VMOU Paper with answer ; VMOU SO-02 Paper BA 1ST Year , vmou Sociology important question

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VMOU SO-02 Paper BA 1st Year ; vmou exam paper 2024

vmou exam paper VMOU SO-02 Paper BA 1ST Year , vmou Sociology important question

नमस्कार दोस्तों इस पोस्ट में VMOU BA First Year के लिए समाजशास्त्र SOCIOLOGY [ SO-02 , (Society in India भारत में समाज ) ] का पेपर उत्तर सहित दे रखा हैं जो जो महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जो परीक्षा में आएंगे उन सभी को शामिल किया गया है आगे इसमे पेपर के खंड वाइज़ प्रश्न दे रखे हैं जिस भी प्रश्नों का उत्तर देखना हैं उस पर Click करे –

Section-A

प्रश्न-1.विवाह को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- विवाह, जिसे शादी भी कहा जाता है, दो लोगों के बीच एक सामाजिक या धार्मिक मान्यता प्राप्त मिलन है जो उन लोगों के बीच, साथ ही उनके और किसी भी परिणामी जैविक या दत्तक बच्चों तथा समधियों के बीच अधिकारों और दायित्वों को स्थापित करता है। एक विवाह के समारोह को विवाह उत्सव (वेडिंग) कहते है।

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प्रश्न-2.जाति का अर्थ समझाइए।

उत्तर:- कूले (Cooley) के अनुसार – “जब एक वर्ग पूर्णता है अनुवांशिकता पर आधारित होता है तो हम उसे जाती कहते हैं” । जे एच हट्टन (J. H. Huttan) के अनुसार – “जाति एक ऐसी व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत एक समाज अनेक आत्म केंद्रित एवं एक दूसरे से पूर्णत: पृथक इकाइयों में विभाजित रहता है ।

प्रश्न-3.परिवार को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- परिवार (family) साधारणतया पति, पत्नी और बच्चों के समूह को कहते हैं, किंतु दुनिया के अधिकांश भागों में वह सम्मिलित वासवाले रक्त संबंधियों का समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा स्वीकृत व्यक्ति भी सम्मिलित हैं।

प्रश्न-4.सामाजिक विकास क्या है ?

उत्तर:- सामाजिक विकास का मतलब है लोगों में निवेश करना। इसके लिए बाधाओं को दूर करना आवश्यक है ताकि सभी नागरिक आत्मविश्वास और गरिमा के साथ अपने सपनों की ओर यात्रा कर सकें। यह इस बात को स्वीकार करने से इनकार करने के बारे में है कि जो लोग गरीबी में रहते हैं वे हमेशा गरीब ही रहेंगे।

प्रश्न-5. संस्कार को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- संस्कार शब्द का मूल अर्थ है, ‘शुद्धीकरण’। मूलतः संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों से है जो किसी व्यक्ति को अपने समुदाय का पूर्ण रुप से योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते है, किन्तु हिंदू संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति में अभीष्ट गुणों को जन्म देना भी है।

प्रश्न-6. वर्ण को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- वर्ण एक सामाजिक श्रेणी है जो व्यक्ति को जन्म से ही मिलती है और आमतौर पर बदलती नहीं है। यह एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमें लोगों को विभिन्न समूहों में बांटा जाता है और इन समूहों के बीच सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक असमानताएं होती हैं।

प्रश्न-7. विविधता को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- विविधता एक ऐसी अवधारणा है जो समाज में लोगों के बीच मौजूद भिन्नताओं को दर्शाती है। ये भिन्नताएं विभिन्न पहलुओं पर आधारित हो सकती हैं जैसे कि जाति, धर्म, लिंग, उम्र, भाषा, संस्कृति, सामाजिक-आर्थिक स्थिति आदि। विविधता समाज को समृद्ध बनाती है लेकिन साथ ही सामाजिक चुनौतियाँ भी पैदा करती है।

प्रश्न-8. वर्ण के प्रकार बताइए।

उत्तर:- वर्ण के प्रकारों को विभिन्न मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. आर्थिक वर्ण:

  • उच्च वर्ण: उच्च आय वाले, उच्च शिक्षित और उच्च पदस्थ व्यक्ति।
  • मध्यम वर्ण: मध्यम आय वाले, मध्यम शिक्षित और मध्यम पदस्थ व्यक्ति।
  • निम्न वर्ण: निम्न आय वाले, कम शिक्षित और निम्न पदस्थ व्यक्ति।

2. सामाजिक वर्ण:

  • शासक वर्ग: समाज पर शासन करने वाले लोग।
  • धार्मिक वर्ग: धार्मिक नेता और पुजारी।
  • व्यापारी वर्ग: व्यापार और वाणिज्य से जुड़े लोग।
  • श्रमिक वर्ग: शारीरिक श्रम करने वाले लोग।

3. सांस्कृतिक वर्ण:

  • बौद्धिक वर्ग: शिक्षित और बुद्धिजीवी वर्ग।
  • कलाकार वर्ग: कला और संस्कृति से जुड़े लोग।
  • कृषक वर्ग: कृषि से जुड़े लोग।

4. जाति आधारित वर्ण:

  • शूद्र: श्रमिक और सेवा करने वाले।
  • ब्राह्मण: धार्मिक अध्ययन और शिक्षण से जुड़े।
  • क्षत्रिय: शासक और सैनिक।
  • वैश्य: व्यापारी और किसान।
प्रश्न-9.सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइए।

उत्तर:- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है समाज में होने वाले उन बदलावों से जो समय के साथ-साथ होते हैं। ये बदलाव समाज की संरचना, व्यवस्था, मूल्यों, विश्वासों, रीति-रिवाजों और लोगों के व्यवहार में दिखाई देते हैं। ये परिवर्तन धीमे या तेजी से हो सकते हैं और इनके कारण भी कई तरह के हो सकते हैं।

प्रश्न-10.पुरुषार्थ में ‘अर्थ’ से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-पुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है (‘पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः’)। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है। प्रायः मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

प्रश्न-11.शहर को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- शहर एक ऐसा बड़ा बस्ती है जहाँ उच्च जनसंख्या घनत्व होता है, आर्थिक गतिविधियाँ केंद्रित होती हैं, और सामाजिक जीवन अधिक जटिल होता है। यह एक भौगोलिक इकाई होने के साथ-साथ एक सामाजिक इकाई भी है।

प्रश्न-12.जेण्डर से आपका क्या अभिप्राय है ?

उत्तर:- जेंडर शब्द का अर्थ न केवल शरीर की संरचना या अन्य भौतिक संरचना में अंतर को प्रदर्शित करना है, बल्कि समाज में उनकी अलग-अलग जिम्मेदारियां इत्यादि भी हैं। जेंडर एक सामाजिक अवधारणा है क्योंकि यह पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक रूप से निर्मित अंतरों को संदर्भित करता है।

प्रश्न-13. धर्मनिरपेक्षीकरण की दो विशेषताएँ लिखिए

उत्तर:- धर्मनिरपेक्षीकरण की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं:

प्रश्न-14. एकता को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- समाजशास्त्र में एकता का अर्थ है समाज के विभिन्न सदस्यों के बीच आपसी सहयोग, सामंजस्य और एकजुटता की भावना। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें समाज के विभिन्न वर्ग, जाति, धर्म और क्षेत्र के लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं और साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम करते हैं।

प्रश्न-15. ‘भारत में बन्धुत्व संगठन’ नामक पुस्तक किसने लिखी है?

उत्तर:- श्रीमती इरावती कर्वे

प्रश्न-16. राजस्थान की किन्हीं दो जनजातियों के नाम लिखिए

उत्तर:- जनजाति में भील, मीणा, गरासिया व डामोर प्रमुख है।

प्रश्न-17. नगरीकरण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर:- किसी राष्ट्र की जनसंख्या का बढ़ता हुआ आकार जब शहर की तरफ निवास के लिए जमा होता है तो उसे नगरीकरण या “शहरीकरण” कहते है।।। वैसा प्रक्रिया जिसके अंतर्गत शहरों का अधिक पैमाने पर विस्तार होता है, शहरीकरण कहलाता है ।

प्रश्न-18. पश्चिमीकरण क्या है ?

उत्तर:- पश्चिमीकरण का तात्पर्य भारतीय समाज में पश्चिमी के किसी भी देश के प्रभाव से पैदा होने वाले परिवर्तन से है।

प्रश्न-19. अन्तर्विवाह क्या है?

उत्तर:- अंतर्विवाह का अर्थ है जब दो व्यक्ति अलग-अलग जाति, धर्म या सामाजिक समूहों से होते हुए भी विवाह बंधन में बंध जाते हैं। इसे विषमजातीय विवाह भी कहा जाता है। यह सामाजिक एकता और समरसता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न-20. आश्रम को परिभाषित कीजिए।

उत्तर:- आश्रम भारतीय समाज में जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाने वाली एक सामाजिक संस्था है। यह व्यक्ति के जीवन को चार भागों में विभाजित करती है: ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। प्रत्येक आश्रम में व्यक्ति को विशिष्ट कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करना होता है।

Section-B

प्रश्न-1.जाति एवं वर्ग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- जाति और वर्ग दोनों ही समाज में लोगों को विभिन्न समूहों में बांटने के लिए उपयोग किए जाने वाले सामाजिक वर्गीकरण हैं, लेकिन इन दोनों के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।

जाति

वर्ग

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प्रश्न-2.नातेदारी की विभिन्न श्रेणियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- नातेदारी की विभिन्न श्रेणियां

1. रक्त संबंध (Blood Relations)

ये वे संबंध हैं जो रक्त के माध्यम से जुड़े होते हैं, जैसे:

2. विवाह संबंध (Marriage Relations)

विवाह के माध्यम से उत्पन्न होने वाले संबंधों को विवाह संबंध कहते हैं, जैसे:

3. गोद लेने से उत्पन्न संबंध (Adoption Relations)

4. सामाजिक संबंध (Social Relations)

प्रश्न-3. समाज में धर्म के मुख्य कार्य क्या है ?

उत्तर:- समाज में धर्म एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है। यह व्यक्ति के जीवन को अर्थ और दिशा प्रदान करने के साथ-साथ समाज को एकजुट करने और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

समाज में धर्म के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं:

धर्म के सकारात्मक योगदान के साथ-साथ, यह कई बार सामाजिक विभाजन, संघर्ष और असहिष्णुता का कारण भी बन जाता है। धर्म का उपयोग अक्सर राजनीतिक हितों के लिए भी किया जाता है।

प्रश्न-4. हिन्दू विवाह के क्या उद्देश्य है ? समझाइए।

उत्तर:- हिंदू विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है और इसके कई उद्देश्य हैं:

संक्षेप में, हिंदू विवाह धर्म, प्रजा, रति, सामाजिक एकता और समाज सेवा जैसे कई उद्देश्यों को पूरा करता है। यह एक पवित्र संस्कार है जो व्यक्ति के जीवन में एक नया अध्याय शुरू करता है।

प्रश्न-5. ग्रामीण समाज की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- ग्रामीण समाज की विशेषताएं (Characteristics of Rural Society)

प्रश्न-6. जनजातीय समाज के अध्ययन के मुख्य उद्देश्यों को लिखिए।

उत्तर:- जनजातीय समाजों का अध्ययन मानव विज्ञान, समाजशास्त्र और इतिहास जैसे विषयों में महत्वपूर्ण है। इन अध्ययनों के माध्यम से हम न केवल जनजातीय समाजों के बारे में गहराई से जान पाते हैं, बल्कि मानव समाज के विकास और विविधता को भी बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। जनजातीय समाजों के अध्ययन के कुछ मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

प्रश्न-7. सामाजिक परिवर्तन के कारणों की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- सामाजिक परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है जिसमें समाज के विभिन्न पहलू जैसे कि संस्कृति, मूल्य, रीति-रिवाज, संस्थाएं और तकनीक समय के साथ बदलते रहते हैं। इन परिवर्तनों के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

संक्षेप में, सामाजिक परिवर्तन एक जटिल प्रक्रिया है जो कई कारकों से प्रभावित होती है। इन कारकों में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, तकनीकी और सांस्कृतिक कारक शामिल हैं।

प्रश्न-8. भारत में महिलाओं की स्थिति की विवेचना कीजिए।

उत्तर:- भारत में महिलाओं की स्थिति सदियों से जटिल और बहुआयामी रही है। एक ओर जहां भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

प्रश्न-9. पुरुषार्थ का समाजशास्त्रीय महत्व बताइए।

उत्तर:- पुरुषार्थ भारतीय दर्शन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो मानव जीवन के चार प्रमुख उद्देश्यों को दर्शाता है: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। समाजशास्त्र के दृष्टिकोण से, पुरुषार्थ की अवधारणा व्यक्ति और समाज के बीच के संबंध को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

निष्कर्ष:

पुरुषार्थ की अवधारणा भारतीय समाज और संस्कृति को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण कुंजी है। यह व्यक्ति और समाज के बीच के संबंध को समझने में मदद करती है और सामाजिक व्यवस्था, व्यक्तिगत विकास, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान जैसे विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती है। हालांकि, समय के साथ पुरुषार्थ की अवधारणा में परिवर्तन हुए हैं और इसे आधुनिक संदर्भ में पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

प्रश्न-10. आश्रम व्यवस्था पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:- आश्रम व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक संस्थान था। यह व्यवस्था व्यक्ति के जीवन को चार अलग-अलग चरणों में विभाजित करती थी:

  1. ब्रह्मचर्य आश्रम: यह जीवन का प्रारंभिक चरण था, जिसमें व्यक्ति शिक्षा और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करता था। ब्रह्मचारी गुरु के मार्गदर्शन में रहते थे और वेदों का अध्ययन करते थे।
  2. गृहस्थ आश्रम: यह जीवन का दूसरा चरण था, जिसमें व्यक्ति विवाह करता था, परिवार स्थापित करता था और समाज में योगदान देता था। गृहस्थ आश्रम में व्यक्ति धर्म, अर्थ और काम के पुरुषार्थों को पूरा करता था।
  3. वानप्रस्थ आश्रम: यह जीवन का तीसरा चरण था, जिसमें व्यक्ति गृहस्थ जीवन से संन्यास ले लेता था और वन में जाकर तपस्या करता था। वानप्रस्थ आश्रम में व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर चलता था।
  4. सन्यास आश्रम: यह जीवन का अंतिम चरण था, जिसमें व्यक्ति सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता था और पूरी तरह से आध्यात्मिक जीवन में लीन हो जाता था।

आश्रम व्यवस्था का महत्व:

  • व्यक्तिगत विकास: आश्रम व्यवस्था व्यक्ति को उसके जीवन के विभिन्न चरणों में विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद करती थी।
  • सामाजिक संगठन: यह व्यवस्था समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित करती थी और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करती थी।
  • धार्मिक विकास: आश्रम व्यवस्था धार्मिक जीवन के लिए एक संरचित ढांचा प्रदान करती थी।

आधुनिक समय में आश्रम व्यवस्था:

आधुनिक समय में आश्रम व्यवस्था का महत्व कम हो गया है, लेकिन कुछ लोग अभी भी इस व्यवस्था का पालन करते हैं। आधुनिक समय में आश्रमों को शिक्षा और आध्यात्मिक विकास के केंद्र के रूप में देखा जाता है।

निष्कर्ष:

आश्रम व्यवस्था प्राचीन भारतीय समाज की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। इस व्यवस्था ने व्यक्ति के जीवन को एक अर्थ और उद्देश्य प्रदान किया और समाज को एक संरचित ढांचा दिया। हालांकि, समय के साथ इस व्यवस्था में कई बदलाव आए हैं और आधुनिक समय में इसका महत्व कम हो गया है।

प्रश्न-11. “हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार है।” विवेचना कीजिए।

उत्तर:- हिन्दू विवाह को सदियों से एक पवित्र बंधन और धार्मिक संस्कार माना जाता रहा है। यह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि दो परिवारों और समाजों का भी संगम होता है। हिन्दू धर्म में विवाह को संसार और परलोक दोनों के लिए शुभ माना जाता है।

  • धार्मिक अनुष्ठान: हिन्दू विवाह में कई धार्मिक अनुष्ठान शामिल होते हैं, जैसे कि मंडप स्थापना, अग्नि के साक्षी में फेरे लेना, और देवताओं को प्रसाद चढ़ाना। ये अनुष्ठान विवाह को एक पवित्र और आध्यात्मिक अनुभव बनाते हैं।
  • सामाजिक दायित्व: हिन्दू विवाह केवल व्यक्तिगत इच्छा नहीं है, बल्कि एक सामाजिक दायित्व भी है। विवाह के माध्यम से व्यक्ति समाज में अपनी भूमिका निभाता है और परिवार का निर्माण करता है।
  • धार्मिक ग्रंथों में वर्णन: हिन्दू धर्म के विभिन्न ग्रंथों, जैसे कि वेद, पुराण और धर्मशास्त्रों में विवाह के महत्व और विधि-विधान का विस्तृत वर्णन मिलता है।
  • सांस्कृतिक पहचान: हिन्दू विवाह भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। यह भारतीय समाज के मूल्यों, रीति-रिवाजों और परंपराओं को दर्शाता है।

आधुनिक समय में परिवर्तन:

हालांकि, आधुनिक समय में हिन्दू विवाह में कई परिवर्तन हुए हैं। आजकल, विवाह को अधिक व्यक्तिगत और स्वतंत्र विकल्प के रूप में देखा जाता है। लोग अब अपनी पसंद के जीवनसाथी का चुनाव करने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके साथ ही, विवाह के अनुष्ठानों में भी सरलीकरण हुआ है।

निष्कर्ष:

हिन्दू विवाह एक जटिल और बहुआयामी संस्था है। यह धर्म, समाज और संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है। हालांकि, आधुनिक समय में इस संस्था में कई परिवर्तन हुए हैं, लेकिन इसका धार्मिक महत्व अब भी बना हुआ है।

प्रश्न-12. नातेदारी के प्रकार और समाज में इसके महत्व को लिखिए।

उत्तर:- answer question – 2 same

प्रश्न-13. भारत में जनजातीय समाज की विभिन्न समस्याओं की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:- भारत में जनजातीय समाज कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। इन समस्याओं का मूल कारण आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के कारण उनके पारंपरिक जीवन और संस्कृति पर पड़ने वाला प्रभाव है। कुछ प्रमुख समस्याएं इस प्रकार हैं:

  • भूमि हरण: औद्योगिक विकास और बड़े बांधों के निर्माण के कारण जनजातीय समुदायों की भूमि का हरण किया जा रहा है। इससे उनकी आजीविका और सांस्कृतिक पहचान पर गहरा असर पड़ रहा है।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव: जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। इससे उनके सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  • सामाजिक भेदभाव: गैर-आदिवासी समुदायों द्वारा आदिवासियों के साथ सामाजिक भेदभाव किया जाता है, जिससे उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • नशे की लत: कुछ जनजातीय समुदायों में नशे की लत की समस्या गंभीर रूप से बढ़ रही है, जो उनके स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रही है।
  • जंगलों का विनाश: जनजातीय समुदायों की आजीविका जंगलों पर निर्भर करती है। जंगलों के विनाश से उनकी जीवनशैली और संस्कृति खतरे में पड़ गई है।
  • कानूनी जागरूकता का अभाव: कई आदिवासी समुदायों में कानूनी जागरूकता का अभाव है, जिससे वे अपने अधिकारों का दावा करने में असमर्थ होते हैं।

इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार को कई कदम उठाने होंगे। जैसे कि, जनजातीय क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों को लागू करना, उनके अधिकारों की रक्षा करना, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करना और उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में मदद करना।

प्रश्न-14. भारत में ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:- भारत में ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था सदियों से विकसित हुई है और यह देश की विविधतापूर्ण संस्कृति और परंपराओं का प्रतिबिंब है। यह व्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है और इसमें परिवार, जाति, धर्म और ग्रामसभा जैसी संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था की कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:

ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था में आ रहे परिवर्तन:

निष्कर्ष:

भारत की ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था एक जटिल और गतिशील प्रक्रिया है। यह एक ओर जहां पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई है, वहीं दूसरी ओर आधुनिकीकरण के प्रभावों से भी गुजर रही है। ग्रामीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि इन परिवर्तनों को समझा जाए और ग्रामीण लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं।

प्रश्न-15. सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- प्रौद्योगिकी ने मानव समाज को सदैव से प्रभावित किया है और यह सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख कारक रहा है। प्रौद्योगिकी में होने वाले विकास ने हमारे रहन-सहन, सोचने और काम करने के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं।

प्रौद्योगिकी सामाजिक परिवर्तन को निम्न तरीकों से प्रभावित करती है:

उदाहरण:

निष्कर्ष:

प्रौद्योगिकी सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली कारक है। यह हमारे जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करती है। हालांकि, प्रौद्योगिकी के साथ-साथ कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिलते हैं, जैसे कि साइबर अपराध, निजता का हनन और सामाजिक असमानता। इसलिए, प्रौद्योगिकी के विकास के साथ ही हमें इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के उपाय भी खोजने होंगे।

प्रश्न-16. भारतीय समाज पर भूमण्डलीकरण के प्रभाव का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर:- भूमंडलीकरण ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसने विभिन्न देशों, संस्कृतियों और अर्थव्यवस्थाओं को एक-दूसरे के करीब ला दिया है। भारत इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय समाज में कई बदलाव आए हैं।

सकारात्मक प्रभाव:

  • आर्थिक विकास: भूमंडलीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े हैं और लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ है।
  • सूचना तक पहुंच: इंटरनेट और अन्य प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सूचना तक पहुंच आसान हो गई है, जिससे लोगों का ज्ञान बढ़ा है।
  • विश्वव्यापी संस्कृति: भूमंडलीकरण के कारण भारतीय संस्कृति विश्व स्तर पर लोकप्रिय हुई है।
  • नई तकनीक: विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत में नई तकनीकें आई हैं।

नकारात्मक प्रभाव:

  • सांस्कृतिक एकरूपता: भूमंडलीकरण के कारण स्थानीय संस्कृतियों और परंपराओं पर खतरा मंडरा रहा है।
  • आर्थिक असमानता: भूमंडलीकरण ने आर्थिक असमानता को बढ़ावा दिया है।
  • पर्यावरणीय समस्याएं: औद्योगीकरण और उपभोक्तावाद के कारण पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ी हैं।
  • शहरीकरण: भूमंडलीकरण के कारण लोगों का शहरों की ओर पलायन हो रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों का विकास रुक गया है।

निष्कर्ष:

भूमंडलीकरण के भारतीय समाज पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़े हैं। भारत को भूमंडलीकरण के लाभों को प्राप्त करते हुए इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए नीतियां बनानी होंगी।

अधिक जानने के लिए आप निम्नलिखित विषयों पर गौर कर सकते हैं:

  • भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभाव
  • भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण का प्रभाव
  • भूमंडलीकरण और भारतीय संस्कृति

Section-C

प्रश्न-1. जाति को परिभाषित कीजिए। भारत में जाति प्रथा का भविष्य क्या है ?

उत्तर:- जाति को एक सामाजिक वर्गीकरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो जन्म के आधार पर होता है और जिसमें लोगों को विभिन्न समूहों में बांटा जाता है। इन समूहों के सदस्यों को विशिष्ट सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति विरासत में मिलती है। भारत में जाति व्यवस्था सदियों से चली आ रही है और यह भारतीय समाज का एक जटिल पहलू है।

भारत में जाति प्रथा का भविष्य

भारत में जाति प्रथा का भविष्य अनिश्चित है। कई कारक इसके विकास को प्रभावित कर रहे हैं:

  • आधुनिकीकरण और शहरीकरण: बढ़ता शहरीकरण और आधुनिकीकरण जाति व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। शहरों में लोग विभिन्न जातियों के लोगों के साथ मिलते-जुलते हैं और जातिगत भेदभाव कम होता जा रहा है।
  • शिक्षा और जागरूकता: शिक्षा और जागरूकता के बढ़ने से लोगों में जातिगत भेदभाव के खिलाफ जागरूकता बढ़ रही है।
  • कानून और नीतियां: सरकार ने जातिगत भेदभाव को रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की गई है।
  • सामाजिक आंदोलन: कई सामाजिक कार्यकर्ता और संगठन जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे हैं और समतावादी समाज का निर्माण करने के लिए काम कर रहे हैं।

हालांकि, जाति व्यवस्था अभी भी भारतीय समाज में गहराई से रची-बसी हुई है और इसे पूरी तरह खत्म करने में अभी समय लगेगा। जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है।

भविष्य में निम्नलिखित परिदृश्य देखने को मिल सकते हैं:

  • जाति व्यवस्था का धीरे-धीरे कमजोर होना: आधुनिकीकरण और शहरीकरण के साथ जाति व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर हो सकती है।
  • जाति आधारित राजनीति का बढ़ना: कुछ राजनीतिक दल जातिगत भावनाओं का फायदा उठाकर वोट बैंक बनाने की कोशिश कर सकते हैं।
  • नई पहचानों का उभरना: जाति के अलावा अन्य पहचानें जैसे कि धर्म, क्षेत्र और वर्ग अधिक महत्वपूर्ण हो सकती हैं।

निष्कर्ष:

भारत में जाति प्रथा का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करता है। यह एक जटिल मुद्दा है और इसका समाधान आसान नहीं है। हालांकि, शिक्षा, जागरूकता और सरकार की नीतियों के माध्यम से जातिगत भेदभाव को कम किया जा सकता है और एक समतावादी समाज का निर्माण किया जा सकता है।

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प्रश्न-2. भारत में महिलाओं की परिवर्तित प्रस्थिति पर एक लेख लिखिए।

उत्तर:-

प्रश्न-3. परिवार की परिभाषित कीजिए। आधुनिक समाज में परिवार के प्रकार्यों की विवेचना कीजिए।

उत्तर:-

प्रश्न-4. आधुनिकीकरण क्या है? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- आधुनिकीकरण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें एक पारंपरिक, ग्रामीण और कृषि-आधारित समाज एक आधुनिक, शहरी और औद्योगिक समाज में बदल जाता है। यह एक ऐतिहासिक विकास है जिसमें समाज के विभिन्न पहलुओं में व्यापक परिवर्तन होते हैं।

आधुनिकीकरण की मुख्य विशेषताएं

  • औद्योगीकरण: आधुनिकीकरण का सबसे प्रमुख पहलू औद्योगीकरण है। इसमें कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था से हटकर उद्योगों और सेवा क्षेत्र पर आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना शामिल है।
  • शहरीकरण: आधुनिकीकरण के साथ-साथ शहरीकरण भी होता है। लोग गांवों से शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे शहरों का विकास होता है।
  • तकनीकी विकास: आधुनिकीकरण में तकनीकी विकास एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नई-नई तकनीकों का विकास होता है, जिससे उत्पादन और सेवाओं में वृद्धि होती है।
  • सामाजिक परिवर्तन: आधुनिकीकरण के साथ-साथ सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन होते हैं। पारंपरिक मूल्यों और रीति-रिवाजों का स्थान आधुनिक मूल्यों और जीवन शैली ले लेती है।
  • राजनीतिक परिवर्तन: आधुनिकीकरण के साथ-साथ राजनीतिक व्यवस्था में भी परिवर्तन होते हैं। लोकतंत्र और राष्ट्रवाद जैसे विचारों का विकास होता है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन: आधुनिकीकरण के साथ-साथ सांस्कृतिक मूल्यों और रीति-रिवाजों में भी परिवर्तन होते हैं। वैश्वीकरण के कारण विभिन्न संस्कृतियों का मिश्रण होता है।

आधुनिकीकरण के प्रभाव

आधुनिकीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव होते हैं। सकारात्मक प्रभावों में आर्थिक विकास, जीवन स्तर में सुधार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार शामिल हैं। वहीं, नकारात्मक प्रभावों में पर्यावरणीय प्रदूषण, सामाजिक असमानता और सांस्कृतिक विघटन शामिल हैं।

निष्कर्ष:

आधुनिकीकरण एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है। यह समाज के सभी पहलुओं को प्रभावित करती है और इसके परिणाम सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं।

प्रश्न-5. जी.एस. घुरिये के द्वारा जाति के विषय में जो लिखा है उस पर एक सारगर्भित टिप्पणी लिखिए।

उत्तर:-

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