहाँ अधिकतर लोग गाँवों में रहते थे। जैसे-जैसे उद्योग-धंधों का विकास हुआ, वैसे-वैसे लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर आकर्षित होने लगे।

कारखानों, रेलवे, खदानों और व्यापारिक केंद्रों के विकास ने शहरी क्षेत्रों को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में बदल दिया। इसके परिणामस्वरूप लंदन, पेरिस, मैनचेस्टर, बर्लिन आदि शहरों का तेजी से विकास हुआ।

हालाँकि, इस शहरीकरण से अनेक समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं जैसे – जनसंख्या की अधिकता, प्रदूषण, आवास की कमी, अस्वास्थ्यकर परिस्थितियाँ और श्रमिकों का शोषण। इसके बावजूद, शहरीकरण ने सामाजिक गतिशीलता, शिक्षा और आधुनिक जीवनशैली को बढ़ावा दिया।

यूरोप में शहरीकरण एक ऐतिहासिक प्रक्रिया रही है, जिसने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को परिवर्तित किया और आधुनिक राष्ट्र-राज्यों के विकास में योगदान दिया।

प्रश्न-7.19वीं शताब्दी के बुद्धिजीवी वर्ग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।

उत्तर:- 19वीं शताब्दी का बुद्धिजीवी वर्ग सामाजिक, राजनीतिक और वैज्ञानिक चेतना के विकास में अत्यंत प्रभावशाली रहा। यह वर्ग साहित्यकारों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और समाज सुधारकों से मिलकर बना था। उन्होंने स्वतंत्रता, समानता, वैज्ञानिक सोच और मानवाधिकारों की अवधारणाओं को बढ़ावा दिया।
इस युग में कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स, जॉन स्टुअर्ट मिल, टॉमस जेफरसन, चार्ल्स डार्विन, विक्टर ह्यूगो, टॉलस्टॉय और रूसो जैसे महान विचारक सामने आए। इन्होंने पूंजीवाद की आलोचना की, समाजवाद का प्रचार किया, धर्म और परंपराओं की पुनर्व्याख्या की और समाज को आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा दी।
इस वर्ग ने प्रेस, शिक्षा और लेखन के माध्यम से समाज को जागरूक किया। उन्होंने समाज में परिवर्तन और सुधार के लिए विचारधारात्मक आधार तैयार किया। यही वर्ग आगे चलकर राजनीतिक आंदोलनों और क्रांतियों का नेतृत्व भी बना।
इस प्रकार, 19वीं शताब्दी के बुद्धिजीवी वर्ग ने आधुनिक विश्व के निर्माण में बौद्धिक और नैतिक दिशा प्रदान की।

प्रश्न-8.यूरोप में चर्च की भूमिका का परीक्षण कीजिए।

उत्तर:- मध्यकाल से लेकर आधुनिक काल तक यूरोप में चर्च (Church) की भूमिका अत्यंत प्रभावशाली रही है। प्रारंभ में चर्च केवल धार्मिक संस्था नहीं थी, बल्कि यह राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी केंद्र था।
कैथोलिक चर्च विशेष रूप से पोप की सत्ता के अधीन था, जो राजाओं और साम्राज्यों पर भी अधिकार रखता था। चर्च ने शिक्षा, चिकित्सा, विज्ञान और न्याय व्यवस्था में भी अपनी भूमिका निभाई।
हालाँकि, समय के साथ चर्च में भ्रष्टाचार और कट्टरता बढ़ी, जिससे धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई। इसके बावजूद चर्च ने यूरोप में कला, वास्तुकला (जैसे गॉथिक चर्च), संगीत और साहित्य के विकास में योगदान दिया।
आधुनिक युग में चर्च की शक्ति में कमी आई, लेकिन यह अभी भी समाज सेवा, नैतिक शिक्षा और मानव कल्याण के कार्यों में सक्रिय है। चर्च ने धार्मिक सहिष्णुता और मानव अधिकारों के प्रचार में भी भूमिका निभाई।
इस प्रकार, यूरोप में चर्च की भूमिका ऐतिहासिक रूप से गहरी, बहुआयामी और समय के अनुसार परिवर्तित होती रही है।

प्रश्न-9. यूरोप के प्रमुख उद्योगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- यूरोप औद्योगिक क्रांति का जन्मस्थल रहा है, इसलिए यहाँ विभिन्न प्रकार के उद्योग विकसित हुए। सबसे प्रमुख उद्योगों में लौह व इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, मशीन निर्माण, रसायन उद्योग, ऑटोमोबाइल, विद्युत और विमानन उद्योग शामिल हैं।
ब्रिटेन में मैनचेस्टर और बर्मिंघम वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध रहे। जर्मनी में राइन क्षेत्र में भारी उद्योग, कोयला, स्टील और रसायन उद्योग अत्यंत विकसित हैं। फ्रांस में पेरिस और ल्योन कपड़ा, फैशन और मशीनरी निर्माण के लिए प्रसिद्ध हैं।
स्विट्जरलैंड घड़ी और चॉकलेट उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। इटली में रोम और मिलान फैशन और कारखानों के लिए प्रसिद्ध हैं। रूस में भारी उद्योग और हथियार निर्माण उद्योगों का व्यापक विकास हुआ।
इसके अलावा यूरोप में जहाज निर्माण, बिजली उत्पादन, इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों ने वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बनाई है। इन उद्योगों ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया और रोजगार के अवसर बढ़ाए।

प्रश्न-10. अमेरिकन स्वतंत्रता संग्राम पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- SECTION-C QUESTION-3

प्रश्न-11. तुर्की की अर्थव्यवस्था और समाज का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- तुर्की की अर्थव्यवस्था एक मिश्रित प्रणाली है, जिसमें कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र तीनों प्रमुख हैं। यह देश ऐशिया और यूरोप के बीच स्थित होने के कारण व्यापारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कृषि में गेहूं, कपास, जैतून और अंगूर मुख्य फसलें हैं। उद्योग क्षेत्र में वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल उत्पादन प्रमुख हैं। तुर्की पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है, जिससे विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।

तुर्की का समाज परंपराओं और आधुनिकता का मिश्रण है। यहाँ इस्लाम धर्म प्रमुख है, परंतु संविधाननात्मक रूप से यह एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। महिलाएं शिक्षा और नौकरी में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। युवा वर्ग आधुनिक जीवनशैली अपनाता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में परंपराएं अभी भी प्रबल हैं।

इस प्रकार तुर्की का समाज परिवर्तनशील होते हुए भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है और उसकी अर्थव्यवस्था विकासशील मार्ग पर अग्रसर है।

प्रश्न-12. अमेरिकन संविधान पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- SECTOIN – C QUESTION-2

प्रश्न-13. रूसी अर्थव्यवस्था की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- रूसी अर्थव्यवस्था विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, जिसका इतिहास साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण से जुड़ा हुआ है। सोवियत संघ के दौरान यह केंद्रीकृत योजना आधारित अर्थव्यवस्था थी, जहाँ सभी उत्पादन के साधन राज्य के नियंत्रण में थे।
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाया। इसके बाद निजीकरण, विदेशी निवेश और मुक्त व्यापार को बढ़ावा मिला।
रूस की अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित है, विशेषतः तेल, गैस, कोयला और खनिज पर। ऊर्जा निर्यात इसका प्रमुख आय स्रोत है। इसके अलावा कृषि, निर्माण, रक्षा, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष तकनीक भी इसकी अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्र हैं।
हाल के वर्षों में रूस को पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों, मुद्रास्फीति और राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा है, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है।
फिर भी, रूस की तकनीकी और रक्षा क्षमता, प्राकृतिक संसाधन और क्षेत्रीय प्रभुत्व इसे वैश्विक आर्थिक शक्ति बनाए रखते हैं।

प्रश्न-14. व्यापारियों के व्यापारिक संघों के मध्य सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।

उत्तर:-मध्यकालीन यूरोप में व्यापारियों के व्यापारिक संघों (Guilds) और उनके बीच गहरा संबंध था। ये संघ व्यापारियों की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुरक्षा के लिए बनाए जाते थे। इनका उद्देश्य गुणवत्तायुक्त वस्तु उत्पादन, मूल्य नियंत्रण और व्यापार में अनुशासन बनाए रखना होता था।

व्यापारी संघ (Merchant Guilds) स्थानीय स्तर पर व्यापारियों की गतिविधियों को नियंत्रित करते थे। वे नई व्यापारिक नीतियों को तय करते, करों का भुगतान करते, और व्यापार मार्गों की सुरक्षा का ध्यान रखते। वहीं, शिल्पकार संघ (Craft Guilds) उत्पादन से जुड़ी कार्यशालाओं और उनके श्रमिकों को संगठित करते थे।

दोनों प्रकार के संघों के बीच सामंजस्य और सहयोग आवश्यक था। व्यापारी संघ वस्तुओं के व्यापार को बढ़ावा देते थे, जबकि शिल्पकार संघ वस्तुओं के उत्पादन की गुणवत्ता सुनिश्चित करते थे। कभी-कभी इन संघों के बीच प्रतिस्पर्धा भी होती थी, परंतु व्यापारिक व्यवस्था को बनाए रखने में दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

प्रश्न-15. शहरीकरण की परिभाषित कीजिए और यूरोप में शहरों के विकास को बताइए

उत्तर:- शहरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर स्थानांतरित होता है और शहरों का आकार, जनसंख्या और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं। यह प्रक्रिया औद्योगिक क्रांति के बाद तेज़ी से बढ़ी।

यूरोप में शहरीकरण का प्रारंभ मध्ययुगीन काल में हुआ, जब व्यापारिक मार्गों पर छोटे-छोटे नगर बसने लगे। पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति ने शहरों के विकास को तीव्र गति दी। लंदन, पेरिस, एम्स्टर्डम, बर्लिन जैसे शहरों में जनसंख्या में तेज़ वृद्धि हुई। ये शहर व्यापार, उद्योग और प्रशासन के केंद्र बन गए।

शहरों में परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ, जिससे वहाँ की जीवनशैली में परिवर्तन आया। परंतु, अधिक जनसंख्या, बेरोजगारी और गंदगी जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं।

इस प्रकार, यूरोप में शहरीकरण ने न केवल आर्थिक परिवर्तन लाए, बल्कि सामाजिक ढांचे और जीवनशैली को भी प्रभावित किया।

प्रश्न-16. यूरोप में चर्चों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर:- चर्चों ने यूरोप के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मध्यकाल में कैथोलिक चर्च न केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक और सामाजिक जीवन का भी केंद्र था। पोप को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था और राजा तक उसके आदेशों के अधीन थे।

चर्च ने शिक्षा, चिकित्सा और धर्म प्रचार में योगदान दिया। मठों और गिरजाघरों ने पांडुलिपियाँ संरक्षित रखीं और ज्ञान को संचित किया। परंतु धीरे-धीरे चर्च में भ्रष्टाचार और लालच बढ़ा, जिससे धर्म सुधार आंदोलन प्रारंभ हुआ।

पुनर्जागरण और आधुनिक युग में चर्च की शक्ति कम हुई, परंतु वह अभी भी नैतिक और सांस्कृतिक मार्गदर्शन देता है। आज भी यूरोप के कई देशों में चर्च सामाजिक सेवा, शरणार्थी सहायता और शिक्षा में भाग लेता है।

इस प्रकार यूरोप में चर्चों की भूमिका समय के अनुसार बदलती रही, परंतु उनका प्रभाव ऐतिहासिक और वर्तमान समाज पर गहरा रहा है।

प्रश्न-17. मध्यकालीन समाज के पतन को रेखांकित कीजिए।

उत्तर:- मध्यकालीन समाज का पतन 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुआ, जब यूरोप अनेक सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक परिवर्तनों से गुज़रा। यह समाज सामंती व्यवस्था, धार्मिक प्रभुत्व और कृषिपरक अर्थव्यवस्था पर आधारित था।

सबसे पहले काली मृत्यु (Black Death) जैसी महामारियों ने जनसंख्या को बुरी तरह प्रभावित किया, जिससे श्रमिकों की कमी हुई और किसान वर्ग में असंतोष फैला। इसके साथ ही कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गिरावट आने लगी।

सामंतों की शक्ति क्षीण होने लगी और केंद्रीकृत राजशाही का उदय हुआ। व्यापार और नगरीकरण के बढ़ने से नया मध्यम वर्ग उत्पन्न हुआ जिसने पुरानी सामाजिक संरचना को चुनौती दी।

धर्म सुधार आंदोलन ने चर्च के प्रभुत्व को कमजोर किया और लोगों में धार्मिक स्वतंत्रता की भावना जागी। शिक्षा, विज्ञान और पुनर्जागरण ने तर्कशील सोच को बढ़ावा दिया।

इन सभी कारकों ने मिलकर मध्यकालीन समाज की नींव को कमजोर किया और आधुनिक युग की ओर संक्रमण की शुरुआत की।

प्रश्न-18. औद्योगिक क्रांति के उद्भव व परिणामों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- औद्योगिक क्रांति का आरंभ 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इंग्लैंड से हुआ। इस क्रांति का मूल कारण तकनीकी अविष्कार, वैज्ञानिक विकास, पूँजी निवेश तथा उपनिवेशों से प्राप्त कच्चा माल था। मशीनों की सहायता से उत्पादन ने कुटीर उद्योगों की जगह ले ली।

इस क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई, नए-नए उद्योग स्थापित हुए और यातायात के साधनों में विकास हुआ। समाज में श्रमिक वर्ग का उदय हुआ और शहरीकरण तेजी से बढ़ा। किंतु इससे मजदूरों का शोषण, बाल श्रम और बेरोजगारी भी बढ़ी। औद्योगिक क्रांति ने विश्व व्यापार को नई दिशा दी और यूरोप को आर्थिक रूप से सशक्त बना दिया।

प्रश्न-19. समाजवाद एवं कार्ल मार्क्स पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:- समाजवाद एक ऐसी सामाजिक-आर्थिक विचारधारा है, जो संसाधनों और उत्पादन के साधनों के समान वितरण की पक्षधर है। इसका उद्देश्य वर्गहीन समाज की स्थापना करना है, जहाँ सभी को बराबरी का अधिकार मिले और निजी पूंजी पर नियंत्रण हो।

कार्ल मार्क्स (1818–1883) समाजवाद के सबसे प्रमुख विचारक माने जाते हैं। उन्होंने अपने ग्रंथ ‘दास कैपिटल’ में पूंजीवाद की आलोचना करते हुए वर्ग संघर्ष का सिद्धांत प्रस्तुत किया। उनके अनुसार समाज दो वर्गों में बँटा है – पूंजीपति (Bourgeoisie) और श्रमिक (Proletariat)। पूंजीपति वर्ग श्रमिकों के श्रम का शोषण करता है। मार्क्स का मानना था कि एक दिन श्रमिक वर्ग विद्रोह करेगा और समाजवाद की स्थापना होगी।

मार्क्सवाद के अनुसार समाजवादी क्रांति के बाद एक साम्यवादी समाज की स्थापना होगी, जहाँ कोई राज्य, वर्ग या शोषण नहीं होगा। उनके विचारों ने रूस, चीन, क्यूबा जैसे देशों की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया और आज भी वामपंथी विचारधारा में उनकी प्रमुख भूमिका है।

प्रश्न-20. यूरोप में सामंतवाद पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- सामंतवाद मध्यकालीन यूरोप की एक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक व्यवस्था थी, जो विशेषतः 9वीं से 15वीं शताब्दी तक प्रभावी रही। इसमें भूमि प्रमुख साधन थी और राजा भूमि को अपने विश्वासपात्र सामंतों को सौंप देता था। बदले में सामंत राजा की रक्षा करते और कर वसूलते थे।

सामंती व्यवस्था में कृषक वर्ग भूमि पर कार्य करता था, परंतु उन्हें स्वामित्व प्राप्त नहीं होता था। यह व्यवस्था सामाजिक असमानता, दासता और कठोर वर्ग-भेद पर आधारित थी। यद्यपि इससे सुरक्षा और स्थायित्व मिला, परंतु वैज्ञानिक एवं आर्थिक विकास में बाधा पहुँची।

प्रश्न-21. अमेरिकन स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- अमेरिकन स्वतंत्रता संग्राम (1775–1783) ब्रिटिश उपनिवेशों द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करने का संघर्ष था। इस संग्राम की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. राजनीतिक कारण: अमेरिकी उपनिवेशों को ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधित्व नहीं था, जबकि उन पर भारी कर लगाए जाते थे। “No taxation without representation” मुख्य नारा बना।
  2. प्रेरणास्रोत: स्वतंत्रता, समानता और मानव अधिकारों की अवधारणाएँ, विशेषकर जॉन लॉक और रूसो जैसे विचारकों के सिद्धांतों से प्रभावित थीं।
  3. संगठित नेतृत्व: जॉर्ज वाशिंगटन, थॉमस जेफरसन, बेंजामिन फ्रैंकलिन आदि नेताओं ने संग्राम का नेतृत्व किया।
  4. प्रेरक दस्तावेज: 1776 में “स्वतंत्रता घोषणा पत्र” (Declaration of Independence) प्रकाशित हुआ, जिसने स्वतंत्र राष्ट्र की नींव रखी।
  5. अंतिम परिणाम: 1783 की पेरिस संधि द्वारा अमेरिका को ब्रिटेन से स्वतंत्रता मिली और पहला गणराज्य राष्ट्र बना।

इस संग्राम ने न केवल अमेरिका बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों को भी लोकतंत्र और स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न-22. नेपोलियन को फ्रांस की क्रांति का शिशु कहा जाता है।” परीक्षण कीजिए।

उत्तर:- नेपोलियन बोनापार्ट को फ्रांस की क्रांति का शिशु इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने क्रांति के सिद्धांतों को आगे बढ़ाया और सत्ता में आए। क्रांति के दौरान जब राजशाही समाप्त हुई और अराजकता फैली, तब नेपोलियन ने सैन्य शक्ति के आधार पर स्थिरता स्थापित की।

उन्होंने संविधान, कानून संहिताएं (Napoleonic Code), समानता और प्रतिभा आधारित पदोन्नति को प्रोत्साहित किया। यद्यपि वे सम्राट बन गए, फिर भी उन्होंने क्रांति के कई आदर्शों को व्यवहार में लागू किया। इस प्रकार, वे क्रांति की उपज भी थे और उसका उत्तराधिकारी भी।

प्रश्न-23. यूरोप में शहरों और शहरीकरण पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:-यूरोप में शहरीकरण की प्रक्रिया मध्यकाल के अंत और आधुनिक काल की शुरुआत में तेज हुई। औद्योगिक क्रांति के बाद शहरों में उद्योग स्थापित हुए जिससे ग्रामीण आबादी शहरों की ओर बढ़ी।

शहर व्यापार, उद्योग और प्रशासन के केंद्र बन गए। लंदन, पेरिस, बर्लिन, रोम जैसे शहरों ने तेजी से विकास किया। शहरीकरण से एक ओर जीवन की गति बढ़ी, शिक्षा और तकनीकी प्रगति हुई, वहीं दूसरी ओर जनसंख्या घनत्व, आवास की कमी, प्रदूषण और श्रमिक शोषण जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं।

प्रश्न-24. 19वीं शताब्दी के यूरोप में प्रबुद्ध वर्ग की भूमिका का निरूपण कीजिए।

उत्तर:- 19वीं शताब्दी में यूरोप में प्रबुद्ध वर्ग (Intellectuals) ने समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था को दिशा दी। इस वर्ग में दार्शनिक, वैज्ञानिक, लेखक, पत्रकार और कलाकार शामिल थे। इन्होंने लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समाजवाद, और मानवाधिकार जैसे विचारों का प्रचार किया।

कार्ल मार्क्स, जॉन स्टुअर्ट मिल, डार्विन, विक्टर ह्यूगो आदि प्रमुख नाम हैं। इन्होंने क्रांति, सुधार आंदोलनों और राष्ट्रवाद को प्रेरित किया। इस वर्ग ने शिक्षा, प्रेस और सार्वजनिक चर्चा के माध्यम से जनमत को प्रभावित किया और आधुनिक यूरोप की नींव रखी।

प्रश्न-25. 18वीं सदी में यूरोप की कृषि व्यवस्था एवं किसान विद्रोह को विवेचना कीजिए।

उत्तर:- 18वीं सदी की यूरोप की कृषि व्यवस्था सामंती थी। किसान सामंतों की भूमि पर कार्य करते थे और भारी कर, उपज का अंश, और बेगारी देते थे। खेती परंपरागत थी, तकनीक का अभाव था।

इन असमानताओं और शोषण के विरुद्ध कई किसान विद्रोह हुए। फ्रांस में 1789 की क्रांति में किसानों ने अहम भूमिका निभाई। जर्मनी और इंग्लैंड में भी विद्रोह हुए। इन विद्रोहों ने सामंती व्यवस्था को कमजोर किया और भूमि सुधार तथा आधुनिक कृषि की नींव रखी।

प्रश्न-26. धर्मसुधार आंदोलन की विवेचना कीजिए

उत्तर:- धर्मसुधार आंदोलन (Reformation Movement) 16वीं शताब्दी में यूरोप में हुआ एक धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था, जिसका नेतृत्व मार्टिन लूथर, जान हस, और जॉन कैल्विन जैसे सुधारकों ने किया। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य कैथोलिक चर्च की बुराइयों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाना था।

मार्टिन लूथर ने 1517 में ’95 थीसिस’ जारी कर पोप की धार्मिक सत्ता को चुनौती दी। वे चर्च की ‘पाप विमोचन पत्र’ (Indulgences) की नीति के खिलाफ थे। आंदोलन ने यह सिद्ध किया कि व्यक्ति ईश्वर से सीधे संपर्क कर सकता है और चर्च की मध्यस्थता आवश्यक नहीं है।

धर्मसुधार का परिणाम यह हुआ कि यूरोप में प्रोटेस्टेंट धर्म का उदय हुआ और कैथोलिक चर्च की सत्ता को चुनौती मिली। इससे शिक्षा, विज्ञान, कला और विचारों की स्वतंत्रता को प्रोत्साहन मिला। इस आंदोलन ने आधुनिक युग के आरंभ में धार्मिक सहिष्णुता और लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव रखी।

प्रश्न-27. औद्योगिक अर्थव्यवस्था को समझाइए।

उत्तर:- औद्योगिक अर्थव्यवस्था (Industrial Economy) उस आर्थिक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें उत्पादन का आधार उद्योगों और मशीनों पर आधारित होता है। यह व्यवस्था कृषि आधारित अर्थव्यवस्था से अलग होती है और इसमें बड़े पैमाने पर उत्पादन, पूंजी निवेश और श्रमिक वर्ग की भूमिका प्रमुख होती है।

18वीं और 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के साथ यह अर्थव्यवस्था विकसित हुई। इसमें कारखानों, मशीनों, रेलवे, खनिजों और बिजली का उपयोग कर उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई। औद्योगिक अर्थव्यवस्था ने व्यापार, परिवहन और संचार के साधनों को तीव्र गति से बढ़ाया।

इस व्यवस्था में पूंजीवाद, श्रमिक वर्ग का उदय, शहरीकरण और वर्ग संघर्ष जैसे तत्व उभर कर आए। साथ ही श्रम संघों और समाजवादी विचारधाराओं का जन्म हुआ। आज भी विश्व के अधिकांश विकसित देश औद्योगिक अर्थव्यवस्था पर आधारित हैं।

प्रश्न-28. औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में क्यों प्रारम्भ हुई?

उत्तर:-औद्योगिक क्रांति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में इसलिए प्रारम्भ हुई क्योंकि वहाँ अनेक अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान थीं। सबसे पहले, इंग्लैण्ड में प्राकृतिक संसाधनों की भरमार थी—कोयला और लोहा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे जो औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक थे। इसके अतिरिक्त, वहाँ की राजनीतिक स्थिति स्थिर थी और संसद ने उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया। उपनिवेशों से कच्चा माल और बड़े बाज़ार प्राप्त होते थे। इंग्लैण्ड में वैज्ञानिक खोजों और तकनीकी आविष्कारों (जैसे—स्पिनिंग जेनी, स्टीम इंजन) ने उत्पादन की विधियों को अत्यंत तीव्र और सस्ता बना दिया। साथ ही, वहाँ की पूंजीवादी व्यवस्था और बैंकिंग प्रणाली ने उद्यमियों को पूंजी सुलभ करवाई। इंग्लैण्ड की नदियाँ और बंदरगाह व्यापार और यातायात को सरल बनाते थे। कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप श्रमिकों की बड़ी संख्या शहरों की ओर आ गई, जिससे मजदूरी कम हो गई और श्रम सस्ता हुआ। इन सभी कारणों से इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ।

प्रश्न-29. वोल्टेयर के बारे में आप क्या जानते हैं?

उत्तर:- वोल्टेयर (Voltaire), जिनका असली नाम फ्रांस्वा मेरी अरुए था, 18वीं शताब्दी के फ्रांस के प्रमुख दार्शनिक, लेखक और आलोचक थे। वे फ्रांसीसी ‘ज्ञानोदय युग’ (Enlightenment) के अग्रणी व्यक्तित्वों में गिने जाते हैं। वोल्टेयर धार्मिक असहिष्णुता, अंधविश्वास, और निरंकुश शासन के कट्टर आलोचक थे।

उन्होंने अपने लेखों और व्यंग्यात्मक रचनाओं के माध्यम से स्वतंत्रता, न्याय और मानवाधिकारों की वकालत की। उनका प्रसिद्ध कथन है – “मैं तुम्हारी बातों से असहमत हो सकता हूँ, लेकिन तुम्हें कहने का अधिकार अंत तक समर्थन करूँगा।” इससे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता झलकती है।

वोल्टेयर ने चर्च की सत्ता का विरोध किया और तर्कवाद तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समर्थन किया। उनके विचारों ने फ्रांसीसी क्रांति और आधुनिक यूरोपीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला।

प्रश्न-30(A). ‘कोड ऑफ नेपोलियन’ का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर:- ‘कोड ऑफ नेपोलियन’ (Napoleonic Code) फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा 1804 में लागू किया गया एक कानूनी संहिता है, जिसे ‘सिविल कोड ऑफ फ्रांस’ भी कहा जाता है। यह कोड फ्रांस की क्रांति के बाद स्थापित नए सामाजिक और राजनीतिक मूल्यों का प्रतीक था।

इस कोड के मुख्य बिंदु थे: सभी नागरिकों की समानता, निजी संपत्ति का अधिकार, विवाह एवं पारिवारिक कानूनों की स्पष्ट व्यवस्था और व्यक्तियों की स्वतंत्रता का संरक्षण। कोड ने धार्मिक भेदभाव को समाप्त किया और कानून को स्पष्ट, संगठित और नागरिकों के लिए सुलभ बनाया।

इस कोड का प्रभाव फ्रांस तक ही सीमित नहीं रहा। यह यूरोप और लैटिन अमेरिका के कई देशों के विधिक ढांचे का आधार बना। भारत जैसे उपनिवेशों में भी इसके सिद्धांतों का प्रभाव दिखाई दिया। हालांकि, इसमें स्त्रियों के अधिकार सीमित थे, और इसे एक हद तक पितृसत्तात्मक कहा गया।

प्रश्न-30(B). यूरोप में सामन्तवाद के उदय की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- सामन्तवाद का उदय यूरोप में पाँचवीं शताब्दी के बाद रोमन साम्राज्य के पतन के साथ हुआ। जब केंद्रीकृत शासन व्यवस्था समाप्त हो गई तो लोगों ने सुरक्षा की खोज में शक्तिशाली ज़मींदारों की शरण ली। यह सुरक्षा व्यवस्था धीरे-धीरे भूमि के बदले सेवा पर आधारित सम्बन्ध में बदल गई, जिसे सामन्तवाद कहा गया। सामन्तवाद में राजा के अधीन अनेक सामन्त होते थे जो बदले में सैनिक सहायता प्रदान करते थे। किसान ज़मींदार की भूमि पर काम करते थे और उपज का हिस्सा उन्हें देते थे। यह व्यवस्था स्थायी हो गई क्योंकि उसमें समाज के सभी वर्गों का स्थान निश्चित था—राजा, सामन्त, योद्धा और कृषक। सामन्तवाद ने यूरोप में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढाँचे को प्रभावित किया। यह व्यवस्था 11वीं से 15वीं शताब्दी तक यूरोप में प्रमुख रही। बाद में नगरीकरण, व्यापार, और राष्ट्र राज्य की स्थापना के साथ इसका पतन हुआ। सामन्तवाद का प्रभाव आज भी यूरोपीय इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न-30(C). नेपोलियन की ‘महाद्वीपीय व्यवस्था’ की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) एक आर्थिक नीति थी, जिसे उसने ब्रिटेन को कमजोर करने के उद्देश्य से लागू किया। 1806 में बर्लिन घोषणा के माध्यम से नेपोलियन ने यूरोपीय देशों को ब्रिटेन के साथ व्यापार करने से प्रतिबंधित कर दिया। इसका उद्देश्य ब्रिटेन को आर्थिक रूप से अलग-थलग करके उसकी शक्ति को समाप्त करना था। नेपोलियन ने यूरोपीय बंदरगाहों को ब्रिटिश व्यापार के लिए बंद कर दिया और सहयोगी देशों पर इस नीति को लागू करने का दबाव डाला। हालाँकि यह योजना सफल नहीं हुई। यूरोप के व्यापारी छिपकर ब्रिटेन से व्यापार करते रहे। साथ ही, इस नीति से यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, विशेषकर फ्रांस और उसके अधीन देशों में महँगाई और बेरोजगारी बढ़ गई। इस नीति से रूस और नेपोलियन के बीच संबंध बिगड़ गए और 1812 में रूस पर आक्रमण का कारण बने। अंततः महाद्वीपीय व्यवस्था ने ब्रिटेन की बजाय नेपोलियन के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न कीं।

प्रश्न-30(D). बोस्टन टी पार्टी पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:-बोस्टन टी पार्टी (Boston Tea Party) अमेरिका की स्वतंत्रता क्रांति की एक ऐतिहासिक घटना थी, जो 16 दिसंबर 1773 को बोस्टन (मैसाचुसेट्स) में घटित हुई। यह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अमेरिकी उपनिवेशवादियों का एक विरोध प्रदर्शन था।

ब्रिटिश सरकार ने ‘टी एक्ट’ (Tea Act) के अंतर्गत ईस्ट इंडिया कंपनी को चाय के व्यापार पर विशेषाधिकार दिया और उपनिवेशों पर कर लगाया। इसके विरोध में अमेरिकी नागरिकों ने बोस्टन बंदरगाह में ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाजों से चाय के बोरों को उठाकर समुद्र में फेंक दिया।

यह घटना अमेरिकी उपनिवेशों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध व्यापक आक्रोश का प्रतीक बन गई। इसके बाद ब्रिटेन ने कड़े कानून लागू किए जिन्हें “असहनीय अधिनियम” कहा गया। बोस्टन टी पार्टी अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का आरंभिक संकेत थी, जिसने 1776 में अमेरिका की स्वतंत्रता की नींव रखी।

Section-C

प्रश्न-1.18वीं सदी में यूरोप के धार्मिक व बौद्धिक जीवन पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- 18वीं सदी की यूरोप की धार्मिक और बौद्धिक जीवन-धारा को “प्रबोधन युग” (Age of Enlightenment) कहा जाता है। यह वह समय था जब धर्म और परंपरागत विचारों की जगह तर्क, विज्ञान और मानव विवेक ने लेना प्रारंभ किया। इस काल में यूरोप का समाज मध्ययुगीन धार्मिक जकड़नों से बाहर निकल कर स्वतंत्र चिंतन, वैज्ञानिक अन्वेषण और प्रगति की दिशा में बढ़ा।

धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो 18वीं सदी में चर्च की सत्ता और प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा। कैथोलिक चर्च और पोप की धार्मिक निरंकुशता पर सवाल उठाए जाने लगे। धार्मिक सहिष्णुता और व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता की मांग तेज हो गई। लोग धार्मिक विश्वासों को विवेक की कसौटी पर कसने लगे। वोल्टेयर जैसे विचारकों ने अंधविश्वास और धर्माधिकारिता का तीखा विरोध किया। उन्होंने ‘तर्कयुक्त धर्म’ (Deism) का समर्थन किया जिसमें ईश्वर को स्वीकार किया गया, परंतु चमत्कारों और धार्मिक कर्मकांडों को नकारा गया।

बौद्धिक जीवन में यह युग महान वैज्ञानिकों और दार्शनिकों का था। न्यूटन, लॉक, रूसो, मोंटेस्क्यू, कांट, और एडम स्मिथ जैसे विचारकों ने ज्ञान, स्वतंत्रता, समानता और मानवाधिकारों के विचारों को बढ़ावा दिया। फ्रांसीसी दार्शनिकों का ‘एनसाइक्लोपीडिया’ इस युग का प्रमुख बौद्धिक प्रयास था, जिसमें ज्ञान के हर क्षेत्र को तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया।

इस युग में वैज्ञानिक खोजें और अनुभववाद (Empiricism) पर जोर दिया गया। चिकित्सा, खगोलशास्त्र, भौतिकी और गणित में विशेष प्रगति हुई। शिक्षा का प्रसार हुआ और प्रेस की स्वतंत्रता बढ़ी। विश्वविद्यालयों और पुस्तकालयों का विकास हुआ, जिससे ज्ञान को समाज के विभिन्न वर्गों तक पहुँचाया गया।

इस प्रकार, 18वीं सदी का यूरोप धार्मिक कट्टरता से उबरते हुए एक तार्किक, वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण की ओर अग्रसर हुआ। यह बौद्धिक जागृति बाद की क्रांतियों—जैसे अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांति—का आधार बनी और आधुनिक युग के द्वार खोल दिए।

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प्रश्न-2.अमेरिकन संविधान की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

उत्तर:-अमेरिकी संविधान विश्व का पहला लिखित संविधान है, जिसे 17 सितम्बर 1787 को स्वीकृत किया गया और 1789 में लागू किया गया। इस संविधान ने न केवल अमेरिका में लोकतंत्र की नींव रखी, बल्कि अन्य देशों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बना। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. लिखित संविधान:
    यह विश्व का सबसे पुराना और पहला लिखित संविधान है, जिसमें सभी नियमों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है।
  2. संघात्मक व्यवस्था:
    अमेरिका एक संघात्मक राष्ट्र है जिसमें शक्तियाँ केन्द्र (संघीय सरकार) और राज्यों के बीच विभाजित हैं। प्रत्येक राज्य को कुछ स्वायत्त अधिकार प्राप्त हैं।
  3. लोकतांत्रिक व्यवस्था:
    अमेरिकी संविधान जनतंत्र पर आधारित है, जहाँ सरकार की शक्ति जनता से आती है। नागरिकों को मतदान के माध्यम से प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार है।
  4. त्रि-स्तरीय सरकार:
    अमेरिका में सरकार को तीन अंगों में विभाजित किया गया है—विधायिका (कांग्रेस), कार्यपालिका (राष्ट्रपति) और न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट)। यह ‘नियंत्रण एवं संतुलन’ (Checks and Balances) की प्रणाली सुनिश्चित करता है।
  5. मौलिक अधिकार:
    संविधान के पहले दस संशोधन “बिल ऑफ राइट्स” कहलाते हैं, जो नागरिकों को अभिव्यक्ति, धर्म, प्रेस, सभा आदि की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
  6. संविधान संशोधन की प्रक्रिया:
    संविधान में संशोधन की स्पष्ट प्रक्रिया है, जो इसे लचीला बनाती है। अब तक इसमें कई संशोधन हो चुके हैं, जो समय की मांग के अनुसार किए गए।
  7. न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial Review):
    अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी कानून को संविधान के विरुद्ध पाकर अमान्य घोषित कर सकती है।
  8. निर्वाचित राष्ट्रपति:
    राष्ट्रपति अमेरिका का राष्ट्राध्यक्ष और कार्यपालिका का प्रमुख होता है, जिसे जनता द्वारा परोक्ष रूप से चुना जाता है।

इन विशेषताओं ने अमेरिकी संविधान को एक मजबूत, संतुलित और लोकहितकारी दस्तावेज बनाया है, जिसने न केवल अमेरिका को लोकतांत्रिक स्थायित्व प्रदान किया बल्कि विश्वभर में संविधान निर्माण की दिशा को प्रभावित किया।

प्रश्न-3. अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ एक ऐतिहासिक आंदोलन था, जिसने अमेरिका को ब्रिटिश उपनिवेश से स्वतंत्र कर एक स्वशासित राष्ट्र बना दिया। यह संग्राम 1775 में आरंभ हुआ और 1783 में पेरिस संधि के साथ समाप्त हुआ। इसके पीछे कई कारण और घटनाएँ जिम्मेदार थीं।

मुख्य कारण:

  1. ब्रिटिश शोषण:
    ब्रिटेन ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों पर आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण स्थापित कर रखा था। करों का बोझ बढ़ता जा रहा था और उपनिवेशियों को संसद में प्रतिनिधित्व नहीं था।
  2. टैक्सेशन विदाउट रिप्रजेंटेशन:
    उपनिवेशों से बिना प्रतिनिधित्व के कर वसूली का विरोध प्रमुख कारण बना। विशेष रूप से ‘स्टैम्प एक्ट’, ‘टी एक्ट’ और ‘टाउनशेंड एक्ट’ के विरुद्ध जनआंदोलन हुआ।
  3. बोस्टन टी पार्टी (1773):
    यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसमें उपनिवेशियों ने ब्रिटिश जहाज से चाय के बक्से समुद्र में फेंक दिए। यह विद्रोह की प्रतीक घटना बन गई।
  4. प्रेरणास्रोत विचारक:
    थॉमस पेन, जॉन लॉक, रूसो जैसे विचारकों की लेखनी ने स्वतंत्रता, समानता और प्राकृतिक अधिकारों की भावना को प्रोत्साहित किया।

मुख्य घटनाएँ:

1775: लेक्सिंगटन और कोंकॉर्ड की लड़ाइयाँ—स्वतंत्रता संग्राम का प्रारंभ।

1776: डिक्लरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस थॉमस जेफरसन द्वारा तैयार किया गया।

1777: सराटोगा की लड़ाई में अमेरिका की पहली बड़ी विजय।

1781: यॉर्कटाउन की लड़ाई में ब्रिटेन की अंतिम पराजय।

1783: पेरिस संधि द्वारा ब्रिटेन ने अमेरिका की स्वतंत्रता को मान्यता दी।

परिणाम:

अमेरिका स्वतंत्र राष्ट्र बना।

1787 में अमेरिका का संविधान बना।

यह संग्राम फ्रांसीसी क्रांति और अन्य वैश्विक स्वतंत्रता आंदोलनों की प्रेरणा बना।

इस प्रकार, अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम ने उपनिवेशवाद के खिलाफ विश्व में पहला प्रभावी संघर्ष प्रस्तुत किया और मानव इतिहास में स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र का नया अध्याय आरंभ किया।

प्रश्न-4. मध्यकालीन समाज के पतन की रेखांकित कीजिए

उत्तर:- मध्यकालीन समाज का पतन 14वीं से 16वीं सदी के मध्य में धीरे-धीरे आरंभ हुआ और 18वीं सदी तक आते-आते वह पूरी तरह समाप्त हो गया। मध्ययुगीन समाज धार्मिक, सामंती और परंपरागत संरचनाओं पर आधारित था, जिसमें परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं थी। लेकिन समय के साथ सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और बौद्धिक कारणों से इस व्यवस्था में विघटन हुआ।

  1. सामंतवाद का पतन:
    मध्यकालीन समाज सामंती व्यवस्था पर आधारित था, जिसमें भूमि के स्वामित्व पर आधारित संबंध थे। परंतु व्यापार के विकास, शहरों के उदय और मुद्रा अर्थव्यवस्था के फैलाव ने सामंती संबंधों को कमजोर किया। राजा की केंद्रीय शक्ति बढ़ी और स्थानीय सामंतों का प्रभाव घटा।
  2. चर्च की शक्ति में कमी:
    कैथोलिक चर्च मध्ययुग में अत्यधिक प्रभावशाली था। परंतु धर्म सुधार आंदोलन (Reformation) के माध्यम से मार्टिन लूथर, काल्विन आदि ने चर्च की भ्रष्ट प्रथाओं का विरोध किया। प्रोटेस्टेंट आंदोलन ने धार्मिक एकता को तोड़ा और चर्च के राजनीतिक हस्तक्षेप को चुनौती दी।
  3. नगरों और व्यापार का विकास:
    व्यापार, बैंकिंग और शहरीकरण ने एक नए वर्ग—मध्य वर्ग (Bourgeoisie)—को जन्म दिया। यह वर्ग शिक्षा, व्यवसाय और उद्योग में अग्रणी था और वह सामंती व्यवस्था से असंतुष्ट था।
  4. वैज्ञानिक क्रांति:
    गैलीलियो, कोपरनिकस और न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों की खोजों ने अंधविश्वास और धार्मिक तर्कों को चुनौती दी। यह समाज को नई सोच और प्रगति की ओर ले गया।
  5. पुनर्जागरण और प्रबोधन:
    पुनर्जागरण ने मानव केंद्रित विचारों को जन्म दिया और कला, साहित्य तथा विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार किए। इसके बाद प्रबोधन युग ने तार्किक चिंतन, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की नींव रखी।
  6. कृषक विद्रोह और सामाजिक असंतोष:
    किसानों और निम्न वर्गों में सामंतों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह हुए। यह असंतोष मध्ययुगीन ढांचे को तोड़ने में सहायक रहा।

मध्यकालीन समाज का पतन एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया थी, जो सामाजिक परिवर्तन, वैज्ञानिक प्रगति, व्यापारिक विकास और विचारशीलता के विस्तार के कारण संभव हुआ। इस पतन ने आधुनिक युग की नींव रखी और यूरोप को एक नई दिशा प्रदान की।

प्रश्न-5. यूरोप में उदारवाद व संवैधानिक विकास का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर:- 19वीं शताब्दी का यूरोप राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक दृष्टि से अत्यंत परिवर्तनशील काल रहा। इस समय उदारवाद (Liberalism) और संवैधानिक विकास (Constitutional Development) ने यूरोप की राजनीति को नया स्वरूप प्रदान किया। उदारवाद का अर्थ है व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और कानून के शासन की प्रतिष्ठा। यह निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध एक वैचारिक प्रतिक्रिया थी।

उदारवाद का विकास:
फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने “स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व” के सिद्धांतों को जनमानस में स्थापित किया। इससे यूरोप के विभिन्न भागों में उदारवादी आंदोलनों को बल मिला। नेपोलियन के शासनकाल के पश्चात् पुनर्स्थापनावादी शक्तियाँ फिर से निरंकुश शासन थोपने का प्रयास करने लगीं, किंतु जनता में जागरूकता बढ़ चुकी थी।

1830 और 1848 की क्रांतियाँ इस वैचारिक संघर्ष का परिणाम थीं। विशेषकर 1848 की क्रांति को ‘जनताओं का वसंत’ कहा गया, जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रिया आदि में उदारवादी और राष्ट्रवादी शक्तियाँ सक्रिय हो गईं।

संवैधानिक विकास:
उदारवाद के प्रभाव से यूरोप में संवैधानिक शासन की स्थापना होने लगी। ब्रिटेन में पहले ही 1688 की “Glorious Revolution” के बाद संवैधानिक राजतंत्र स्थापित हो चुका था, जिसमें संसद सर्वोच्च थी।

फ्रांस में 1830 की जुलाई क्रांति के पश्चात संवैधानिक राजतंत्र स्थापित हुआ। लुई-फिलिप को “जनता का राजा” कहा गया, और उसे संविधान की शपथ दिलाई गई। जर्मनी और इटली जैसे बंटे हुए देशों में भी संवैधानिक एकीकरण के प्रयास हुए, जैसे बिस्मार्क द्वारा जर्मन एकीकरण (1871)।

प्रभाव और मूल्यांकन:
उदारवाद ने व्यक्तिगत अधिकारों को केंद्र में रखा और सत्ता पर जन-नियंत्रण की अवधारणा को बढ़ावा दिया। इसके प्रभाव से प्रेस की स्वतंत्रता, सभा की स्वतंत्रता, मताधिकार और विधायिका की शक्तियाँ बढ़ीं। इसके साथ ही, संवैधानिक विकास ने सरकार को जवाबदेह और सीमित बनाया।

हालांकि प्रारंभिक दौर में उदारवाद केवल मध्यवर्ग तक सीमित रहा और महिलाओं, मजदूरों तथा किसानों की उपेक्षा की गई, किंतु आगे चलकर यह व्यापक अधिकारों की ओर अग्रसर हुआ।

यूरोप में उदारवाद और संवैधानिक विकास ने निरंकुशता का अंत कर नागरिक अधिकारों, लोकतांत्रिक संस्थाओं और राष्ट्रवाद को जन्म दिया। यह आधुनिक लोकतांत्रिक यूरोप के निर्माण की नींव साबित हुआ।

प्रश्न-6. औद्योगिक क्रांति पर एक निबंध लिखिए

उत्तर:- औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इंग्लैंड से प्रारंभ हुई और 19वीं शताब्दी में यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों में फैल गई। यह केवल तकनीकी परिवर्तनों की श्रृंखला नहीं थी, बल्कि एक गहरा सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन भी था, जिसने मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया।

औद्योगिक क्रांति के कारण:

वैज्ञानिक आविष्कारों की श्रृंखला

नवउदित पूंजीवाद और व्यापारिक वर्ग का उदय

उपनिवेशों से प्राप्त कच्चा माल

श्रम की उपलब्धता

परिवहन व संचार के साधनों का विकास

मुख्य विशेषताएँ:

  1. तकनीकी आविष्कार: जेम्स वाट द्वारा भाप इंजन का आविष्कार, स्पिनिंग जेनी और पॉवर लूम जैसे यंत्रों का विकास हुआ।
  2. कृषि से उद्योग की ओर संक्रमण: लोगों ने पारंपरिक कृषि कार्य छोड़कर फैक्ट्रियों में काम करना शुरू किया।
  3. नवीन ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग: कोयला और भाप जैसे स्रोतों का उपयोग बढ़ा।
  4. कारखाना प्रणाली का विकास: घरों की बजाय बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियों में उत्पादन होने लगा।
  5. शहरीकरण: ग्रामीण जनसंख्या तेजी से शहरों की ओर जाने लगी।

प्रभाव:

आर्थिक प्रभाव: उत्पादन में भारी वृद्धि हुई, व्यापार और पूंजी निवेश बढ़ा। विश्व बाजार की अवधारणा मजबूत हुई।

सामाजिक प्रभाव: एक नया औद्योगिक श्रमिक वर्ग उभरा, महिला व बाल श्रमिकों का शोषण हुआ। जीवन की गति तेज हुई, किंतु गरीबी और विषमता भी बढ़ी।

राजनीतिक प्रभाव: श्रमिक आंदोलनों और यूनियनों का जन्म हुआ। समाजवाद, मार्क्सवाद जैसी विचारधाराएँ इसी पृष्ठभूमि से निकलीं।

पर्यावरणीय प्रभाव: वनों की कटाई, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हुआ।

निष्कर्ष:
औद्योगिक क्रांति ने मानव सभ्यता को मध्ययुग से आधुनिकता की ओर अग्रसर किया। यद्यपि इससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं, फिर भी इसके बिना आधुनिक तकनीकी युग की कल्पना संभव नहीं है। यह क्रांति एक युगांतकारी परिवर्तन सिद्ध हुई।

प्रश्न-7. अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1775–1783) वह संघर्ष था, जिसमें अमेरिका के तेरह उपनिवेशों ने ब्रिटेन के विरुद्ध स्वतंत्रता प्राप्त की। यह विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने उपनिवेशवाद, राजशाही और निरंकुशता के विरुद्ध लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना की।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष:
    यह संग्राम मूलतः ब्रिटिश उपनिवेशवाद और उसके शोषण के विरुद्ध था। उपनिवेशों को बिना प्रतिनिधित्व के कर (Taxation without representation) देना पड़ता था, जिसे उन्होंने अन्यायपूर्ण माना।
  2. राजनैतिक चेतना:
    अमेरिकी उपनिवेशों में राजनीतिक चेतना और स्वतंत्रता का भाव धीरे-धीरे प्रबल हुआ। थॉमस पेन की ‘Common Sense’ जैसी पुस्तकों और थॉमस जेफरसन के स्वतंत्रता घोषणा-पत्र (Declaration of Independence, 1776) ने जनमत को प्रेरित किया।
  3. जन आंदोलन का स्वरूप:
    यह केवल युद्ध नहीं था, बल्कि एक व्यापक जनांदोलन था। किसानों, व्यापारियों, बुद्धिजीवियों, महिलाओं तक ने भाग लिया।
  4. प्रबोधन विचारधारा का प्रभाव:
    फ्रांसीसी विचारकों जैसे रूसो, लॉक और वोल्टेयर के विचारों ने स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र के प्रति लोगों को जागरूक किया।
  5. संगठित सैन्य नेतृत्व:
    जॉर्ज वॉशिंगटन के नेतृत्व में उपनिवेशों की सेना ने संघर्ष को प्रभावी दिशा दी। फ्रांस जैसे देशों का सहयोग भी निर्णायक रहा।
  6. संविधान की स्थापना:
    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1787 में अमेरिका ने विश्व का पहला लिखित संविधान अपनाया, जिसने लोकतंत्र, मौलिक अधिकारों और संघीय प्रणाली की आधारशिला रखी।


अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम केवल एक राष्ट्रीय संघर्ष नहीं था, बल्कि उसने विश्व में उपनिवेशवाद के विरुद्ध क्रांति की प्रेरणा दी। इसने मानव अधिकार, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद को नई दिशा दी।

प्रश्न-8. सामंतवाद के उद्भव व विकास पर एक निबंध लिखिए।

उत्तर:- सामंतवाद (Feudalism) एक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था थी, जो विशेषतः मध्यकालीन यूरोप में प्रचलित थी। इसका आधार भूमि पर स्वामित्व और अधीनस्थ संबंधों की संरचना पर टिका था। इसमें राजा, सामंत, योद्धा और कृषक एक श्रेणीबद्ध ढांचे में बँधे रहते थे।

सामंतवाद का उद्भव:
पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन (476 ई.) के बाद यूरोप में केन्द्रीय सत्ता का अभाव हो गया। अशांति, सुरक्षा की कमी और आर्थिक अव्यवस्था ने स्थानीय सामंतों की शक्ति को बढ़ा दिया। राजा कमजोर हो गए और सामंत स्थानीय सुरक्षा व प्रशासन के जिम्मेदार बने।

मुख्य विशेषताएँ:

  1. भूमि पर आधारित संबंध: राजा भूमि देकर सामंतों को सेवाएं लेने के लिए नियुक्त करता था। सामंत फिर उससे छोटे जागीरदारों को भूमि देते थे।
  2. व्यक्तिगत निष्ठा: पूरे ढांचे में व्यक्तिगत वफादारी महत्वपूर्ण थी, जैसे सामंत का राजा के प्रति वफादार होना।
  3. स्थानीय प्रशासन: कानून, न्याय, सुरक्षा और कर वसूली सामंतों द्वारा नियंत्रित होती थी।
  4. शोषणकारी व्यवस्था: कृषकों (serfs) को सामंतों की भूमि पर कार्य करना पड़ता था, जिसमें उनकी स्वतंत्रता सीमित थी।

विकास और विस्तार:
9वीं से 13वीं शताब्दी तक सामंतवाद यूरोप में अपने चरम पर था। धीरे-धीरे सामंतों की शक्ति बढ़ती गई और राजा केवल नाममात्र के शासक रह गए। युद्धों, विवाहों और जागीरों के विस्तार के माध्यम से यह प्रणाली और मजबूत हुई।

पतन के कारण:
14वीं शताब्दी के बाद कई घटनाओं ने सामंतवाद को कमजोर किया:

काले प्लेग (Black Death) के कारण जनसंख्या में भारी गिरावट

नगरीकरण और व्यापार का विकास

धन के बजाय मुद्रा अर्थव्यवस्था का प्रचलन

केंद्रीकृत राष्ट्र राज्यों का उदय

पुनर्जागरण और प्रबोधन काल की विचारधारा


सामंतवाद एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण व्यवस्था थी, जिसने मध्ययुगीन यूरोप की संरचना निर्धारित की। यद्यपि यह व्यवस्था शोषणकारी थी, फिर भी इसने सामाजिक स्थिरता और सुरक्षा प्रदान की। इसके पतन से आधुनिक राष्ट्र-राज्य और पूंजीवाद का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न-9. सामंतवाद पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- सामंतवाद (Feudalism) मध्यकालीन यूरोप की एक प्रमुख सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था थी, जिसका विकास लगभग 9वीं से 15वीं शताब्दी के बीच हुआ। यह व्यवस्था भूमि के स्वामित्व और उस पर आधारित दायित्वों तथा सेवाओं पर आधारित थी। सामंतवाद ने यूरोप की राजनीतिक इकाई को केंद्रीकृत शासन से विखंडित कर दिया और शक्ति का केंद्र विभिन्न स्थानीय प्रभुओं के हाथों में चला गया।

सामंतवाद की सबसे प्रमुख विशेषता भूमि के बदले सेवा (Land for Service) की अवधारणा थी। राजा अपने वफादार सेनापतियों और अधिकारियों को भूमि प्रदान करता था जिन्हें ‘सामंत’ (Feudal Lords) कहा जाता था। ये सामंत फिर अपने अधीनस्थों को भूमि बाँटते थे, जिन्हें ‘उप-सामंत’ या ‘वासल’ (Vassal) कहा जाता था। इसके बदले में उप-सामंत अपने अधिपति को सैनिक सेवा, कर और निष्ठा प्रदान करते थे।

इस व्यवस्था में किसान या कृषक वर्ग, जिन्हें सर्फ (Serf) कहा जाता था, समाज की सबसे निचली सीढ़ी पर थे। उन्हें अपनी उपज का बड़ा हिस्सा सामंत को देना पड़ता था और वे भूमि से बंधे रहते थे। वे स्वतंत्र नहीं थे और बिना सामंत की अनुमति के कहीं जा भी नहीं सकते थे।

राजनीतिक रूप से सामंतवाद विकेंद्रीकृत शासन प्रणाली थी। राजा नाममात्र का होता था जबकि वास्तविक शक्ति सामंतों के पास होती थी। हर सामंत अपनी जागीर में स्वयं राजा के समान होता था और अपनी सेना, कानून व्यवस्था और कर प्रणाली संचालित करता था।

आर्थिक दृष्टि से यह व्यवस्था कृषि प्रधान थी। व्यापार और शिल्पकला सीमित थी और आर्थिक विकास बहुत धीमा था। कृषि ही आय का मुख्य स्रोत था और तकनीकी विकास बहुत सीमित था।

सामाजिक रूप से समाज चार वर्गों में विभाजित था: राजा, सामंत, धार्मिक वर्ग (पादरी), और कृषक। सामाजिक गतिशीलता लगभग नगण्य थी।

12वीं और 13वीं शताब्दी में व्यापार के पुनर्जीवन, नगरों के विकास, मुद्रा आधारित अर्थव्यवस्था के उभार और केंद्रीकृत राजशक्तियों के उदय के साथ-साथ सामंतवाद का पतन प्रारंभ हो गया। अंततः पुनर्जागरण, औद्योगिक क्रांति और लोकतांत्रिक विचारधाराओं ने इस प्रणाली को समाप्त कर दिया।

सामंतवाद एक ऐसी प्रणाली थी जिसने मध्यकालीन यूरोप के सामाजिक और राजनीतिक ढाँचे को कई सदियों तक नियंत्रित किया, परंतु आधुनिक काल के आगमन के साथ यह व्यवस्था अप्रासंगिक हो गई।

प्रश्न-10. रूसी कृषि और अर्थव्यवस्था की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- रूस की कृषि और अर्थव्यवस्था का इतिहास जटिल और विविधताओं से भरा हुआ है। 18वीं और 19वीं सदी में रूस एक कृषि प्रधान देश था, जहाँ अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी। परंतु 20वीं सदी में सोवियत शासन के दौरान इसमें व्यापक परिवर्तन हुए।

रूसी कृषि:

सामंती कृषि प्रणाली:
ज़ारशाही काल में कृषि ज़मींदारों के अधीन थी। किसान ‘सर्फ’ कहलाते थे और वे भूमि के साथ बंधे हुए थे। 1861 में ज़ार अलेक्ज़ेंडर द्वितीय ने सर्फ व्यवस्था समाप्त की, परंतु किसानों को ज़मीन का अधिकार नहीं मिला।

समूह कृषि (Collectivisation):
बोल्शेविक क्रांति (1917) के बाद लेनिन और फिर स्टालिन ने कृषि का सामूहिकीकरण किया। किसानों की निजी भूमि छीनकर सामूहिक फार्म (Kolhoz) और राज्य फार्म (Sovkhoz) बनाए गए।

सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव:
प्रारंभ में उत्पादन में वृद्धि हुई लेकिन जबरदस्ती और विरोध से लाखों किसान मारे गए। कृषि प्रणाली केंद्र नियंत्रित हो गई, जिससे नवाचार और प्रेरणा में कमी आई।

रूसी अर्थव्यवस्था:

पूर्व समाजवादी अर्थव्यवस्था:
क्रांति के बाद रूस ने पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त कर योजना आधारित समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया। पाँच वर्षीय योजनाओं (Five Year Plans) के अंतर्गत औद्योगीकरण और बुनियादी ढाँचे पर ज़ोर दिया गया।

औद्योगिक विकास:
भारी उद्योग जैसे इस्पात, कोयला, मशीनरी आदि में तीव्र विकास हुआ। श्रमशक्ति का संगठित उपयोग किया गया और उत्पादन में वृद्धि हुई।

योजनाबद्ध प्रणाली:
अर्थव्यवस्था सरकार द्वारा नियंत्रित होती थी। बाजार की बजाय योजना आयोग के निर्णयों से संसाधनों का वितरण होता था।

समस्याएँ:
सरकार द्वारा नियंत्रित प्रणाली में भ्रष्टाचार, उत्पादन में अल्प गुणवत्ता, उपभोक्ता वस्तुओं की कमी और श्रम की प्रेरणा की कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुईं।

1991 के बाद बदलाव:
सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने पूंजीवादी बाजार व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाए। निजीकरण, वैश्वीकरण और उदारीकरण लागू हुए लेकिन इससे आर्थिक असमानता और बेरोजगारी भी बढ़ी।

रूसी कृषि और अर्थव्यवस्था समय के साथ सामंती से समाजवादी और फिर पूंजीवादी मॉडल की ओर बढ़ी। प्रत्येक चरण में इसकी विशेषताएँ और चुनौतियाँ अलग रहीं, जिन्होंने रूस को एक जटिल आर्थिक संरचना प्रदान की।

प्रश्न-फ्रांसीसी क्रांति के कारणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- फ्रांसीसी क्रांति (1789) यूरोपीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने न केवल फ्रांस बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया। इसके अनेक कारण थे जो राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक क्षेत्र से संबंधित थे।

  1. सामाजिक असमानता: फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों में विभाजित था – पहला वर्ग (पादरी), दूसरा वर्ग (सामंत) और तीसरा वर्ग (सामान्य जनता)। पहले दो वर्गों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे जबकि तीसरे वर्ग पर करों का भारी बोझ था।
  2. आर्थिक संकट: लुई 16वें के शासनकाल में फ्रांस गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था। युद्धों पर अत्यधिक खर्च, दरबार की विलासिता, कर व्यवस्था की असमानता और खाद्य संकट से जनता त्रस्त थी।
  3. राजनीतिक असंतोष: राजा निरंकुश शासक था। लोगों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। संसद (एस्टेट्स जनरल) की कोई प्रभावी भूमिका नहीं थी।
  4. बौद्धिक विचारों का प्रभाव: रूसो, वोल्टेयर और मोंटेस्क्यू जैसे विचारकों ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों का प्रचार किया। उनके विचारों ने जनता में जागरूकता उत्पन्न की।
  5. अमेरिकी क्रांति का प्रभाव: अमेरिका की स्वतंत्रता संग्राम ने फ्रांसीसी जनता को प्रेरित किया कि वे भी अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें।
  6. वित्तीय कुप्रबंधन: करों की असमानता और भ्रष्टाचार ने शासन व्यवस्था को कमजोर कर दिया। फ्रांसीसी सरकार भारी कर्ज में डूबी हुई थी और करों से आम जनता पर अत्यधिक बोझ डाला गया।
  7. राजा लुई 16वें की कमजोर नेतृत्व: राजा निर्णय लेने में असफल रहा और उसकी रानी मैरी एंटोनेट की विलासिता से जनता और भी नाराज हो गई।

इन सभी कारणों ने मिलकर एक जनविद्रोह को जन्म दिया। परिणामस्वरूप, 1789 में बास्तille जेल पर आक्रमण हुआ और फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई। इस क्रांति ने निरंकुश शासन को समाप्त कर लोकतंत्र, मानवाधिकार और गणराज्य की स्थापना की दिशा में पहला कदम रखा।

प्रश्न-12. यूरोप में शहरीकरण पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- यूरोप में शहरीकरण (Urbanisation) एक ऐतिहासिक और सामाजिक प्रक्रिया रही है, जो औद्योगिक क्रांति, व्यापार, तकनीकी प्रगति और सामाजिक परिवर्तन से प्रभावित रही। मध्यकाल के अंत से लेकर आधुनिक काल तक यूरोप ने शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया को अनुभव किया।

  1. मध्यकालीन शहरीकरण: प्रारंभिक मध्ययुग में यूरोप मुख्यतः कृषि प्रधान था। लेकिन 11वीं सदी के बाद व्यापार और नगरों के विकास के साथ छोटे-छोटे नगर उभरने लगे। इन नगरों में व्यापारिक मंडियाँ, कारीगर और श्रमिक बसने लगे।
  2. पुनर्जागरण और व्यापार: 14वीं-16वीं शताब्दी के दौरान पुनर्जागरण आंदोलन और वैश्विक व्यापार के विकास ने यूरोपीय नगरों को सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र बना दिया। इटली के वेनिस, फ्लोरेंस, जर्मनी के फ्रैंकफर्ट जैसे नगर प्रसिद्ध हुए।
  3. औद्योगिक क्रांति और शहरीकरण: 18वीं शताब्दी के अंत में औद्योगिक क्रांति के कारण शहरीकरण की गति तीव्र हो गई। उद्योगों की स्थापना से लाखों लोग गांवों से नगरों की ओर आए। इंग्लैंड के मैनचेस्टर, बर्मिंघम, लंदन जैसे नगर औद्योगिक केंद्र बन गए।
  4. शहरी जीवन की विशेषताएं: इन नगरों में आवास, जल, स्वच्छता, शिक्षा, परिवहन जैसी समस्याएँ उभरीं। साथ ही, सांस्कृतिक विविधता, राजनीतिक चेतना और श्रमिक आंदोलनों की भी शुरुआत हुई।
  5. 20वीं सदी का शहरीकरण: दो विश्व युद्धों के बाद पुनर्निर्माण और तकनीकी विकास ने यूरोप में योजनाबद्ध शहरीकरण को जन्म दिया। फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि देशों ने आधुनिक शहरी योजनाओं को अपनाया।
  6. वर्तमान स्थिति: आज यूरोप विश्व के सर्वाधिक नगरीकृत क्षेत्रों में से एक है। यूरोपीय संघ के देश शहरी बुनियादी ढाँचे, पर्यावरणीय योजनाओं और हरित नगरीकरण की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

यूरोप में शहरीकरण एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है, जिसने न केवल नगरों के स्वरूप को बदला, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन भी लाया। यह आधुनिक यूरोपीय समाज की पहचान का एक अभिन्न अंग बन चुका है।

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