VMOU Paper with answer ; VMOU PS-02 Paper BA 1st Year , vmou Political Science important question

VMOU PS-02 Paper BA 1st Year ; vmou exam paper 2024

vmou exam paper

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA First Year के लिए राजनीति विज्ञान ( PS-02 , Indian Political Thinkers ) का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1. कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित राज्य के प्रमुख दो कार्य बताइये ?

उत्तर:- आंतरिक शांति एवं सुरक्षा स्थापित करना , राज्य की बाहरी शत्रुओं से रक्षा करना , राज्य की सुख समृद्धि के लिए कल्याणकारी कार्यों की व्यवस्था करना

(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)

प्रश्न-2. तिलक के अनुसार ‘स्वराज्य’ को परिभाषित कीजिये ?

उत्तर:-तिलक स्वराज्य को राजनीतिक नहीं अपितु नैतिक आवश्यकता मानते थे। उनकी स्वराज्य की धारणा प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्यों के आधार पर है । वे स्वराज्य का अर्थ स्वधर्म आचरण की स्वतन्त्रता से लगाते हैं

प्रश्न-3. मत्स्य न्याय के बारे के मनु के विचार बताइये ?

उत्तर:-मनुस्मृति में ‘मत्स्य न्याय’ के अनुसार, दरिद्रों और निर्धनों की सहायता करना धर्म है, जैसे मत्स्य जल में रहने वालों की करते हैं। यह न्यायिक दृष्टिकोण दिखाता है कि समृद्धि को सामाजिक जिम्मेदारी मानना चाहिए। अथार्थ मनु स्मृति में ‘मत्स्य न्याय’ की व्याख्या है जो दरिद्रों की रक्षा को उदाहरण देती है, जैसे मत्स्य उसके जल में रहने वालों की रक्षा करते हैं। यह न्यायिक दृष्टिकोण प्रकट करता है।

प्रश्न-4. राष्ट्रवाद’ से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:-राष्ट्रवाद का अर्थ है अपने राष्ट्र के प्रति गर्व और अपनेपन की भावना । यह एक ऐसी भावना है जो लोगों को एकजुट करती है और उन्हें एक समान लक्ष्य के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करती है। ‘राष्ट्रवाद’ एक विचारधारा है जो राष्ट्र की महत्वपूर्णता और स्वायत्तता पर बल देती है। यह मानवाधिकार, सामाजिक न्याय, स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करता है। यह राष्ट्र के विकास और सामाजिक समृद्धि के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सुधार की दिशा में प्रेरित करता है।

प्रश्न-5. डॉ. अम्बेडकर के अनुसार ‘सामाजिक न्याय’ को परिभाषित कीजिये ?

उत्तर:-डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों की स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित था । सामाजिक न्याय सभी लोगों हेतु सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संसाधनों और अधिकारों का समान वितरण करता है

दूसरे शब्दों मे डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार, ‘सामाजिक न्याय’ एक ऐसी स्थिति है जहाँ समाज में सभी वर्गों को समान अवसर और अधिकार मिलते हैं, अनुसूचित और पिछड़े वर्गों के साथ उनके समानाधिकारों की सुरक्षा और समर्थन होता है। यह समाज में असमानता, उत्पीड़न और न्यायहीनता का खत्म करने का प्रयास करता है।

प्रश्न-6. मनु की धर्म – अवधारणा क्या है ?

उत्तर:-अवधारणा तथा तदनुरूप निर्धारित कर्तव्यों के पालन को “धर्म” माना गया है। प्रत्येक युग में मनुष्यों के अलग-अलग धर्म निर्धारित किए गए हैं: सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ ओर कलियुग में दान को प्रमुख माना गया मनु ने अर्थ व काम की अपेक्षा धर्म को श्रेष्ठ माना है तथा धर्म को कभी न त्यागने की बात कही है।

प्रश्न-7.

उत्तर:-

प्रश्न-8. तिलक के अखबारों के नाम लिखिये ?

उत्तर:- बाल गंगाधर तिलक केसरी समाचार-पत्र के सम्‍पादक थे। केसरी मराठी भाषा का एक समाचारपत्र है – केसरी (हिंदी में) और मराठा (अंग्रेजी में)

बाल गंगाधर तिलक ने कई प्रमुख अखबार प्रकाशित किए थे, जिनमें से कुछ नाम निम्नलिखित हैं:

  1. केसरी
  2. मराठा
  3. ग्रीक
  4. न्यू इंडिया
  5. मराठा मित्र
  6. कल
  7. आणि ज्योति

इन अखबारों के माध्यम से तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रोत्साहित किया और जागरूकता फैलाई।

प्रश्न-9. सम्पूर्ण क्रान्ति की अवधारणा किसने प्रतिपादित किया ?

उत्तर:-सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था। लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है – राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति।

प्रश्न-10. मानव जीवन के चार आश्रमों के बारे में मनु के विचार ?

उत्तर:-पहला ब्रह्मचर्य आश्रम, दूसरा गृहस्थ आश्रम, तीसरा संन्यास आश्रम और चौथा वानप्रस्थ आश्रम। इन में सबसे श्रेष्ठ गृहस्थ आश्रम को बताया गया है क्योंकि गृहस्थ के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। दूसरे जो तीन आश्रम के लोग हैं उनकी सेवा करना उनका भरण पोषण करना और पशु पक्षी सबका ध्यान रखना सब की सेवा करना यह मानव का कर्तव्य है।

प्रश्न-11. ‘पंचशील’ सिद्धान्त क्या हैं ?

उत्तर:-पंचशील चीन और भारत के तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार और संपर्क पर एक समझौता है। इस समझौते पर 29 अप्रैल 1954 को बीजिंग में भारतीय राजदूत एन.राघवन और चीन के उप विदेश मंत्री चांग हान-फू द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। यह सारा समझौता श्री पंडित नेहरू के मार्गदर्शन पर हुआ था।

प्रश्न-12. तिलक द्वारा प्रतिपादित स्वराज का अर्थ समझाईए ?

उत्तर:- स्वराज’ का अर्थ है, अधिकारितंत्र (Bureaucracy) की जगह ‘जनता का शासन’ (Peoples Rule) जो समाज सुधारक ब्रिटिश सरकार से समाज सुधार लागू करने की आशा करते थे, उन्हें तिलक ने यह • विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया कि किसी भी सार्थक समाज सुधार से पहले स्वराज प्राप्ति जरूरी है।

प्रश्न-13. दयानंद सरस्वति द्वारा लिखी गई कोई दो पुस्तकों के नाम बताईए ?

उत्तर:-सत्यार्थ प्रकाश , अष्टाध्यायी भाष्य

स्वामी दयानन्द द्वारा लिखी गयी महत्त्वपूर्ण रचनाएं – सत्यार्थप्रकाश (1874 संस्कृत), पाखण्ड खण्डन (1866), वेद भाष्य भूमिका (1876), ऋग्वेद भाष्य (1877), अद्वैतमत का खण्डन (1873), पंचमहायज्ञ विधि (1875), वल्लभाचार्य मत का खण्डन (1875) आदि।

दयानंद सरस्वती जी ने कई प्रमुख पुस्तकें लिखी थीं। कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों के नाम निम्नलिखित हैं:

  1. “सत्यार्थ प्रकाश” – इस पुस्तक में उन्होंने वेदों के माध्यम से धर्म, आध्यात्मिकता, और समाज में सुधार के महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए।
  2. “सत्यार्थ प्रकाश भाष्य” – इस पुस्तक में वे “सत्यार्थ प्रकाश” के श्लोकों का विस्तारित भाष्य प्रस्तुत करते हैं।
  3. “आर्यधर्म” – इस पुस्तक में उन्होंने आर्यसमाज के मूल सिद्धांतों और आचार्य दयानंद के दर्शन को प्रस्तुत किया।
  4. “वेद बहष्य” – इस पुस्तक में वे वेदों के श्लोकों का विस्तारित भाष्य प्रस्तुत करते हैं और उनके तात्त्विक अर्थ का विवेचन करते हैं।
  5. “सत्यप्रकाश” – इस पुस्तक में उन्होंने सनातन धर्म के विरुद्ध विचार और उनके स्वयं के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया।
  6. “वेदांत सार” – इस पुस्तक में उन्होंने वेदांत दर्शन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का विवेचन किया।
  7. “सत्यार्थ प्रदीप” – इस पुस्तक में वे आर्यसमाज के सिद्धांतों की चर्चा करते हैं और धर्म के विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हैं।
प्रश्न-14.

उत्तर:-

प्रश्न-15. राजा राम मोहन रॉय द्वारा समर्थित कोई दो समाज सुधार बताईए ?

उत्तर:- राजा राम मोहन रॉय द्वारा समर्थित दो महत्वपूर्ण समाज सुधार विचारों में शामिल हैं:

  1. विधवा विवाह निषेध: राजा राम मोहन रॉय ने विधवा विवाह के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने विधवाओं के द्वारा पुनः विवाह की अनुमति देने की मांग की थी, ताकि उनके जीवन में समाज में समानता और समाज सुधार हो सके।
  2. बाल विवाह निषेध: राजा राम मोहन रॉय ने बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उन्होंने बच्चों के विवाह की उम्र को न्यूनतम सीमा तक बढ़ाने की आवश्यकता को मान्यता दी और इससे बच्चों की शिक्षा और समाज में समरसता में सुधार करने का प्रयास किया।
प्रश्न-16. शुक्र के अनुसार मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में नियुक्ति पाने के लिए आवश्यक कोई चार योग्यतायें बताईए ?

उत्तर:-

प्रश्न-17. कौटिल्य के अनुसार धर्म किस प्रकार राजा के कार्यों को मर्यादित करता है ?

उत्तर:- राजा का कर्त्तव्य था- प्रजा की रक्षा करना। इसमें प्रजा के धर्म की रक्षा करने का दायित्व भी आ जाता था। अतः राजा धार्मिक नियमों की उपेक्षा नहीं कर सकता था। यदि वह ऐसा करता तो ब्राह्मण उसके विरुद्ध हो जाते और उसके प्रति विद्रोह कर देते।

प्रश्न-18.भारत में ब्रिटिश शासन को गोखले एक वरदान के रूप में क्यों मानते थे ?

उत्तर:-

प्रश्न-19.

उत्तर:-

प्रश्न-20. ‘अर्थशास्त्र’ पुस्तक के लेखक का नाम लिखिए।

उत्तर:-‘अर्थशास्त्र’ पुस्तक के लेखक का नाम ‘कौटिल्य’ था, जिन्हें चाणक्य भी कहा जाता है।

प्रश्न-21. कौटिल्य ने न्यायालय के कितने प्रकार बताए हैं ?

उत्तर:-

प्रश्न-22. शिक्षा पर स्वामी दयानंद के विचार स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-स्वामी दयानन्द सरस्वती के अनुसार शिक्षा वही है जो मानव को ज्ञान या विद्या – पिपासु बनाये। उनके अनुसार ब्रह्म, जीवात्मा और पदार्थ के वास्तविक स्वरूप को जानना विद्या है और न जानना अज्ञान है। विद्या को स्वामी जी ने मानव कल्याण का साधन माना जिससे केवल व्यक्ति का ही नहीं वरन् समष्टि का कल्याण हो ।

प्रश्न-23. राष्ट्रवाद पर तिलक के विचार स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:- वास्तव में राष्ट्रवाद स्वयं दो विरोधी भावनाओं का मिश्रण है । पहला एकता और दूसरा पृथकता की भावना है । एकता का तात्पर्य है राष्ट्रीयता की भावना को सर्वोच्च महत्व प्रदान करना । परिवार की तुलना में राष्ट्र को महत्व और आवश्यकता पड़ने पर परिवार और समाज के हितों का उत्सर्ग करना ।

प्रश्न-24. ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ पर राजा राममोहन राय के विचारों को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:- राजा राम मोहन राय ने उस समय मौजूद प्रेस सेंसरशिप कानूनों को चुनौती देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने तर्क दिया कि प्रेस स्वतंत्र भाषण को बढ़ावा देने के लिए एक आवश्यक उपकरण है और प्रेस पर कोई भी प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

प्रश्न-25. गाँधी के अनुसार ‘सत्य का सिद्धान्त’ क्या है ?

उत्तर:-गांधी जी ने आत्मा की आवाज को सत्य कहा लेकिन सत्य को ईश्वर के साथ जोड़ा और कहा सत्य ही ईश्वर है। गांधी जी संसार को अपरिवर्तनीय तथा अटल नियमों से संचालित होता है ऐसा वह मानते हैं। सत्य ही हमारे जीवन का प्राणतत्व है। सत्य के बिना जीवन किसी सिद्धान्त या नियम का पालन कठिन है।उनके अनुसार, सत्य के पीछे खड़े रहकर व्यक्ति न सिर्फ खुद को समझता है, बल्कि समाज में भी नैतिकता, ईमानदारी और न्याय की मूल आधारशिला को बनाए रखता है।

प्रश्न-26. डॉ. अम्बेडकर द्वारा लिखित किन्हीं दो पुस्तकों के नाम लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-27. मनु के अनुसार राज्य के सात अंगों के नाम लिखिए ?

उत्तर:-स्वामी, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, दण्ड और मित्र

प्रश्न-28. तिलक के अनुसार निष्क्रिय प्रतिरोध क्या है ?

उत्तर:-

प्रश्न-29. गोपाल कृष्ण गोखले के कोई दो आर्थिक विचारों को लिखिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-30.

उत्तर:-

Section-B

प्रश्न-1. मनुस्मृति में वर्णित शासक के व्यक्तिगत गुणों का परीक्षण कीजिए ?

उत्तर:-मनुस्मृति में स्पष्ट किया गया है कि राजा को सदैव लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, जो प्राप्त हो गया है उसे सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। राजकोष को भरने का सदैव प्रयास करना चाहिए। समाज के कमजोर एवं सुपात्र लोगों को दान करना चाहिए।

मनुस्मृति में वर्णित शासक के व्यक्तिगत गुणों का परीक्षण निम्नलिखित है-

  1. अहिंसा: शासक को अहिंसा का पालन करना चाहिए, क्योंकि शासन का उद्देश्य शांति और सुरक्षा होता है।
  2. सत्य: वर्णित शासक को सत्यव्रत और सत्यकाम होना चाहिए, ताकि उसका निर्णय न्यायपूर्ण हो।
  3. क्षमा: वर्णित शासक को क्षमाशील होना चाहिए, क्योंकि यह समृद्धि और सद्गति की प्राप्ति में मदद करता है।
  4. सरलता: शासक को सरल और सादगी से व्यवहार करना चाहिए, ताकि जनता के साथ अच्छे संबंध बना सके।
  5. साहस: वर्णित शासक को साहसी और निर्भीक होना चाहिए, क्योंकि समस्याओं का सामना करना उसकी क्षमता को दर्शाता है।
  6. आदर्शवाद: शासक को आदर्शों का पालन करना चाहिए, ताकि जनता भी उसके प्रति समर्पित हो सके।
  7. संयम: वर्णित शासक को अपने इंद्रियों को निग्रह करने की क्षमता होनी चाहिए, ताकि उसके निर्णय न्यायपूर्ण और विचारशील हों।
  8. ज्ञान: शासक को विद्या प्राप्त करने की प्रेरणा होनी चाहिए, ताकि उसके पास न्यायपूर्ण और विचारशील निर्णय लेने की क्षमता हो।

ये गुण मनुस्मृति में वर्णित शासक के आदर्शों और आचारण को स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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प्रश्न-2. राज्य की उत्पत्ति के बारे में कौटिल्य के विचार स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-कौटिल्य के अनुसार राजा और राज्य में कोई भेदभाव नहीं है । वह राजा और राज्य को एक दूसरे का पर्यायवाची मानते हैं । कौटिल्य के अनुसार राज्य एक जीवित प्राणी की तरह है, जिस प्रकार एक सजीव प्राणी का लगातार विकास होता है, उसी प्रकार राज्य का और उसके अंग का भी लगातार विकास होता रहता है । कौटिल्य राज्य के सावयवी रूप में विश्वास रखते थे उनके अनुसार राज्य की सात प्रकृतियाँ है- स्वामी,अमात्य, जनपद, दुर्ग,कोष,दंड,और मित्र।

चाणक्य (कौटिल्य) के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति महत्वपूर्ण तत्वों से होती है। उन्होंने राज्य की उत्पत्ति को ‘सप्ताङ्ग’ विकल्प के माध्यम से स्पष्ट किया:

  1. राजा (किंग): एक शक्तिशाली और योग्य राजा होना आवश्यक है जिसका लक्ष्य राष्ट्र की सुरक्षा और विकास हो।
  2. मंत्री (मिनिस्टर्स): योग्य और निष्कलंक मंत्री जो राजा की सहायता करें और उनके निर्णयों का सही प्रकार से पालन करें।
  3. कोष (त्रेजरी): योग्य त्रेजरी जो वित्तीय प्रबंधन करें और राष्ट्र के विकास के लिए संसाधन प्रदान करें।
  4. सेना (आर्मी): शक्तिशाली और अभ्युदयकारी सेना जो राष्ट्र की सुरक्षा की दिशा में काम करे।
  5. मित्र (आलायंकरित राज्य): संबंधित और सहायक राज्यों के साथ अच्छे संबंध जोड़ना और सामर्थ्यवर्धन करना।
  6. शास्त्र (धर्मशास्त्र और कानून): समर्थक और न्यायप्रिय धर्मशास्त्र और कानून जो न्यायपूर्ण और संविधानिक आदान-प्रदान करे।
  7. जन (जनसामान्य): जनसामान्य का समर्थन और सहयोग जिनसे राज्य का विकास संभव हो।

कौटिल्य के अनुसार, ये सप्ताङ्ग राज्य की उत्पत्ति के महत्वपूर्ण घटक होते हैं जो सुरक्षा, विकास और न्याय की सुनिश्चित करते हैं।

प्रश्न-3. गोपाल कृष्ण गोखले के सामाजिक विचारों का वर्णन कीजिये ?

उत्तर:-गोखले एक राजनीतिक संन्यासी थे। राजनीति में नैतिकता तथा उच्च उद्देश्यों को लेकर उनका विश्वास था कि धर्म को राजनीति का आधार होना चाहिए । उनका राजनीतिक उद्देश्य सत्ता तथा शक्ति प्राप्त करना न होकर सेवा धर्म निभाने का था। उनके द्वारा स्थापित भारत सेवक समाज’ का मुख्य उद्देश्य भी राजनीति और धर्म का समन्वय करना था।

गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और सोशल रिफॉर्मर थे। उनके सामाजिक विचार निम्नलिखित थे:

  1. शिक्षा का महत्व: गोखले ने शिक्षा को उत्कृष्ट माध्यम के रूप में देखा और लोगों को शिक्षित बनाने के लिए प्रेरित किया।
  2. सामाजिक सुधार: उन्होंने ब्राह्मण-शूद्र विभाजन के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में समानता की ओर अग्रसर होने के लिए कई प्रयास किए।
  3. स्त्री शिक्षा: गोखले ने स्त्री शिक्षा के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की और महिलाओं को शिक्षित होने की प्रेरणा दी।
  4. राष्ट्रवाद: वे भारतीय राष्ट्रवाद के पक्षधर थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाने में सक्रिय रहे।
  5. समर्पण और सेवाभाव: उनकी जीवनशैली में सेवा भावना थी और वे देश और समाज की सेवा में लगे रहे।
  6. विद्या-दान: उन्होंने विभिन्न शिक्षा संस्थानों की स्थापना की और विद्या को अधिक लोगों के लिए पहुंचाने का प्रयास किया।
  7. धर्म और मानवता: गोखले ने धर्म और मानवता के महत्व को स्वीकारा और उन्होंने धर्म के माध्यम से समाज में सुधार करने का संकल्प लिया।

गोपाल कृष्ण गोखले के सामाजिक विचार भारतीय समाज को सुधारने और उन्नति करने के लिए महत्वपूर्ण थे।

प्रश्न-4. “लोकतान्त्रिक समाजवाद’ पर नेहरू के विचारों को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:- पंडित जवाहरलाल नेहरू के “लोकतांत्रिक समाजवाद” के विचार भारतीय राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थे। उन्होंने इस दृष्टिकोण के माध्यम से भारतीय समाज को सुशासन, सामाजिक न्याय, और सामर्थ्य की दिशा में मार्गदर्शन किया।

नेहरू के लोकतांत्रिक समाजवाद के मुख्य विचार निम्नलिखित थे-

  1. समाज में समानता: नेहरू के अनुसार, समाज में समानता की स्थापना होनी चाहिए, जिससे सभी वर्गों को समान अवसर और अधिकार मिल सकें।
  2. सामाजिक न्याय: उन्होंने सामाजिक न्याय के माध्यम से गरीबी, असहमति, और असमानता को कम करने का प्रयास किया।
  3. आर्थिक स्वराज्य: नेहरू ने आर्थिक स्वराज्य के लिए उद्यमिता, उद्योग, और कृषि के क्षेत्र में निवेश की महत्वपूर्णता पर बल दिया।
  4. विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग: नेहरू ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से देश की तकनीकी और आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने की दिशा में कदम उठाया।
  5. पूर्वाग्रह नीति: वे भारतीय साहित्य, कला, और संस्कृति को प्रमोट करने के लिए पूर्वाग्रह नीति का पालन करते थे।
  6. नवयुवकों की भागीदारी: उन्होंने युवाओं को समाज और राष्ट्र के निर्माण में भागीदारी का आह्वान किया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के लोकतांत्रिक समाजवाद के विचार ने भारतीय समाज को एक न्यायपूर्ण, समानतापूर्ण, और सामर्थ्यशाली समाज की दिशा में अग्रसर करने के मार्गदर्शन किए।

प्रश्न-5. अम्बेडकर के प्रमुख राजनीतिक विचारों का उल्लेख कीजये ?

उत्तर:- डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रमुख राजनीतिक विचार निम्नलिखित थे:

  1. समाजिक समानता की मांग: अंबेडकर ने समाज में समाजिक समानता की मांग की और दलितों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया।
  2. वर्ग निषेध और उत्थान: उन्होंने वर्ग निषेध के खिलाफ आवाज उठाया और दलितों के उत्थान के लिए कई योजनाएं बनाई।
  3. जातिवाद के खिलाफ: उन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाया और समाज में जातिवाद के खिलाफ संघर्ष किया।
  4. समाज में समानता: अंबेडकर ने समाज में समानता की महत्वपूर्णता को समझाया और विभिन्न वर्गों के बीच समानता की प्रोत्साहना दी।
  5. संविधान निर्माण: उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और समाजिक और राजनीतिक समानता के सिद्धांत शामिल किए।
  6. धर्म सुधार और विशेषाधिकार: उन्होंने धर्म सुधार की मांग की और दलितों को विशेषाधिकार प्रदान करने की जरूरत बताई।
  7. प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मान: डॉ. अंबेडकर ने दलितों की प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मान की महत्वपूर्णता को समझाया और उन्हें समाज में समानता की ओर अग्रसर होने के लिए प्रोत्साहित किया।
  8. भाषा और समानता: उन्होंने भाषा के माध्यम से विभाजन के खिलाफ आवाज उठाया और सभी भाषाओं को समान दर्जा दिलाने की मांग की।

डॉ. भीमराव अंबेडकर के राजनीतिक विचार ने भारतीय समाज को समाजिक और राजनीतिक समानता की दिशा में मार्गदर्शन किया और उन्होंने दलित समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्ष किया।

प्रश्न-6. राष्ट्रवाद’ के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए ?

उत्तर:- ‘राष्ट्रवाद’ का सिद्धांत विभिन्न मानव समाजों में एक एकता और समरसता की भावना को प्रोत्साहित करता है। यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक, और आध्यात्मिक सिद्धांत है जिसका मुख्य उद्देश्य एकता और समरसता की भावना को बढ़ावा देना है।

राष्ट्रवाद के मुख्य सिद्धांतों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. राष्ट्र का प्राथमिकता: राष्ट्रवाद में राष्ट्र को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। राष्ट्र के हितों की प्राथमिकता होती है और सभी व्यक्तियों का सर्वोपरि हित सामाजिक और आर्थिक विकास में होना चाहिए।
  2. एकता और समरसता: राष्ट्रवाद समाज में एकता और समरसता की प्रोत्साहना करता है। यह सभी वर्गों के बीच भेदभाव को कम करने की दिशा में कदम उठाता है।
  3. स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता: राष्ट्रवाद में स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के माध्यम से राष्ट्र की महत्वपूर्णता को बढ़ावा दिया जाता है।
  4. राष्ट्रप्रेम: यह सिद्धांत राष्ट्रप्रेम की भावना को प्रोत्साहित करता है और लोगों को अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित होने की प्रेरणा देता है।
  5. सामाजिक न्याय: राष्ट्रवाद में सामाजिक न्याय को महत्व दिया जाता है और समाज में समानता की प्रोत्साहना होती है।
  6. सहभागिता और सहयोग: यह सिद्धांत सभी नागरिकों को राष्ट्र के विकास में सहभागिता और सहयोग करने की प्रेरणा देता है।

राष्ट्रवाद के अनुसार, एक समृद्ध, समरस, और सामाजिक समानता से भरपूर राष्ट्र की स्थापना होनी चाहिए जो सभी नागरिकों के उन्नति और सुख-शांति की प्राप्ति की दिशा में प्रयासरत हो।

प्रश्न-7. राज्य की उत्पत्ति के बारे में मन्नू और कौटिल्य के विचारों में क्या भिन्नता है?

उत्तर:-(1) कौटिल्य का राज्य सिद्धांत समझौतावादी है, जबकि मनु का राज्य सिद्धत दैवीय हैं। (2) कौटिल्य अत्याधिक स्पष्ट दण्ड नीति की स्थापना करते हैं, जबकि मनु की दण्ड नीति अस्पष्ट एवं जटिल है। (3) कौटिल्य राजा के शिक्षा को अत्याधिक अनिवार्य मानता है, अर्थात मनु ने ऐसा कोई विचार नहीं दिया।

प्रश्न-8. शुक्र द्वारा प्रतिपादित प्रशासनिक प्रणाली के प्रमुख तत्वों पर प्रकाश डालिये ?

उत्तर:-शुक्र ने प्रशासन की कार्यालय पद्धति में लिखित आदेश को अत्यधिक महत्व दिया है। उनके अनुसार, अधिकारी या सहायकों को बिना लिखित राजाज्ञा के कोई कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि राजा की राजमुद्रा व हस्ताक्षर युक्त लिखित आदेश ही वास्तविक राजा होता है, व्यक्ति राजा नहीं होता है। शुक्र ने यह प्रतिपादित किया है कि शासन का उत्तराधिकारी राजकुल में से ही लिया जाना चाहिए, किन्तु राजा के ज्येष्ठ पुत्र को स्वतः ही शासन का उत्तराधिकारी नहीं मान लेना

महर्षि शुक्र ने प्रशासनिक प्रणाली के मौलिक सिद्धांतों की व्याख्या की थी। उनके द्वारा प्रतिपादित प्रशासनिक प्रणाली के मौलिक सिद्धांतों को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. राजा (किंग): एक योग्य और धर्मनिष्ठ राजा जो राष्ट्र की सुरक्षा और कल्याण का आदर करता है। वे राजा के गुणों के महत्व को प्रमोट करते थे।
  2. मन्त्रिमंडल (मिनिस्टर्स): योग्य और निष्कलंक मंत्रिमंडल जो राजा के साथ मिलकर निर्णय लेते हैं और राष्ट्र की सेवा करते हैं।
  3. सेना (आर्मी): शक्तिशाली और विशेषज्ञ सेना जो राष्ट्र की सुरक्षा के लिए तैयार रहे। उनके अनुसार, सेना राष्ट्रीय सुरक्षा की कुंजी होती है।
  4. सत्य और न्याय (धर्म और न्याय): धर्मिक और न्यायप्रिय नीतियों का पालन करने वाला शासक जो जनता के न्याय की रक्षा करता है।
  5. प्रशासनिक विभाग (अधिकारियाँ): सामाजिक और आर्थिक सुधार के लिए नियुक्त अधिकारियाँ जो सुशासन की रक्षा करते हैं।
  6. आर्थशास्त्र (वित्तीय प्रबंधन): योग्य आर्थिक विशेषज्ञ जो राजकोष की देखभाल करते हैं और राष्ट्र के आर्थिक विकास की कवचनिति करते हैं।
  7. विद्या (शिक्षा): शिक्षा के माध्यम से जनसामान्य की उन्नति का समर्थन करने वाला शासक जो शिक्षा की महत्वपूर्णता को समझता है।

शुक्र ऋषि के अनुसार, उपरोक्त मौलिक सिद्धांत एक सुशासनयुक्त और सुरक्षित समाज की निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न-9. स्वामी दयानन्द के राष्ट्रवाद की अवधारणा की विवेचना कीजिए ?

उत्तर:- स्वामी दयानंद सरस्वती ने राष्ट्रवाद की अपनी विशेष धारणा प्रस्तुत की, जो भारतीय समाज को एक मजबूत और संगठित राष्ट्र की दिशा में मार्गदर्शन करने का प्रयास करती है। उनके राष्ट्रवादी विचारों की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  1. वैदिक संस्कृति का महत्व: स्वामी दयानंद ने वैदिक संस्कृति को अपनाने की आवश्यकता को महत्व दिया। उनके अनुसार, वेदों में एक संपूर्ण ज्ञान और आदर्श छिपे हैं, जो भारतीय समाज को सशक्त और समरस बना सकते हैं।
  2. भारतीय स्वाभिमान: स्वामी दयानंद ने भारतीय स्वाभिमान को बढ़ावा दिया और लोगों को उनकी धरोहर, भाषा, और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस कराया।
  3. धर्मविरोधी तत्वों का खंडन: उन्होंने धर्मविरोधी तत्वों के खिलाफ आवाज उठाया, जैसे कि मूर्तिपूजा, जातिवाद, और बालिका बलात्कार।
  4. शिक्षा और ज्ञान: स्वामी दयानंद ने शिक्षा और ज्ञान की महत्वपूर्णता को स्थापित किया। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से जनसामान्य को जागरूक बनाने की आवश्यकता को बताया।
  5. भारतीय संस्कृति का पुनर्निर्माण: स्वामी दयानंद ने भारतीय संस्कृति के पुनर्निर्माण के लिए संघर्ष किया, जिसमें वैदिक आदर्शों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
  6. सामाजिक उत्थान: उन्होंने समाज में सामाजिक उत्थान की महत्वपूर्णता को समझाया और जातिवाद के खिलाफ उत्कृष्ट संघर्ष किया।

स्वामी दयानंद के राष्ट्रवादी विचार ने भारतीय समाज को आत्मनिर्भर और एकत्रित राष्ट्र की दिशा में प्रेरित किया। उनके विचारों का प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज को आत्मगौरव में उन्नति दिलाना था, जो राष्ट्रीय उत्थान की मूल आवश्यकता है।

प्रश्न-10. गांधी के आर्थिक विचारों के बारे टिप्पणी कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-11. विवेकानन्द के योगदान पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर:- स्वामी विवेकानंद का योगदान भारतीय राजनीतिक विचारकों के लिए महत्वपूर्ण था। उनके विचार, आदर्श, और कार्यों ने भारतीय समाज को उत्थान, स्वाधीनता, और आत्मविश्वास की दिशा में प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और धर्म की महत्वपूर्णता को प्रस्तुत किया और विश्वभर में उनके माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत किया। उन्होंने योग, वेदांत, और भारतीय धार्मिकता के माध्यम से मानवता की एकता, शांति, और सहानुभूति की महत्वपूर्णता को स्पष्ट किया।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज को समाजिक उत्थान के माध्यम से स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरित किया। उन्होंने ब्रह्मचर्य, सामर्थ्य, और सेवा के माध्यम से युवाओं को समर्पित जीवन जीने की प्रेरणा दी, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण थी।

विशेष रूप से, स्वामी विवेकानंद का संघटनात्मक योगदान भारतीय युवाओं के सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता में था। उन्होंने विचार दिया कि युवा पीढ़ी देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है और उन्हें सशक्त बनाने के लिए उन्हें आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, और सामर्थ्य की आवश्यकता है।

स्वामी विवेकानंद के योगदान से विशेष रूप से भारतीय समाज के अछूत, पिछड़े, और निराश्रित वर्गों के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने समाज में समानता और न्याय की महत्वपूर्णता को बताया और भारतीय समाज के सभी वर्गों को समरसता की दिशा में प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद का योगदान भारतीय राजनीतिक विचारकों के लिए उन्नति, समृद्धि, और समाजिक समरसता की दिशा में प्रेरणास्त्रोत बना। उनके विचार ने आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, और राष्ट्रीय एकता की महत्वपूर्णता को समझाया और भारतीय समाज के विकास के माध्यम से उनकी योगदान की महत्वपूर्णता को स्पष्ट रूप से दिखाया।

प्रश्न-12.अन्तर्राष्ट्रीय संबंध के संदर्भ में कौटिल्य द्वारा प्रस्तुत ‘वादगुण्य नीति’ क्या है ?

उत्तर:-वादगुण्य नीति, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आन्तर्राष्ट्रीय संबंध के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस नीति के अनुसार, एक राज्य के साथ व्यापारिक, सामर्थ्य और सौदे करने से पहले उसके समाप्तिता का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। कई तरह के गुणों की मूल्यांकन से यह तय होता है कि किस प्रकार के सौदे की आवश्यकता है और कितने अधिक आपातकालीन हो सकते हैं। इससे दोनों पक्षों के बीच समझौते में मदद मिलती है और आदर्श संबंध स्थापित होते हैं। यह सिद्धांत आन्तर्राष्ट्रीय दिप्लोमेसी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक तत्त्व है जो राज्यों के बीच सहयोग और संबंध बनाने में मदद करता है।

प्रश्न-13. दयानंद सरस्वति के अनुसार राजा के कार्यों को नियंत्रित करने वाले विभिन्न तत्त्वों का परीक्षण कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-14. ‘पंचशील’ के पाँचो सिद्धान्तों को समझाईए ?

उत्तर:- ‘पंचशील’ भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चौ एन लाई के बीच स्वीकृत संवादों के परिणामस्वरूप बने एक महत्वपूर्ण समझौते को दर्शाते हैं। ‘पंचशील’ में पांच मुख्य सिद्धांत थे:

  1. समावेशी आपसी सहायता (Mutual Coexistence): इस सिद्धांत में प्रमुख विचार था कि विभिन्न देशों के बीच आपसी सहायता और समझौता से शांति और सहयोग स्थापित किए जा सकते हैं।
  2. आपसी अभिवादन (Mutual Respect): इस सिद्धांत के अनुसार, सभी देशों को एक-दूसरे की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान का सम्मान करना चाहिए।
  3. शांति और अभय (Peace and Non-Violence): इस सिद्धांत में शांति और अहिंसा की महत्वपूर्णता बताई गई थी। यह देशों को युद्ध से बचाने और उनके बीच समझौते की दिशा में आग्रह करता था।
  4. अपनत्व (Equality and Mutual Benefit): इस सिद्धांत के अनुसार, विकास और सहयोग के लिए देशों को अपनत्व और सामंजस्य दृष्टिकोण दिखाना चाहिए।
  5. आपसी अस्तित्व का सम्मान (Respect for Territorial Integrity): इस सिद्धांत में दिखाया गया कि एक-दूसरे के स्वतंत्रता और अखंडता का सम्मान करना और किसी देश के सूचनात्मक सीमा और समृद्धि के अधिकार को मान्यता देना चाहिए।

‘पंचशील’ ने भारत और चीन के बीच संबंधों को मजबूत किया और उनके आपसी सहयोग, सामझौता और शांति के लिए एक मानक स्थापित किया।

प्रश्न-15. मानवेन्द्र नाथ रॉय द्वारा प्रतिपादित नव मानववाद का अर्थ बताईए ?

उत्तर:- मानवेन्द्र नाथ रॉय ने ‘नव मानववाद’ की प्रारंभिक प्रासंगिकता को मानवता के समक्ष रखकर एक नई विचारधारा को प्रस्तुत किया था। इसका मुख्य अर्थ था कि पूर्व मानववाद की दृष्टि से नए आवश्यकताओं और सामाजिक परिवर्तनों के बीच नये सामाजिक तथा आर्थिक आदर्शों की आवश्यकता है।

नव मानववाद का लक्ष्य मानवता की समृद्धि और सामाजिक न्याय की प्राप्ति है। इस वाद के अनुसार, मानवता को नये विचार और उद्देश्यों के साथ नवा दिशा मिलना चाहिए, जिससे वह आत्मनिर्भर, समृद्ध, और समाज में सामाजिक समरसता के साथ जी सके।

इस मानववाद में समाज के नीति निर्माता को नए प्राथमिकताओं को मानवीय मूल्यों के साथ मिलाने की आवश्यकता होती है, जिससे दायित्वपूर्ण व्यक्तिगत और सामाजिक विकास संरचनाओं का निर्माण हो सके। यह विचारधारा समाजवादी और मानवतावादी मूल्यों के साथ उद्यमिता, आत्मनिर्भरता, और सामाजिक समरसता को प्राथमिकता देती है।

प्रश्न-16. धर्म के सम्बन्ध में मनु के विचारों को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-17. कौटिल्य के ‘सप्तांग सिद्धान्त’ के महत्व को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-18.  राजा राममोहन रॉय के राजनीतिक विचार स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-19. डॉ. अम्बेडकर की ‘सामाजिक न्याय’ की अवधारणा को समझाइए ?

उत्तर:-

प्रश्न-20. ‘ग्राम स्वराज’ पर गाँधीजी के विचारों को स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर:-

Section-C

प्रश्न-1. जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक विचारों की विवेचना कीजिये ?

उत्तर:- जवाहरलाल नेहरू की राजनीतिक विचारधारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता, पहले प्रधानमंत्री और भारतीय गणराज्य के पहले प्रधानमंत्री के रूप में उनके दौरान की गई सोच, दर्शन और दृष्टिकोण का परिणाम है। उनकी राजनीतिक विचारधारा का मूल आधार स्वतंत्रता, समाजवाद और विकास पर आधारित था।

नेहरू की राजनीतिक विचारधारा के प्रमुख पहलु:

  1. स्वतंत्रता और सामाजवाद: नेहरू के दृष्टिकोण में स्वतंत्रता और सामाजवाद एक-दूसरे के अटूट हिस्से थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ समाज में सामाजिक न्याय की प्राथमिकता को भी माना।
  2. पश्चिमी विचारधारा के प्रभाव का असर: नेहरू ने पश्चिमी विचारधारा से भी प्रेरणा ली, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, लोकतंत्र, और आधुनिकता की महत्वपूर्णता थी।
  3. प्रगतिशीलता और विकास: नेहरू ने विज्ञान, तकनीकी, और आधुनिक शिक्षा के प्रति महत्वपूर्ण रूप से विश्वास किया। उन्होंने विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण पहलुओं का प्रस्ताव किया जैसे कि विज्ञानिक अनुसंधान, उच्च शिक्षा, और औद्योगिकीकरण।
  4. पूर्वाग्रह, आत्मनिर्भरता और स्वदेशी: नेहरू ने भारत की आत्मनिर्भरता और स्वदेशी आंदोलन की महत्वपूर्णता को माना। उन्होंने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने और विज्ञान तथा तकनीकी में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  5. विश्वयुद्ध और शांति: नेहरू ने विश्वयुद्ध के बाद शांति और विश्वसामंजस्य की महत्वपूर्णता को समझाया और भारत को विश्व स्तर पर शांतिप्रिय नीति की प्रेरणा दी।
  6. गणराज्य और लोकतंत्र: नेहरू के दृष्टिकोण में गणराज्य और लोकतंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने सामाजिक न्याय, सामाजिक समानता, और न्यायपूर्ण आराजकता की प्राथमिकता को माना।

नेहरू की राजनीतिक विचारधारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण पहलुओं के साथ-साथ भारतीय समाज में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और आधुनिकता की महत्वपूर्णता को भी मानती थी। उनका दृष्टिकोण आधुनिक, विज्ञानिक, और विकासवादी भारत की दिशा में था, जिसने भारत को विश्व में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में मदद की।

(जिस भी प्रश्न का उत्तर देखना हैं उस पर क्लिक करे)

प्रश्न-2. राज्य के कार्यक्षेत्र पर मनु के विचारों की विवेचना कीजिए ?

उत्तर:- मनुस्मृति में राज्य के कार्यक्षेत्र के विचार एक महत्वपूर्ण भाग हैं। मनु के दृष्टिकोण से राज्य का मुख्य उद्देश्य समाज के न्याय, शांति, और धर्म की रक्षा करना है। उनकी दृष्टि में राज्य को समाज के सभी वर्गों के कल्याण की प्राधिकृत संरक्षिका माना गया है।

मनुस्मृति में राज्य के कार्यक्षेत्र के अनुसार निम्नलिखित मुख्य विचार दिए गए हैं:

  1. धर्मरक्षा और धर्मनिरपेक्षता: मनु के अनुसार, राज्य की प्रमुख दायित्विकता धर्म की रक्षा और प्रोत्साहना करना है। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की प्रेरणा दी और समाज में धर्मिक आदर्शों की स्थापना को प्राथमिकता दी।
  2. न्याय: मनुस्मृति में न्याय की महत्वपूर्णता को बताया गया है। उनके अनुसार, राज्य का कार्य है कि वे सभी को न्यायपूर्ण तरीके से निर्णय दें और दायित्वों के अनुसार सजा दें।
  3. शिक्षा: मनु ने शिक्षा की महत्वपूर्णता को स्वीकारा और राज्य को शिक्षा के प्रदान में निरंतर होने की दिशा में प्रोत्साहित किया।
  4. शास्त्रों की स्थापना: मनु के अनुसार, राज्य का कार्य था कि वे शास्त्रों की स्थापना और संरक्षण करें जो समाज के निर्वाचन और न्याय के नियमों को प्रणालीत करते थे।
  5. राजकीय प्रशासन: मनुस्मृति में उन्होंने राजकीय प्रशासन के विभिन्न पहलुओं को विवरणित किया। उन्होंने यह स्थान दिया कि राज्य के प्रशासन में सत्यता, धर्म, और न्याय के आदर्शों का पालन करना चाहिए।
  6. आर्थिक व्यवस्था: मनु ने आर्थिक व्यवस्था की महत्वपूर्णता को स्वीकारा और राज्य को समाज की आर्थिक कल्याण की दिशा में कदम उठाने का परिश्रम करने की सलाह दी।

मनुस्मृति में राज्य के कार्यक्षेत्र के विचार समाज के न्याय, शांति, और धर्म की रक्षा के प्रति उनके आदर्शों का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करते हैं। उनके विचार ने समाज में आदर्श राज्य की स्थापना के प्रति मार्गदर्शन किया और समाज की सामाजिक सुधार और संरक्षण की दिशा में प्रेरित किया।

प्रश्न-3. राजा के कर्तव्यों के बारे में मनु के विचारों का परीक्षण और मूल्यांकन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-4. कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित ‘सप्तांग’ सिद्धान्त की विवेचना कीजिये ?

उत्तर:-

प्रश्न-5. सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह पर महात्मा गाँधी के विचारों की विवेचना कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-6. जय प्रकाश नारायण द्वारा प्रतिपादित ‘समग्र क्रांति’ की अवधारणा को समझाईए ?

उत्तर:- सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था। लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है – राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति।

प्रश्न-7. ” दयानन्द सरस्वती के चिन्तन का मूल स्रोत वेद हैं।” इस कथन की व्याख्या करते हुए दयानन्द के धर्म सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-8.कौटिल्य के मण्डल सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए ?

उत्तर:-

प्रश्न-9. तिलक की स्वराज्य की अवधारणा को समझाइए ?

उत्तर:-

प्रश्न-10. जयप्रकाश नारायण द्वारा पाश्चात्य उदारवादी लोकतंत्र के सन्दर्भ में की गई आलोचनाओं को लिखिए ?

उत्तर:-

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